व्यवहार - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

व्यवहार - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित


व्यवहार - सुभषित【संस्कृत सुभाषित】[Sanskrit subhash for Behavior]

-: सुभाषित :-

लक्ष्मीर्लक्षणहीने च 
कुलहीने सरस्वती ।
अपात्रे लभते नारी
मेघ वर्षन्तु पर्वते ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
जो व्यक्ति लक्षण हीन है उसे लक्ष्मी की प्राप्ति होना और कुलहीन है अधम है उसे सरस्वती(ज्ञान) की प्राप्ति होना , जो पात्र नही है उसे स्त्रीकी प्राप्ति होना यह तीनों पर्वत पर वृष्टि के समान व्यर्थ है ।

अतिपरिचयादवज्ञा 
सन्ततगमनादनादरो भवति ।
मलये भिल्लपुरन्ध्री 
चन्दनतरुकाष्ठमिन्धनं कुरुते ॥
  • हिन्दी अर्थ :- 
यहा हमे यह सिख मिलती है कि किसीके भी यहा हररोज नही जाना चाहिए इससे मान हानि होती है हमारा अनादर होने लगता है जैसे मलय गिरी पर्वत पर अधिक मात्रा में चंदन के वृक्ष होने पर वहां जी स्त्रियां चंदन का ईंधन के तौर पर उपयोग करती है ।

अल्पानामपि वस्तूनां 
संहतिः कार्यसाधिका ।
तृणै र्गुणत्वमापन्नै 
र्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः ॥
  • हिन्दी अर्थ :-
थोड़े लोगो का या वस्तुओ का समूह बहोत से कार्यो को साधने में सफल होते है क्योंकि तृणों के समूह से बना रस्सा किसी बी उन्मत्त हाथियो को बांध सकते है । 

शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा
यस्तु क्रियावान् पुरूष: स विद्वान् ।
सुचिन्तितं चौषधमातुराणां
न नाममात्रेण करोत्यरोगम् ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी लोग मूर्ख रहते है. परन्तु जो कॄतीशील है वही सही अर्थ से विद्वान है। किसी रोगी के प्रति केवल अच्छी भावनासे निश्चित किया गया औषध रोगी को ठिक नही कर सकता। वह औषध नियमानुसार लेनेपर ही वह रोगी ठिक हो सकता है।
गतेर्भंग: स्वरो हीनो 
गात्रे स्वेदो महद्भयम् ।
मरणे यानि चिह्नानि
 तानि चिह्नानि याचके ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
चलते समय लथड़ाना , मुख से स्वर न निकलना स्वर हीन होना , कानो से  स्वेद(पसीना) छूटना  , भय लगाना यह सभी मृत्यु समीप होने के लक्षण है , वही किसी दोपहर को थके हुए याचक की भी यही स्थिति होती है ।
न कालो दण्डमुद्यम्य 
शिर: कॄन्तति कस्यचित् ।
कालस्य बलमेतावत् 
विपरीतार्थदर्शनम् ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
समय कभी किसी को दंड उठाकर शिक्षा नही करता , ओर ना ही तलवार से किसीका शिर छेदता क्योकि काल की क्षमता उतनी ही कि वह हमारी बुद्धि को विपरित अर्थ का ही दर्शन कराता है । और यह बुद्धि भेद ही उसकी क्षमता या बल है ।
बुधाग्रे न गुणान् ब्रूयात्
साधु वेत्ति यत: स्वयम्।
मूर्खाग्रेपि च न ब्रूयाद्धु-
धप्रोक्तं न वेत्ति स:।।
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा स्पष्ट होता है कि हमे कभी भी अपने गुण किसीके सामने स्वयं नही प्रगट करने चाहिए क्योंकि किसी बुद्धिमान के सामने गुणों को कहने की आवश्यकता नही होती वह अपने स्वभाव से स्वयं जान लेते है , वैसे ही मूर्ख के सामने भी गुणों को नही बोलना चाहिए क्योंकि कहने पर भी वे नही समजेंगे ।
अन्यक्षेत्रे कॄतं पापं 
पुण्यक्षेत्रे विनश्यति ।
पुण्यक्षेत्रे कॄतं पापं
वज्रलेपो भविष्यति ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
कहीभी जगह आपसे पाप होता है तो वह किसी पवित्र या धर्म क्षेत्र  पर नष्ट हो जाता है परंतु जो मनुष्य उस पवित्र या पुण्य या धर्मक्षेत्र में पाप करता है उसका पाप इंद्र के वज्र के समान कठोर हो जाता है वह कही नही धुलता उसका फल भुगतना ही पड़ता है ।

आर्ता देवान् नमस्यन्ति,
तप: कुर्वन्ति रोगिण: ।
निर्धना: दानम् इच्छन्ति,
वॄद्धा नारी पतिव्रता ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
सच मे जो मनुष्य संकट में होता है तब उस समय उसे भगवान की याद आती है वह नमन करता है , ओर जो रोगी होता है वह अपने रोग दूर करने के लिए कोई भी तप करने के लिए तैयार हो जाता है , जो धनहीन मनुष्य होता वही यह कामना करता है कि मुझे दान करना है , ओर जो वृद्ध स्त्री है वह वृद्धावस्था में पतिव्रता बनाने का प्रयास करती है । इस तरह समय समय पर अपनी अनानुकूलता के कारण सब गुणों को धारण करते है ।
न निर्मितः केन न दृष्टपूर्वः
 न श्रूयते हेममयः कुरङ्गः ।
तथापि तृष्णा रघुनन्दनस्य
 विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ॥
  • हिन्दी अर्थ :-
सही कहा है जब हमारा विनाश काल समीप होता है तब हमारी बुद्धि भी विपरीत हो जाती है जैसे कभी न जन्मा , किसीने कभी नही देखा , ना ही उसके बारे में सुना सोने का हिरण होता है ऐसा तभी भी तृष्ना के कारण भगवान राम हिरण के पीछे भागे उसे पकड़ने के लिए ।

सन्तप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते
मुक्ताकारतया तदेव नलिनीपत्रस्थितं राजते ।
स्वात्यां सागरशुक्तिमध्यपतितं सन्मौक्तिकं 
प्रायेणोत्तममध्यमाधमदशा संसर्गतो जायते ॥
  • हिन्दी अर्थ :-
वाह बहोत खूब कहा है यहा जल का उदाहरण देते हुए कहते है कि जल यदि गरम लोहे पर गिरता है तो उसका नाम निशान भी नही बचता भाफ बन जाता है और वही यदि कमल के पत्ते पर गिरे तो मोती की तरह लगता है , वही जल यदि स्वाति नक्षत्र में किसी सागर में छिप के मध्य गिरे तो सच्चा मोती बन जाता है इस तरह अधम , मध्यम ओर उत्तम फल हमारे संग से संसर्ग के फल स्वरूप मिलता है ।।

अनाहूतः प्रविशति 
अपॄष्टो बहु भाषते ।
अविश्वस्ते विश्वसिति
मूढचेता नराधमः ॥
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा कहते है कि केसी के आवाहन यत् बुलाये बिना वहां पहोच जाना , बिना पूछे बहोत बोलना , विश्वास के योग्य न हो उस पर विश्वास करना ये सभी मूर्खो के लक्षण है । अधम मनुष्यो की पंक्ति में आते है ।

त्यजेत् क्षुधार्ता जननी स्वपुत्रं ,
खादेत् क्षुधार्ता भुजगी स्वमण्डम् ।
बुभुक्षित: किं न करोति पापं ,
क्षीणा जना निष्करूणा भवन्ति ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
भूख मनुष्य से क्या क्या नही करवाती , कहते कि भूख के कारण कोई माता अपने पुत्र का त्याग कर देती है , भूख से सर्पिणी अपने ही पुत्रो को  खा लेती है इसीलिए कहते है कीजो भूखा है वह कौनसा पाप नही करता और इस क्षीण लोग ही कर सकते है जिनमे करुणता का अंश भी नही है।

अमॄतं चैव मॄत्युश्च 
द्वयं देहप्रातिष्ठितम् ।
मोहादापद्यते मॄत्यु: 
सत्येनापद्यतेऽमॄतम् ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा कहते है की अमरता ओर मृत्यु दोनो ही हमारे शरीर मे साथ मैं निवास करते है , बस मोह के कारण मृत्यु आती है और सत्य के कारण अमरत्व की प्राप्ति होती है।