परोपकार & दान - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
मनुष्यों के कठिन समय मे उनके पूर्व के किये हुए कर्म ही सहायक होते है । और यह सही है कि सुपात्र को किया हुआ दान कभी विफल नही जाता । परंतु यहां प्रश्न होता है कि कौन सुपात्र है और कौन कुपात्र इसकी पहचान कैसे करे ? परोपकार किसे कहते है ?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर हमारे ऋषियों ने बहुत चिंतन करके सुभाषितों के रुप मैं हमे प्रदान किया है ।
आइये जानते है सहिमे परोपकार किसे कहते है और दान की महत्ता क्या है संस्कृत सुभाषितों के माध्यम से । .
-: सुभाषित :-
१ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
क्षमा बलमशक्तानाम्शक्तानाम् भूषणम् क्षमा।क्षमा वशीकृते लोके ाक्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥हिंदी भावार्थ:-क्षमा शक्तिहीन लोगो का बल है, क्षमा बलवान लोगो का आभूषण है, क्षमा से यह विश्व वशीभूत है, क्षमा से कौन से कार्य सिद्ध नहीं हो सकते है।
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२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
दिवसेनैव तत् कुर्याद्येन रात्रौ सुखं वसेत्।यावज्जीवं च तत्कुर्याद्येन प्रेत्य सुखं वसेत्॥हिंदी भावार्थ:-दिन में वह करना चाहिए जिससे रात में सुख से नींद आ सके। जब तक जीवित हैं तब तक वह करना चाहिए जिससे मरने के बाद सुख से रहा जा सके॥
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३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
अष्टादशपुराणेषुव्यासस्य वचनद्वयम्।परोपकारः पुण्यायपापाय परपीडनम्॥हिंदी भावार्थ:-अट्ठारह पुराणों में श्रीव्यास के दो वचन (प्रमुख) हैं - परोपकार से पुण्य होता है ओर पुण्य का फल सुख है , एवम् पर-पीड़ा से पाप होता है ओर पाप का फल दुःख होता है ।
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४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
अन्नदानं परं दानंविद्यादानमतः परम्।अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया॥हिंदी भावार्थ:-अन्न दान परम दान है, अतः विद्या दान उससे भी बड़ा है क्योंकि अन्न से क्षण भर की तृप्ति होती है और विद्या से जबतक जीवित है तबतक तृप्ति की अनुभूति होती है ।
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५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
दानेन तुल्यं सुहृदास्ति नान्योलोभाच्च नान्योऽस्ति रिपुः पृथिव्याम्।विभूषणं शीलसमं न चान्यत्सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत्॥हिंदी भावार्थ:-दान के समान अन्य कोई सुहृद(मित्र ) नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई अरी(शत्रु) नहीं है। शील(चारीत्र्य ) के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है।
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६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः,स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाःपरोपकाराय सतां विभूतयः॥हिंदी भावार्थ:-नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, बादल अपने बरसाए पानी द्वारा उगाया हुआ अनाज स्वयं नहीं खाते। सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है।
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७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
अक्षरद्वयम् अभ्यस्तंनास्ति नास्ति इति यत् पुरा।तद् इदं देहि देहिइति विपरीतम् उपस्थितम्॥हिंदी भावार्थ:-हमारे घर कोई भिक्षुक आये और हमारी स्थिति सही होने पर भी यदि हम " नही है , नही है " यह दो शब्द बोलकर उसे भगा देते है तो इस के विपरीत इस कर्म के फल स्वरूप हमे " दे दो , दे दो " कहने के दिन आते है , इसीलिए हमारी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए ।।
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८ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
परोपकाराय फलन्ति वृक्षा:,परोपकाराय वहन्ति नद्य:।परोपकाराय दुहन्ति गाव:,परोपकाराय मिदं शरीरम् ॥हिंदी भावार्थ:-वृक्ष परोपकार करने के स्वभाव से ही फल देते हैं। नदी परोपकार करने के स्वभाव से ही बहती है। गाय परोपकार करने के स्वभाव से ही दूध देती है। हमारे इस शरीर की सार्थकता परोपकार में ही है इस लिए हमे परोपकारी बनना चाहिए ।।
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९ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
भूताभयप्रदानेनसर्वान्कामानवामुयात् ।दीर्घमायुः च लभतेसुखी चैव सदा भवेत् ॥हिंदी भावार्थ:-अन्य को अभय का दान देनेसे अर्थात् परोपकार करने से मनुस्य अपनी सभी इच्छाए पूर्ण करता है , लंबा आयुष्य प्राप्त करता है , ओर सदा के लिए सुखी रहता है । परोपकार का ऐसा फल मिलता है इसी लिए हमे परोपकारी बनना चाहिए ।।
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१० संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
परो अपि हितवान् बन्धु:,बन्धु: अपि अहित: पर: ।अहित: देहज: व्याधि: ,हितम् आरण्यम् औषधम् ।।हिंदी भावार्थ:-किसी व्यक्ति के साथ हमरा कोई रिश्ता नहीं है , लेकिन जो हमें हमारे कठिन समय में मदद करता है , ओर इसके विपरीत जो मनुष्य हमारे रिश्तेदार / भाई है , लेकिन जो हमेशा हमारे बारेमे बुरी बातें सोचते है उनको अपना रिश्तेदार(संबंधी) नहीं मानना चाहिए । वैसे लोग एक बीमारी की तरह है, जो हमारे शरीर में है तो भी हमारे शरीर को ज्यादा नुकसान करती है ,जबकि औषधीय पौधा जो दूर जंगल में बढ़ता है फिरभी वह हमारे लिए उपयोगी होता है।
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११ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
दमूर्खो न हि ददाति अर्थंनरो दारिद्रयशङ्कया ।यप्राज्ञाम्प; तु वितरति अर्थंनरो दारिद्रयशङ्कया ।।हिंदी भावार्थ:-कहीं दरिद्र न हो जाए, इस डरसे मूर्ख मनुुुष्य दान नहीं करा एक ओर बुद्धिमान व्यक्ति भविष्यमें दरिद्रता आनेपर दान नहीं दे पाएगा, यह सोचकर अभी ही देता रहता है । मूढ आसक्त होनेके कारण दान नहीं करता है और बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य हेतु सत्कर्मोंको टालता नहीं है , वह वर्तमानमें ही सत्कर्मोंको करनेमें विश्वास रखता है, क्योंकि उसे ज्ञात होता है कि भविष्य अनिश्चित है | वैसे भी मृत्यु अनिश्चित होती है और मृत्योपरांत सत्कर्म ही हमारे साथ जाता है अतः सत्कर्मके विषयमें जैसे ही ज्ञात हो उसे आचरणमें लाना चाहिए |
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१२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
छायामन्यस्य कुर्वन्तिस्वयं तिष्ठन्ति चातपे ।फलान्यपि परार्थायवॄक्षा: सत्पुरूषा इव ।।हिंदी भावार्थ:-यहा वृक्ष की परोपकारिता सिध्ध करता हुआ श्लोक दिया है कहते है कि एक वृक्ष स्वयं ताप में रहते हुए भी दूसरों को छाया प्रदान करते हैं तथा उनके फल-फूल भी दूसरों के ही उपयोग के लिए है। इसलिए ये वृक्ष सज्जनों लोगों के समान ही परोपकारी हैं।
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१३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
न अन्नोदकसमं दानंन तिथि द्वादशीसमा।न गायत्र्याः परो मन्त्रोन मातु: परदैवतम्॥हिंदी भावार्थ:-यहा पहली पंक्ति में कहते है कि अन्न एवम् जल(उदक) के दान के समान कोई दान नही है , इर द्वादशी के समान तिथि नही है , ओर गायत्री मंत्र के समान कोई मंत्र नही है, ओर अन्तमे कहते है कि माता के समान कोई देवता नही होता ।।
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१४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
मूलं भुजंगै: शिखरं विहंगै:,शाखां प्लवंगै: कुसुमानि भॄंगै: ।आश्चर्यमेतत् खलुचन्दनस्य,परोपकाराय सतां विभूतय: ।।हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि यह आश्चर्य की बात है कि जिस चंदन के पेड़ के मूल में सर्प होते है टोच पर पक्षी , शाखाओ पंर बंदर(प्लवंग) , मधुमक्खीआ जिस पर अपना पुडा बनाती है यह कितना परोपकारी है वैसे हि संसार मैं जो सज्जन विभूति होती है वह चंदन की तरह सबको शीतलता देते है ।।
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१५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
उपार्जितानां वित्तानांत्याग एव हि रक्षणम्।तडागोदरसंस्थानांपरीवाह इवाम्भसाम्।।हिंदी भावार्थ:-जिस तरह तड़ाग (तालाब का पानी बहता रहे तभी वह शुद्ध रह शकता है अन्यथा खराब हो जाता है , उसी तरह धन भी यदि दान या भोग स्वरूप उपयोग मैं ना लाया जाय तो वह नष्ट हो जाता है धन के त्याग में ही उसका रक्षण है संग्रह में नही ।।
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