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चुरादिगण (दशम गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

चुरादिगण (दशम गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग
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 संस्कृत धातुरूप – चुरादिगण

संस्कृत एक अद्भुत और गहन भाषा है, जिसमें प्रत्येक धातु (verb) का एक विशेष अर्थ और क्रियात्मक प्रयोग होता है। पाणिनि के अष्टाध्यायी में धातुओं को 10 गणों (categories) में विभाजित किया गया है, जिनमें एक महत्वपूर्ण गण है चुरादिगण। यह गण विशेष रूप से चोरी, अनुकरण, और मिथ्याचार से संबंधित क्रियाओं को व्यक्त करने वाली धातुओं का समूह है। इस लेख में हम चुरादिगण की धातुओं, उनके लकार रूपों और उपयोगों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


चुरादिगण का परिचय

चुरादिगण की धातुएं मुख्य रूप से चोरी, धोखा, और अनुकरण से संबंधित होती हैं। इस गण की धातुओं का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिए किया जाता है, जहां किसी वस्तु या क्रिया को छुपा कर लिया जाता है या किसी अन्य का अनुकरण किया जाता है। संस्कृत में इन धातुओं का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि ये सामाजिक और मानसिक गतिविधियों को अभिव्यक्त करती हैं, जैसे छल करना या किसी की नकल करना।

चुरादिगण की विशेषताएँ:

  1. चोरी और धोखाधड़ी: इस गण की धातुएं मुख्य रूप से चोरी, धोखा देने और छल करने से संबंधित होती हैं।
  2. अनुकरण: कुछ धातुएं किसी अन्य की नकल करने या अनुकरण करने के संदर्भ में होती हैं।
  3. परस्मैपदी: अधिकांश धातुएं परस्मैपदी होती हैं, अर्थात इन क्रियाओं का फल किसी अन्य व्यक्ति को प्राप्त होता है।

चुरादिगण की धातु सूची

चुरादिगण (दशम गण) में वे धातुएँ सम्मिलित हैं, जिनका उपयोग सामान्यतः प्रेरणा, सर्जन, चोरी करना, प्राप्त करना जैसे कार्यों के लिए होता है। इस गण की धातुएँ णिजन्त (सहितकारी रूप) में परस्मैपदी और आत्मनेपदी दोनों प्रकार की होती हैं। चुरादिगण की धातुएँ मूलतः क्रिया में णिच् प्रत्यय जोड़कर बनाई जाती हैं। नीचे धातुओं की सूची हिंदी अर्थ और उदाहरण सहित प्रस्तुत की गई है:


संस्कृत धातुहिंदी अर्थउदाहरण (लट् लकार)
चुर्चोरी करनासः चोरयति (वह चोरी करता है)।
भञ्ज्तोड़नासः भञ्जयति (वह तोड़ता है)।
भिक्ष्भीख माँगनासः भिक्षयति (वह भीख माँगता है)।
पूज्पूजन करनासः पूजयति (वह पूजन करता है)।
कथ्कहनासः कथयति (वह कहता है)।
शंस्प्रशंसा करनासः शंसयति (वह प्रशंसा करता है)।
स्पृह्इच्छा करनासः स्पृहयति (वह इच्छा करता है)।
लोभ्लालच करनासः लोभयति (वह लालच करता है)।
स्मृस्मरण करनासः स्मारयति (वह स्मरण कराता है)।
दीप्त्प्रज्वलित करनासः दीप्तयति (वह प्रज्वलित करता है)।
दान्दान देनासः दानयति (वह दान देता है)।

विशेषताएँ:

  1. चुरादिगण की धातुएँ सामान्यतः प्रेरणात्मक अर्थ व्यक्त करती हैं।
  2. इस गण की धातुएँ णिच् प्रत्यय के साथ बनती हैं और इनमें क्रिया के साथ प्रेरणार्थक भाव जोड़ा जाता है।
  3. चुरादिगण की धातुओं से लट् लकार (वर्तमान काल), लङ्ग् लकार (भूतकाल) और लोट् लकार (आज्ञा) आदि के रूप बनाए जाते हैं।

धातु "चुर्" (चोरी करना) के रूप (लट् लकार)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमचोरयतिचोरयतःचोरयन्ति
मध्यमचोरयसिचोरयथःचोरयथ
उत्तमचोरयामिचोरयावःचोरयामः

चुरादिगण के लकार रूप

चुरादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन्न लकारों में रूपांतरित होती हैं। उदाहरण:

  1. लट् लकार (वर्तमान काल):

    • चुरति (वह चुराता है)
    • द्रुणद्धि (वह धोखा देता है)
  2. लङ् लकार (भूतकाल):

    • अचुरत् (उसने चुराया)
    • अद्रुणद्धि (उसने धोखा दिया)
  3. लृट् लकार (भविष्यकाल):

    • चुरिष्यति (वह चुराएगा)
    • द्रुणद्धि (वह धोखा देगा)

चुरादिगण का व्यावहारिक उपयोग

चुरादिगण की धातुएं मुख्य रूप से धोखाधड़ी, छल, और नकल करने की क्रियाओं से संबंधित होती हैं। इस गण की धातुएं विभिन्न प्रकार की नकारात्मक और निंदनीय क्रियाओं को व्यक्त करती हैं, जो समाज में अनुशासन और नैतिकता के विपरीत होती हैं।

  • चुर्: चोरी करने, चुराने से संबंधित क्रिया।
  • द्रुह्: धोखा देने, विश्वासघात करने के लिए।
  • सृ: उत्पन्न करने या निर्माण करने से संबंधित क्रिया।

उदाहरण:

  1. "वह चुरति," अर्थात "वह चुराता है।"
  2. "वह द्रुणद्धि," अर्थात "वह धोखा देता है।"

निष्कर्ष

चुरादिगण संस्कृत के एक महत्वपूर्ण गण के रूप में समाज में छल, धोखा, और चोरी की क्रियाओं को व्यक्त करता है। इस गण की धातुएं विशेष रूप से उन क्रियाओं को व्यक्त करने में सहायक होती हैं जो किसी वस्तु या व्यक्ति को अनुचित रूप से छुपाने, चुराने, या धोखा देने से संबंधित होती हैं। इन धातुओं का अध्ययन न केवल संस्कृत के व्याकरण को समझने में सहायक है, बल्कि यह हमें समाज में नैतिकता, ईमानदारी, और अनुशासन के महत्व को भी समझने में मदद करता है।

चुरादिगण की धातुओं के अध्ययन से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि कैसे संस्कृत में नकारात्मक क्रियाओं को परिभाषित किया गया है और उनका सामाजिक संदर्भ क्या है।

About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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