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संस्कृत-ज्ञानस्य अनुक्रमणिका

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संस्कृत-ज्ञानस्य अनुक्रमणिका

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धन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

धन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
Niraj joshi

धन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

आज के ईस दोर मैं धन (पैसा) किसे नहीं चाहिए, पैसो के लिये आज लोग किसी भी हद तक चले जाते हैं, और कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं । बीना सोचें समजे , सहीषट या गलत का अंतर किये बिना ही सभी काम करने के लिए तैयार हो जाते है। वे लोग पैसो को ही सब कुछ समझते है। परन्तु हमारी भारतीय संस्कृति मै पैसो से ज्यादा मान , प्रतिष्ठा , मर्यादा , सेवा , धर्म जैसे उत्तम तत्वों को प्राप्त करना व्यवहारिक धन से कई अधीक गुना श्रेष्ठ माना है।
धन - सुभाषित 【संस्कृत सुभाषित】[sanskrit subhashit for money]

यहा पर धन कैसे कमाना चहीए , उसका उपयोग कैसे करना चाहिए , धन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण धन सुभाषित , संस्कृत सुभाषित दीये जा रहे है । ...

-: सुभाषित :- 

१ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

अतितॄष्णा न कर्तव्या
  तॄष्णां नैव परित्यजेत्।
 शनै: शनैश्च भोक्तव्यं
 स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥
हिंदी भावार्थ:-
 अतिशय कामनाए नही करनी चाहिए एवम् कामनाओ का सर्वथा त्याग भी नही करना चाहिए , ओर अपनी महेनत से कमाए हुए धन का धीरे धीरे भोग करना चाहिए ।।

Sanskrit_gyan


२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

स हि भवति दरिद्रो
 यस्य तॄष्णा विशाला।
 मनसि च परितुष्टे
 कोर्थवान् को दरिद्रा:॥
हिंदी भावार्थ:-
 हकीकत में दरिद्र वह है जिसकी कमानाए(तृष्णा) बड़ी बड़ी होती है , ओर जो मनसे संतुष्ट है वह कभी धनवान ओर दरिद्रता प्राप्त नही करता ।।

Sanskrit_gyan


३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

अर्थानाम् अर्जने दु:खम्
 अर्जितानां च रक्षणे।
 आये दु:खं व्यये दु:खं
 धिग् अर्था: कष्टसंश्रया:॥
हिंदी भावार्थ:-
 यह एक कड़वा सच है कि मनुष्य पहले धन कमाने में कष्ट प्राप्त करता है , ओर फीर जो कमाया है उसके रक्षण में , आय में भी दुःख है और व्यय में भी दुःख है , धिक्कार है ऐसे धन को जो कष्टो से भरा है ।।

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४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद्
 वित्तमेति च याति च।
 अक्षीणो वित्तत: क्षीणो
 वॄत्ततस्तु हतो हत:॥
हिंदी भावार्थ:-
 चारीत्र्य का सभी प्रयत्नों से रक्षण करना चाहिए धन से भी अधिक क्योकि धन तो आता जाता रहता है , ओर धन के नाश होने से मनुष्य का नाश नही होता परंतु चारीत्र्य के नाश होने से मनुष्य जीवित भी मृत समान हो जाता है ।।

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५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

नाम्भोधिरर्थितामेति
 सदाम्भोभिश्च पूर्यते।
 आत्मा तु पात्रतां नेय:
 पात्रमायान्ति संपद:।।
हिंदी भावार्थ:-
 समुद्र कभी किसीसे जल की इच्छा नही करते तथापि वे सदा जल से भरे हुए रहते है क्योकि वह उसकी पात्रता है वैसे ही हमे भी अपनी पात्रता को बढ़ाना चाहिए यदि हम किसी पात्र है तो हमे उस पात्रता के आधार पर सम्पति या पद प्राप्त अवश्य होगा ।

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६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

गौरवं प्राप्यते दानात्,
 न तु वित्तस्य संचयात्।
 स्थिति: उच्चै: पयोदानां,
 पयोधीनां अध: स्थिति:॥
हिंदी भावार्थ:-
 मनुष्य को दान करना चाहिए धन का संचय नही करना चाहिए क्योंकि दान से गौरव प्राप्त होता है, जो धन के संचय से नही होता , इसी लिए जल बरसाने वाले बादल ( पयोदः) उच्च पद पर है और जल का संचय करने वाला समुद्र ( पयोधिः) अधोगति मैं है ।।

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७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

दातव्यं भोक्तव्यं धनं
 सञ्चयो न कर्तव्यः।
 पश्येह मधुकरीणां
 सञ्चितार्थं हरन्त्यन्ये॥
हिंदी भावार्थ:-
 धन का हमेशा या तो दान करना चाहिए या तो भोग करना चाहिए संचय नही करना चाहिए क्योंकि मधुकरी(मधु-मक्खी) को ही देख लो उनका संचित मधु हर बार कोई और ही ले जाता है ।।

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८ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

 सहसा विदधीत न क्रियाम्
 अविवेकः परमापदां पदम्।
 वृणुते हि विमृश्यकारिणं
 गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥
हिंदी भावार्थ:-
 कभीभी अचानक(सहसा) सुझे (मन मे आये हुए) विचार को कार्यान्वित नहीं करना चाहिए एसा अविवेकी कार्य करने वाला आपदा(मुश्किली) मे आ जाता , ईसी लीये धैर्य ओर विवेक से कार्य करना चाहिए । ओर ईस तरह सोचके कार्य करने वालों को सम्पदा(संपत्ति) स्वयं वरण करती है ।।

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९ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

दानं भोगो नाशस्तिस्रो,
 गतयो भवन्ति वित्तस्य।
 यो न ददाति न भुङ्क्ते,
 तस्य तृतीयागतिर्भवति॥
हिंदी भावार्थ:-
 वित्त(धन) की तीन प्रकार की गति होती है एक दान दुसरा उपभोग और तीसरा नाश , जो व्यक्ति धन का दान नहीं करता ओर जो उसका उपभोग भी नहीं करता अर्थात् धन संचय करता है उसके धन की तीसरी गति यानि नाश हो जाता है ।।

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१० संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

सन्तोषामृततृप्तानां
 यत्सुखं शान्तचेतसाम्।
 कुतस्तद्धनलुब्धानां
 एतश्चेतश्च धावताम्॥
हिंदी भावार्थ:-
 जो मनुष्य शान्त चित्त है संतोषी है अर्थात जीसके पास संतोष नाम का अमृत है उनको जीस तृप्ति स्वरूप सुख की प्राप्ति होती है वैसा सुख अचेत मन ओर सदा धन के पीछे भागने वाले लोभियों को कैसे मील सकता है ।।

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११ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

अधमा: धनमिच्छन्ति
 धनं मानं च मध्यमा: ।
 उत्तमा: मानमिच्छन्ति
 मानो हि महताम् धनम् ।।
हिंदी भावार्थ:-
 अधम प्रकार के मनुष्य केवल धन की ईच्छा रखते है , मध्यम प्रकार के मनुष्य धन एवं मान दोनों की ईच्छा रखते है , परन्तु उत्तम मनुष्य केवल मान को ही ईच्छता है ,क्योंकि महान व्यक्तिओ के लीए मान ही धन है।।

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१२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

यस्यास्ति वित्तं स वरः कुलिनः
 स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
 स एव वक्ता स च दर्शनीयः
 सर्वे गुणाः काञ्चनं आश्रयन्ते ॥
हिंदी भावार्थ:-
 इस समय कलियुग मैं जिस व्यक्ति के पास वित्त(धन) है उसे कुलवान है ऐसा समजा जाता हैं और उसे हि पंडित , श्रेष्ठि (श्रुतवान ) , गुणवान , वक्ता , देखने योग्य माना जाता हैं , क्योकि ये सभी गुण कांचन(सोना)(धन) के कारण उसे मिलते है ।

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१३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

वैद्यराज नमस्तुभ्यम्
 यमराज सहोदर: ।
 यमस्तु हरति प्राणान्
 वैद्य: प्राणान् धनानि च ।।
हिंदी भावार्थ:-
 वैद्यराज को प्रणाम है जो यमराज के सहोदर(भाई) भाई , क्योकि यमराज तो सिर्फ लोगो के प्राण हरते है । परंतु वैद्य तो प्राण भी हरता है और धन भी हरता है ।

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१४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

कॄपणेन समो दाता न
 भूतो न भविष्यति ।
 अस्पॄशन्नेव वित्तानि
 य: परेभ्य: प्रयच्छति ।।
हिंदी भावार्थ:-
 सबसे बड़ा दानवीर अर्थात् कंजूस के समान दाता(दानवीर) न हुआ है न होगा , क्योकि वह अपनी कंजुसी के कारण जीवन भर धन कमाकर स्वयं उपयोग न करके दुसरो के लिए छोड़ कर चला जाता हैं(मृत्यु को प्राप्त होता है ) ।।

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१५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

अर्था भवन्ति गच्छन्ति
 लभ्यते च पुन: पुन:।
 पुन: कदापि नायाति
 गतं तु नवयौवनम्।।
हिंदी भावार्थ:-
 अर्थात् यहा कहते है कि जीवन मे अर्था(धन) आता है जाता है जानेके बाद फिरसे आता है अर्थात् धन खोने के बाद पुनः कमाया जा सकते है , परंतु नवयौवन (युवानी) एक बार जाने के बाद पुनः नही पा सकते ।।

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१६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

परस्य पीडया लब्धं
 धर्मस्यौल्लंघेनेन च ।
 आत्मावमानसंप्राप्तं
 न धनं तत् सुखाय वै।।
हिंदी भावार्थ:-
 जीवन मे कभी भी दूसरों को पीड़ा देकर , धर्म का उलंघन कर , एवम् आत्मा को अपमानित करके कमाया हुआ धन जो होता है , वह धन-संपत्ति हमारे लिए कभीभी सुखकारी नही होतो आगे जाकर वह हमें दुःख ही देती है।

Sanskrit_gyan


१७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

नालसा: प्राप्नुवन्त्यर्थान
 न शठा न च मायिनः।
 न च लोकरवाद्भीता यं
 न च शश्वत्प्रतीक्षिणः।।
हिंदी भावार्थ:-
 इतने प्रकार के लोग जीवन मे धन नही कमा सकते 1 जो आलसी है , 2 शठ(जो दूसरोंका बुरा चाहते है ) , 3 दुसरो को लुंटते है , 4 लोग क्या कहेंगे इससे भयभीत होने वाले , 5 अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं।
ईस तरह सही मार्ग से कमाया हुआ धन हमे यश प्रदान करता है , आशा है की आपके जीवन में यह सुभाषित सहायक हो ।

2 टिप्पणियां

  1. Niraj joshi
    Niraj joshi
    Waw... Super...
  2. सागर
    सागर
    सुंदरम
आपके महत्वपूर्ण सुझाव के लिए धन्यवाद |
(SHERE करे )