परिवार - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
-: सुभाषित :-
१ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
कार्येषु मंत्री करणेषु दासी
रूपेषु लक्ष्मी क्षमया धरित्री ।
स्नेहेषु माता शयनेशु रंभा
षट्कर्मनारी कुलधर्मपत्नी ।।
हिंदी भावार्थ:-
यहा आदर्श कुलवधू धर्मपत्नी के छह गुण बताये है पहला जो अपने कार्य मैं मंत्री के समान हो जो आवश्यकता पड़ने पर पति को सलाह देने की क्षमता रखे , दूसरा पतिके सामने कार्य मे सेविका का धर्म निभाये , तीसरा स्वरूप में लक्ष्मी कि भाति हो , चौथा सहन शीलता मैं धरती के समान हो , पांचवा स्नेह करने में माता के समान ओर छठा शयन मैं रंभा(अप्सरा) की भाती हो इन छह गुणों से युक्त नारी को कुलवधू या पतिव्रता धर्मपत्नी कहा गया है ।
२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
सा भार्या या प्रियं ब्रुते
स पुत्रो यत्र निवॄति: ।
तन्मित्रं यत्र विश्वास:
स देशो यत्र जीव्यते ॥
हिंदी भावार्थ:-
यहा कहते है कि सहिमे अपना कौन है जो प्रिय ओर मधुर बोले वह अच्छी भार्या(पत्नी) है , ओर जो पिता को सुख देने वाला आचारण करे वह वास्तविक पुत्र है , जिस पर विश्वास कर सके वही सच्चा मित्र है और जहाँ सुख पूर्वक जीवन यापन हो सके वह सही देश है ।
३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
उपाध्यात् दश आचार्य:
आचार्याणां शतं पिता ।
सहस्रं तु पितॄन् माता
गौरवेण अतिरिच्यते ।।
हिंदी भावार्थ:-
यहा माता की महानता की तुलना करने का प्रयास किया है कहते है कि एक बालक के लिए उपाद्यय से दस गुना श्रेष्ठ आचार्य होता है और आचार्य से सौ गुना श्रेष्ठ पिता का स्थान है और पिता से हजार गुना श्रेष्ठ माता का स्थान है इसी लिए माता गौरव के योग्य है ।।
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४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
पिता रक्षति कौमारे
भर्ता रक्षति यौवने ।
पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न
स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ॥
हिंदी भावार्थ:-
यहा कहते है कि स्त्री की कुमारावस्था मैं पिता उसकी रक्षा करता है , जब युवावस्था में विवाह के बाद उसका पति स्त्री की रक्षा करता है और जब वृद्धावस्था आती है तब पुत्र स्त्री की रक्षा करते है इस तरह आजीवन वह रहती है स्वातंत्र्य नही पाती ।
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५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
वरमेको गुणी पुत्रो
न च मूर्खशतान्यपि ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति
न च तारगणोऽपिच ॥
हिंदी भावार्थ:-
यहा कहते है कि एक गुणवान पुत्र सौ मूर्ख पुत्र से अच्छा है क्योंकि केवल एक चंद्र रात्रि में अंधकार दूर करता है वही हजारो तारा मिलाकर भी अंधकार दूर नही कर सकते अतः चंद्र समान एक गुणवान पुत्र अच्छा है ।
६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
लालयेत पंचवर्षाणि
दशवर्शाणि ताडयेत् ।
प्राप्तेषु षोडषे वर्षे
पुत्रे मित्रवदाचरेत् ॥
हिंदी भावार्थ:-
यहा एक पिता के लिए एक योग्य पुत्र के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए बताते है कहते है जन्म से पांच वर्ष तक पुत्र को लाड़ प्यार देना चाहिए और उसके बाद के दस वर्ष अर्थात् छह से पंद्रह वर्ष की आयु तक पुत्र को थोड़ी कठोरता से शिक्षा दिलानी चाहिए और जब पुत्र सोलहवें वर्ष में प्रवेश करे तब से मित्र के समान उसके साथ आचरण करना चाहिए ।
७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
एकेनापि सुपुत्रेण
विद्यायुक्तेन साधुना ।
आह्लादितं कुलं सर्वं
यथा चन्द्रेण शर्वरी ।।
हिंदी भावार्थ:-
कुल की शोभा के लिए केवल एक सुपुत्र का होना भी बहोत है जो विद्या से युक्त हो अच्छे संस्कार वाला हो क्योकि ऐसे पुत्र पूरा कुल आह्लादित होता है गौरव पाता है जैसे चंद्रमा के कारण रात्रि में शोभायमान लगती है ।
८ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
विवादशीलां स्वयमर्थचोरिणीं
परानुकूलां पतिदोषभाषिणीम् ।
अग्राशिनीमन्यगृहप्रवेशिनीं
भार्यां त्यजेत्पुत्रदशप्रसूतिकाम् ॥
हिंदी भावार्थ:-
यहा दुष्ट स्त्री के लक्षणों के साथ सलाह देते है कि केसी पत्नी का त्याग करना चाहिए , कहते जो हमेशा विवाद करने वाली , अपने ही घर का धन चुराने वाली , दुसरो के प्रति अनुकूल बोलने वाली ओर पति के दोषों को गिनाने वाली , पति से पहले भोजन करने वाली दुसरो के घरों में बैठी रहने वाली ऐसी पत्नी को यदि दस पुत्रो की माता ही क्यों न हो त्याग करने में ही हमारी भलाई है ।
९ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
सर्वार्थसंभवो देहो
जनित: पोषितो यत:।
न तयोर्याति निर्वेशं
पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा।।
हिंदी भावार्थ:-
यहा कहते है कि हम कुछ भी करले परन्तु हमे जन्म देने वाले माता पिता का ऋण कभी भी चुका नही सकते यहा तक सर्वार्थ प्राप्त करने वाले इस शरीर को जिन्होंने जन्मा है पोषित किया है उसका ऋण सौ वर्ष के इस जीवन से भी कभी वह माता पिता का ऋण नही चुका सकता ।
१० संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
यस्य भार्या गॄहे नास्ति
साध्वी च प्रियवादिनी ।
अरण्यं तेन गन्तव्यं
यथाऽरण्यं तथा गॄहम् ।।
हिंदी भावार्थ:-
जिसकी पत्नी घरपर न हो , पतिव्रता (साध्वी) ने हो , प्रिय बोलने वाली न हो ऐसे व्यक्ति को अरण्य(वन) मैं चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए तो जैसे वन है वैसा ही घर लगता है।
११ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
शोचन्ति जामयो यत्र
विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता
वर्धते तद्धि सर्वदा ।।
हिंदी भावार्थ:-
जहां पर स्त्री पर अत्याचार होता है शोषण होता है वह कुल शीघ्र ही विनाश को प्राप्त करता है और जहां पर स्त्रियों का शोषण नही होता सम्मान होता है वह कुल सदा बढ़ता है ।