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परिश्रम - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

परिश्रम - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
Niraj joshi

परिश्रम - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

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परिश्रम (महेनत) बहोत ही ताक़तवाला शब्द है । बिना महेनत के किसीको भी सफलता नही मिलती , सफल होने के लिए परिश्रम रूपी तप तो करना ही पड़ता है । पर दिक्कत होती है , की लोग गलत रास्ते पर परिश्रम करते है , यह उस बिना लगाम के घोड़े की तरह हुआ जिसका कोई लक्ष्य ही निर्धारित नही है । तब लक्ष्य को पाना यानी सफल होना कैसे संभव है । 
इस का उपाय हमारे ऋषियों ने शास्त्रों में सुभाषितों के द्वारा बताया है । जो हमे किस दिशा में महेनत करनी चाहिए सिखाता है । 

परिश्रम - सुभाषित 【संस्कृत सुभाषित】[sanskrit subhashit for hardwork]

तो आइए हम जानते है संस्कृत के परिश्रम सुभाषीत । 

-: सुभाषित :- 

१ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

आलस्यं हि मनुष्याणां
 शरीरस्थो महान् रिपुः ।
 नास्त्युद्यमसमो बन्धुः यं
 कृत्वा यं नावसीदति ।।
हिंदी भावार्थ:-
 यहा नीति कहती है कि मनुष्य के जीवन का उसके शरीर का सबसे बडा रिपु(शत्रु) आलस्य है ओर वैसे ही मनुष्य का सबसे बड़ा बंधु(मित्र ) उद्यम(परिश्रम ) के समान कोई नही है , ओर अन्तमे कहते है कि जो मनुष्य उद्यम (परिश्रम ) करता है वह इस आलस्य को प्राप्त नही करता ।

Sanskrit_gyan


२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

यथा ह्येकेन चक्रेण न
  रथस्य गतिर्भवेत् |
 एवं परुषकारेण
 विना दैवं न सिद्ध्यति ।।
हिंदी भावार्थ:-
 यहा भाग्य और परिश्रम का भेद बताते हुए कहते है कि जिस तरह से केवल एक चक्र (पहिये) से रथ की गति नही होती अर्थात् रथ आगे नही बढ़ सकता उसी तरह परिश्रम के बिना केवल भाग्य के आधार पर जीवन मे आगे नही बढ़ सकते , अर्थात् जो व्यक्ति केवल भाग्य के भरोसे पर कोई भी कार्य करते है वे कभी सफल नही हो पाते सफल होने के लिए भाग्य के साथ परिश्रम अति आवश्यक होता है ।

Sanskrit_gyan


३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,
 कार्याणि न मनोरथै।
 न हि सुप्तस्य सिंहस्य,
  प्रविशन्ति मृगाः॥
हिंदी भावार्थ:-
 बहोत से लोग ऐसे होते है जो करते कुछ नही पर बोलते बहोत है और मनमे रथ दौड़ाकर अर्थात् विचारो से बहोत काम करते है पर हकीकत मे कुछ नही उनके लिए यहा कहते है कि उद्यम (परिश्रम)से कार्य सिद्ध होते मनोरथ (मनके विचार)से नही ], उदाहरण के तौर पर एक सिंह है वह यदि केवल सोते हुए यह सोचे कि उसके मुंह मे हिरण स्वयं चलकर प्रवेश कर रहा है तो इस तरह के मनोरथो से क्या उसकी भूख मिट जाएगी क्या सहिमे कोई हिरण उसके मुंह मे आ जायेगा ? नही इस के लिए उसे अथक परिश्रम करना पड़ेगा हिरण के पीछे बहोत भागना पड़ेगा महेनत करनी पड़ेगी तब जाकर उसे हिरण मिलेगा इसी तरह हमे भी कोई भी कार्य करना है तो उस लिए अथक परिश्रम कि आवश्यकता है ।।

Sanskrit_gyan


४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

नात्युच्चशिखरो मेरुर्-
 नातिनीचं रसातलम्।
 व्यवसायद्वितीयानां
 नात्यपारो महोदधि:॥
हिंदी भावार्थ:-
 जो मनुष्य उद्यमी(परिश्रमी) है उस व्यक्ति के लिए तो सबकुछ संभव है उस के लिए मेरु पर्वत भी अति उच्च नही है , अति नीच रसातल भी नही है , ओर ना ही महासमुद्र अति विशाल है ।

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५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

आरभ्यते नखलु विघ्नभयेन नीचै:
 प्रारभ्य विघ्नविहता विस्मरन्ति मध्या: ।
 विघ्ने: पुन: पुनरपि प्रतिहन्यमाना:
 प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति ।।
हिंदी भावार्थ:-
 यहा पर संसार मे तीन प्रकार के मनुष्य की बात कही गई है कहते कि जो मनुष्य भविष्य में आने वाले विघ्नों(कष्टो) के डर से कार्य का आरंभ ही न करे वह अधम(नीच) प्रकार का मनुष्य है , ओर जो मनुष्य कार्य आरंभ तो कर देता है परंतु विघ्नों के आने पर कार्य का त्याग कर देता है वह मध्यम प्रकार के मनुष्य है , ओर जो मनुष्य विघ्नों पुनः पुनः आने पर भी भयभीत हुए बिना उनका सामना करता है और कार्य को न छोड़ते हुए कार्य को सफल बनाता है वह उत्तम प्रकार का मनुस्य है ।।

Sanskrit_gyan


६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

यो यमर्थं प्रार्थयते
  यदर्थं घटतेऽपि च।
 अवश्यं तदवाप्नोति
 न चेच्छ्रान्तो निवर्तते।।
हिंदी भावार्थ:-
 यहा दृढ़ इच्छाशक्ति वाले मनुष्य की बात कही गई है कि जो मनुस्य कुछ पाना चाहता है सफलता पाना चाहता है और उसके लिये घटते(प्रयास ) करता है वह उसे जरूर प्राप्त करता है , नहीतो वह तबतक शांत नही होता जबतक कार्य सिद्ध न हो जाय ।

Sanskrit_gyan


७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-

आरोप्यते शिला शैले
 यत्नेन महता यथा ।
 पात्यते तु क्षणेनाध
 स्तथात्मा गुणदोषयो: ।।
हिंदी भावार्थ:-
 यहा कहते है कि किसी बड़े से पत्थर को पर्वत पर चढ़ना बहोत हो मुश्किल होता है बहोत बड़े प्रयत्नों से चढ़ाया जाता है वही उसे गिराना बहोत आसान केवल एक क्षण में ही नीचे गिर जाता है वैसे गुणों को बढ़ाना बहोत मुश्किल कार्य है दोष तो क्षण में आ जाते है ।

Sanskrit_gyan



6 टिप्पणियां

  1. Niraj joshi
    Niraj joshi
    Supper
  2. Learn Physics Easily
    Learn Physics Easily
    very good
  3. Unknown
    Unknown
    कृत्वा यं नावसीदति इति किम्? महोदय कृपया उत्तर दे
    1. ASHISH JOSHI
      ASHISH JOSHI
      महोदय यहा पर ..जो व्यक्ति यह उद्यम करता है वह आलास्यता को प्राप्त नही करता । दुःखता को प्राप्त नही करता
  4. Unknown
    Unknown
    उत्तम
  5. Unknown
    Unknown
    very nice
आपके महत्वपूर्ण सुझाव के लिए धन्यवाद |
(SHERE करे )