सुख-दुख - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

सुख-दुख - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

सुख-दुख - सुभाषित【संस्कृत सुभाषित】[ sanskrit subhasit ]

-: सुभाषित :-

सर्वं परवशं दु:खं 
सर्वम् आत्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन 
लक्षणं सुखदु:खयो:॥
  • हिन्दी अर्थ :-
यहां पर बहोत ही सरल शब्दों में सुख और दुःख का लक्षण दिया है कहते है कि जो लोग दुसरो पर आश्रित है वह दुःखी है , और स्वाश्रित है वह सुखी है ।।

-: सुभाषित :-

शोकस्थानसहस्राणि, 
भयस्थानशतानि च।
दिवसे दिवसे मूढम्,
 आविशन्ति न पण्डितम्॥

  • हिन्दी अर्थ :-
यहां कहते है कि शोक(दुःख) के सहस्त्र(हजार) स्थान है , वैसे ही भय के भी सौ स्थान है और यह सभी के लिए होते ही है परन्तु जो मुर्ख है ईससे प्रतिदिन चिंता में रहते है , बुद्धिमान नहीं ।।

-: सुभाषित :-

अर्थागमो नित्यमरोगिता च 
प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रोऽर्थकारी च विद्या 
षड्‌ जीवलोकस्य सुखानि राजन्‌॥
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा पर बताया है कि सुख छह 6 प्रकारका होता पहला धन की आवाक से , दूसरा नित्य आरोग्यता , तीसरा ओर चौथा प्रेम करने वाली ओर मधुर बोलने वाली भार्या (पत्नी) ,  पाँचवा आज्ञावान पुत्र , छठा धन प्राप्त कराने वाली विद्या यह ईस जीवलोक के छह सुुुख है रााजा ।

सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते
 यथान्धकारादिव दीपदर्शनम्।
सुखात्तु यो याति दशां दरिद्रतां
 धृतः शरीरेण मृतः स जीवति॥
  • हिन्दी अर्थ :-
दुःख का अनुभव करने के बाद ही सुख का अनुभव शोभा देता है जैसे कि घने अँधेरे से निकलने के बाद दीपक का दर्शन अच्छा लगता है।॥ सुख से रहने के बाद जो मनुष्य दरिद्र हो जाता है, वह शरीर रख कर भी मृतक जैसे ही जीवित रहता है।

ये केचिद् दु:खिता लोके 
सर्वे ते स्वसुखेच्छया।
ये केचित् सुखिता लोके 
सर्वे तेऽन्यसुखेच्छया॥
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा पर लोग सुख और दुःख का अंतर कैसे निर्धारित करते है वह बताया है कहते जगत में जो लोग दुखी है उसका कारण उनकी अपनी सुख की इच्छा है और जो लोग सुखी है उसका कारण उनकी दुसरो की सुखी होने की इच्छा से अर्थात् जो स्वार्थी है वह दुःखी है और जो परार्थी है वह सुखी है ।

यदा न कुरूते भावं
 सर्वभूतेष्वमंगलम्।
समदॄष्टेस्तदा पुंस: 
सर्वा: सुखमया दिश:॥
  • हिन्दी अर्थ :-
जब मनुष्य किसीका अमंगल हो ऐसा भाव नही रखता अर्थात् सभी का कल्याण हो ऐसी भावना रखने वाला , सभीको समान दृष्टि से देखने वाले पुरुष को सभी दिशाओं से सुख की प्राप्ति होती है । वह सर्वत्र सुख की अनुभूति करता है ।

सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते
 घनान्धकारेश्विव दीपदर्शनम् ।
सुखात्तु यो याति नरो दरिद्रतां 
धृतः शरीरेण मृतः स जीवति ॥
  • हिन्दी अर्थ :-
बहोत खूब कहा है यहां कहते है कि सुख जो है वह दुःख की अनुभूति के बाद प्राप्त हो तो वह शोभता अर्थात् बहु आनंद दायक होता है जैसे घने अंधकार में दीप के कारण प्रकाश शोभता है दिन में नही वही इससे विपरीत जो मनुष्य सुख भोगकर दरिद्रता (दुख) पाता है वह तो शरीर होते हुए भी मृत की तरह जीता है ।

कस्यैकान्तं सुखम् उपनतं 
दु:खम् एकान्ततो वा ।
नीचैर् गच्छति उपरि च 
दशा चक्रनेमिक्रमेण ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
जीवन मे कोई व्यक्ति सुख पाता है तो वही कोई केवल दुख कोई पहले सुख फिर बादमे दुख पाता है तो कोई पहले दुख बादमे सुख पाता है यह सुख और दुख जीवन की ऐसी दशाए है जो एक चक्र की भांति ऊपर नीचे होती रहती है , घुमती रहती है ।

आपूर्यमाणमचलप्रातिष्ठं
समुद्रमाप: प्राविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत् कामा यं प्राविशन्ति 
सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
जो व्यक्ती समय समय पर मन में उत्पन्न हुइ आशाओं से अविचलित रहता है। जैसे अनेक नदीयां सागर में मिलने पर भी सागर का जल नही बढता, वह शांत ही रहता है। ऐसे ही संयमी व्यक्ति सुुखी हो सकते है ।

हर्षस्थान सहस्राणि
 भयस्थान शतानि च ।
दिवसे दिवसे मूढं 
आविशन्ति न पंडितम् ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा कहते है कि जो मनुष्य मूर्ख है उसके लिए दिनमे हर्ष के हजारो स्थान व वजह मिल जाएगी वैसे ही भय के सौ कारण मिलेंगे परंतु जो ज्ञानी है पंडित है उनको यह छोटे छोटे कारण विचलित नही करते ।