जीवन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

जीवन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित


मनुष्य का जीवन सबसे कीमती हे क्युकी जीवन सभी पशु - पंखी या जीवो को प्राप्त होता हे पर उनमे से मनुष्य ही ऐसा प्राणी हे जिसमे विचार करने की या गूढ़ चिंतन करने की शक्ति हे। और यह शक्ति का हमारे पूर्वजो ने  उपयोग करके भविष्य का चिंतन करके अपनी आने वाली भावी पेढ़ी के लिए शास्त्रों या वेदो के रूप में प्रस्तुत किया और उनमे से जो जीवन का सार हे उसे सुभाषितों के रूप में हमें सोपा। आइये ऐसे जीवन - सुभाषितों को जो  हमें जीवन जीना शिखाते हे उनका अभ्यास करे। ..
 
जीवन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

-: सुभाषित :-

चिता चिंता समाप्रोक्ता 
बिंदुमात्रं विशेषता ।
सजीवं दहते चिंता
निर्जीवं दहते चिता ।।

हिंदी अर्थ :-

चिता एवं चिंता मध्य बहुत समानताए है। पर उनके बीच बस ईतना हि अंतर है कि, चिंता में एक बिंदु की विशेषता होती है; चिता मै नही होती है जबकि चिता मरे हुए को ही जलाती है और चिंता जीवित व्यक्ति को मार देती है।

-: सुभाषित :-

व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं 
दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं 
स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥

हिन्दी अर्थ :-

व्यायाम से क्या लाभ हे तो बताया हे की पहले तो स्वास्थ्य की प्राप्ति होती हे  दीर्घ (लम्बा ) आयुष्य , बाहुबल और सुख की प्राप्ति होती हे।  और बताया हे की जो आरोग्य हे वह परम भाग्य हे एवं स्वास्थ्य सर्वार्थ साधक हे।

परवाच्येषु निपुण: 
सर्वो भवति सर्वदा।
आत्मवाच्यं न जानीते
जानन्नपि च मुह्मति॥

हिन्दी अर्थ :- 
कीसी ओर के बारे में बोलने में सभी हमेशा ही होशियार होते हैं पर अपने स्वयं के बारे में नहीं जानते हैं, यदि स्वयं के बारे में जानते भी हैं तो गलत ही जानते होते है।

 एकेन अपि सुपुत्रेण
 सिंही स्वपिति निर्भयम् ।
 सह एव दशभि: पुत्रै:
 भारं वहति गर्दभी ।।

हिन्दी अर्थ :-

यहाँ पर एक सुपुत्र का दस कुपुत्र के साथ तुलनात्मक बहोत ही अच्छा उदहारण प्रस्तुत किया हे , कहा की यदि सिंही को एक ही सुपुत्र के होने पर वह बिना भय के सोती हे , जबकि वही दस पुत्र होने के बावजूद भी गर्दभी भार को वहन करती हे। इसी तरह जिसके घर में सु संस्कार युक्त , आज्ञाकारी  पुत्र के होने से उसका पूरा परिवार सिंह कि तरह सुखी होता हे , कुपुत्र होने पर भार वहन करता हे। 

 मध्विव मन्यते बालो
 यावत् पापं न पच्यते।
 यदा च पच्यते पापं
 दु:खं चाथ निगच्छति।।

हिन्दी अर्थ :-

यहाँ पर पाप का फल किस तरह से मीलता है उसका निरूपण कीया है - कहते है की जब तक पाप संपूर्ण रूप से फलित नही होता, अर्थात् जब तक पाप का घडा भर नहीं जाता, तब तक वह पाप कर्म मीठा लगता है। किंतु  पूर्ण रूपसे  फलित होने के पश्चात् , पाप के घडे के भर जाने के बाद मनुष्य को उसके कटु परिणाम सहन करने ही पडते हैं।

यथा हि पथिक: कश्चित् 
छायामाश्रित्य तिष्ठति ।
विश्रम्य च पुनर्गच्छेत्
तद्वद् भूतसमागम: ॥

हिन्दी अर्थ :-

जिस तरह कोई यात्री अपनी यात्रा के दौरान वॄक्ष के नीचे विश्राम करने के बाद आगे बढ जाता है। उसी तरह हमारे जीवन में अन्य मनुष्य भी थोडे समय के लिए उस वॄक्ष की तरह छांव देते है और फिर आगे बढ़ जाते है , उनका साथ छूट जाता है।

आचाराल्लभते ह्मयु:
आचारादीप्सिता: प्राजा:।
आचाराद्धनमक्षय्यम् 
आचारो हन्त्यलक्षणम्।।

हिन्दी अर्थ :-

सही आचरण से दीर्घ(लम्बा) आयुष्य, उत्तम सन्तती, चिर समृद्धि की प्राप्ति होती है, और अपने दोषों का भी नाश हो जाता  है। इसी लिए हमें हमारे आचरण को अच्छा बनाना चाहिए। ऐसा आचरण होना चाहिए की दुसरो को हरहमारे आचरण से भी कुछ न कुछ शिख मिले। 

दीर्घा वै जाग्रतो रात्रि:
दीर्घं श्रान्तस्य योजनम्।
दीर्घो बालानां संसार:
सद्धर्मम् अविजानताम्।।

हिन्दी अर्थ :-

जो मनुष्य रात्रीभर जागते है उनको रात्री बहुत बडी प्रतीत होती है। जो मनुष्य चलकर थक गया हो, उसको केवल एक योजन (चार मील) की दुरी भी बहुत दूर लगती है। बस वैसे ही जीसे धर्म का ज्ञान नही है उन्हें जीवन बहुत दीर्घ लगता।

अस्थिरं जीवितं लोके 
अस्थिरे धनयौवने ।
अस्थिरा: पुत्रदाराश्र्च
धर्मकीर्तिद्वयं स्थिरम् ।।

हिन्दी अर्थ :-

यहां कहते है कि ईस संसार में जीवन अस्थायी है , धन ओर योवन भी अस्थायी है , पुत्र ओर पत्नी भी अस्थायी है यह सदा नहीं रहने वाले। परन्तु धर्म एवम् कीर्ति यह दोनो मनुष्य के न रहने पर भी स्थिर (जिवित) रहती है ।

न जातु काम: कामाना
मुपभोगेन शाम्यति ।
हविषा कॄष्ण्मत्र्मेव
भुय एवाभिवर्धते ।।

हिन्दी अर्थ :-

मनुष्य चाहे कीतनी भी कामनाओं का उपभोग कर ले परन्तु उसकी कामनाएं शांत नहीं होती। परंतु जीस तरह अग्नि मे आहुति देने से अग्नि ओर बढती है उसी प्रकार कामनाओं का उपभोग करने पर कामनाएं ओर बढती है।

दीपो भक्षयते ध्वान्तं
कज्जलं च प्रसूयते ।
यादॄशं भक्षयेदन्नं
जायते तादॄशी प्रजा ।।

हिन्दी अर्थ :-

दीप जिस प्रकार से अंधकार का नाश करके प्रकाश देता ,पर उसके साथ काजल को भी छोडता है, उसी प्रकार जो जैसा अन्न ग्रहण करता है वैसा ही प्रभाव हमारे बच्चों पर पडता है।

 श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेत:
 तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीर: ।
 श्रेयो हि धीरोभिप्रेयसो वॄणीते
 प्रेयो मन्दो षोगक्षेमाद् वॄणीते ।।

हिन्दी अर्थ :-

श्रेय अर्थात श्रेयस्कर पथ या सद्गति का मार्ग , प्रेय अर्थात मन को प्रिय लगने वाले इन्द्रिय भोगों का मार्ग है। ये दोनों ही मनुष्य के प्रत्यक्ष आते हैं, श्रेष्ठबुद्धि वाले लोग श्रेयपथ को चुनते हैं एवं  मंदबुद्धि वाले लोग प्रेयपथ को चुनते हैं। मनुष्य विवेकशील है, अत: उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह सही मार्ग चुने। मनुष्य शब्द जो हे उसे  निरुक्त में इस तरह बताया हे।, ‘मत्वा कर्माणि सीव्यति इति मनुष्य:’ अर्थात सम्यक विचार पूर्वक जो कर्म करता है उसे मनुष्य कह सकते है । अत: मनुष्यों को श्रेयपथ को अपनाना चाहिए।

 अङ्गणवेदी वसुधा कुल्या 
 जलधि: स्थली च पातालम् ।
 वाल्मिक: च सुमेरू:
 कॄतप्रतिज्ञाम्पस्य धीरस्य ।।

हिंदी अर्थ :- 

जो व्यक्ति धीर और दृढप्रतिज्ञ है उसके लीये समुद्र , पृथ्वी , पाताल , वाल्मीक , सुमेरुपर्वत यह सब आगन के बाग(बगीचे) के समान है । वह जब चाहे तब वहा घुम आए , उसे कोई रोक नहीं सकता ।

द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ
गले बद्ध्वा दॄढां शिलाम् ।
धनवन्तम् अदातारम् 
दरिद्रं च अतपस्विनम् ।।

हिन्दी अर्थ :- 

यहां बताते है की संसार में से दो प्रकार के मनुष्य को गले मे एक मजबूत शिला बांधकर समुद्र के भीतर डाल देना चाहिए , एक जो धनवान है , परन्तु दान नहीं करता और दूसरा जो धनहीन (दरिद्र ) है परंतु महेनत(श्रम ) नहीं करता ।।
 चिन्तायास्तु चितायास्तु
 बिन्दु मात्रम् विशेशतः ।
 चिता दहति निर्जीवम्
 चिन्ता दहति जीवितम् ॥

हिन्दी अर्थ :- 

यहां बताते है की चिंता और चिता ईन दोनो शब्दों में बहोत फर्क नहीं है , केवल एक बिंदु ( ंं ) मात्र का फर्क है । परंतु जो चिता है वह निर्जीव(मृत) शरीर को जलाती है , और चिंता ( ंं ) जिवित शरीर वाले मनुष्य को जलाती हैं ।

 लालयेत् पञ्च वर्षाणि
 दश वर्षाणि ताडयेत् ।
 प्राप्ते तु षोडशे वर्शे
 पुत्रे मित्रवदाचरेत् ॥

हिंदी अर्थ :- 

यहा पर पुत्र को अच्छे संस्कार देने हेतु उसका किस तरह से पालन करना चाहिए यह बताया है , कहते है जन्म से पांच वर्ष तक बालक को बडे लाड-प्यार से पलना चाहिए । उसके बादके दश वर्ष (पांच से पंद्रह) मोह का त्याग कर उसे आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा भी करे । ओर जब वह सोलह वर्ष का हो जाए तब उसके साथ मीत्र की तरह व्यवहार करे ।

 आयुषः खण्डमादाय
 रविरस्तमयं गतः ।
 अहन्यहनि बोध्दव्यं
 किमेतेत् सुकृतं कृतम् ।।

हिन्दी अर्थ :-

प्रतिदिन सुर्य के अस्त होने के साथ हमारे आयुष्य का एक दिन कम हो रहा हे यह ध्यान में रखते हुए , हमे हमारे पुरे दिन के कीये हुए अच्छे कार्यो का विचार करना चाहिए ।

 मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणं
 चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणं।
 मित्रं विना नास्ति शरीर तोषणं
 विद्यां विना नास्ति शरीरभूषणं॥

हिन्दी अर्थ:- 

यहां कहते है की मात्रा(संतुलित आहार) के समान शरीर को पोषण नहीं है । शरीर का शोषण चिंता के समान कोई नही कर सकता । शरीर को आनंद(सुख ) मीत्र के समान कोई नहीं सकता । शरीर के आभूषणो मे विद्या के समान कोई नहीं हो सकता।।

 परिवर्तिनि संसारे 
 मॄत: को वा न जायते।
 स जातो येन जातेन
 याति वंश: समुन्न्तिम्॥


हिन्दी भावार्थ :-

ईस परिवर्तनशील संसार मे अमर कौन है ? अर्थात् सभी मृत्यु को प्राप्त होते ही है, पर वह अमर कहलाता है जीसने अपने वंश को उन्नत(प्रख्यात) कीया है। उसका जन्म सफल कहलाता है।

FAQ For jivan subhashit :-

१. आयुष्य के एक क्षण की किम्मत क्या हे ?
बुद्धमान मनुष्य अपने जीवन के आयुष्य की एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देता , क्योकि संसार के सभी रत्नो को देनेसे भी आयुष्य का एक क्षण भी वापस नहीं पाया जाता। 
२. "चिता चिन्ता समाप्रोक्ता  ..." इस सूक्ति का अर्थ क्या हे ?
यहाँ अग्नि वाली चिता और मन की चिंता के भेद बताये हे कि दिखने में तो दोनोमे केवल एक बिंदु का ही फर्क हे , पर एक मरे हुए को जलाती हे और दूसरी जीवित को जलाती ही। 
३. व्यायाम से क्या फायदे हे ?
व्यायाम से उत्तम स्वास्थ्य , दीर्घ आयुष्य , बाहुबल और सुख की प्राप्ति होती हे। 
४. "मनः एव मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयोः " सूक्ति का अर्थ क्या हे ?
शास्त्रों में मन कि बहोत बड़ी व्याख्या की हुई हे ,क्योकि  मोक्ष मार्ग में समत्व का जो भाव हे, और  जो वैराग्य का भाव हे उसमे यह समझना अति आवश्यक हे की मन ही मनुष्यके सभी प्रकारके बंधनो या फिर मोक्ष का कारण व साधन हे।