क्रोध - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
8/30/2020 04:07:31 pm
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क्रोध - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
"क्रोधो सर्वार्थ नाशको" यह तो नीश्चीत है कि जो क्रोध करता है उसके सभी कार्यों का नाश होता है। क्योंकि क्रोध एक एसी मनोदशा है जो मनुष्य को पागल के समान बना देती है । क्रोध के आवेश मे आकर मनुष्य क्या करता है वह उस स्वयं को पता नही होता है । एसे मे उससे गलत कार्य हो जाता हैं ओर बाद सिर्फ पछतावे के सिवा और कुछ हाथमें नहीं होता ।
ईसीलिये हमें यत्नों से अपने क्रोध को नियंत्रित रखना चाहिए ईसे जानने के लिए हमारे पुर्वज ऋषिओ की देन क्रोध सुभाषित हमे बहुत उपयोगी साबित होंगे।..
चलीए जानते है संस्कृत के कुछ क्रोध सुभाषित।...
-: सुभाषित :-
क्रोधो वैवस्वतो राजातॄष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुघा धेनु:सन्तोषो नन्दनं वनम्॥
- हिन्दी अर्थ :-
वैवस्वत(यमलोक) का राजा यमराज के समान क्रोध होता है , ओर भयंकर वैतरणी नदी के समान तृष्णा होती है । माता कामदुधा धेनु के समान फल देने वाली विद्या होती है , आनंद वैन के समान संतोष होता है अब आप पर निर्भर है कि आप किसी चुनते है ।।
-: सुभाषित :-
क्रोधमूलो मनस्तापःक्रोधः संसारबन्धनम्।धर्मक्षयकरः क्रोधःतस्मात्क्रोधं परित्यज॥
- हिन्दी अर्थ :-
क्रोध ही मनके दुःख(ताप) का कारण है , संसार के बंधन का कारण भी क्रोध हैं, धर्म का क्षय करने वाला भी क्रोध है , इसी लिए बुद्धिमान को क्रोध का परित्याग करना चाहिए ।।
-: सुभाषित :-
षड्दोषाः पुरुषेणेह
हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा, तन्द्रा, भयं, क्रोधो
आलस्यं, दीर्घसूत्रता॥
जीवन सुख की इच्छा वाले व्यक्ति को इन छह दोषो का त्याग करना चाहिए 1 . निद्रा 2. तंद्रा , 3. भय 4. क्रोध 5. आलास्य 6. देरी से कार्य करना ।।
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयंशौचमिन्द्रियनिग्रहः ।धीर्विद्या सत्यमक्रोधो ,दशकं धर्म लक्षणम् ॥
- हिन्दी अर्थ :-
इस श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये है 1. धृति(धैर्य), 2. क्षमा, 3. दमः(कामनाओ का दमन), 4. अस्तेय(चोरी न् करना) , 5. शौच(पवित्रता) 6. इन्द्रियनिग्रह , 7. धी:(बुद्धि) , 8. विद्या , 9.सत्यम् , 10. क्रोधः ।।
ध्यायतो विषयान् पुंस:संगस्तेषूपजायते ।संगात् संजायते काम:कामात् क्रोधोऽभिजायते ।।
- हिन्दी अर्थ :-
मनुष्य के क्रोध का एक यह भी कारण है कि वह विषयो का ध्यान करता है उससे उसमे आसक्ति होती है , ओर आसक्ति के कारण कामनाए जन्म लेती है एवं कामनाओ के कारण क्रोध की उत्पत्ति होती है ।
अत्यन्तकोपः कटुका च वाणीदरिद्रता च स्वजनेषु वैरं ।नीचप्रसङ्ग: कुलहीनसेवाचिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् ॥
- हिन्दी अर्थ :-
जिसमे अत्यंत क्रोध , कटु वाणी , दरिद्रता , सम्बन्धियो से शत्रुता , नीच संगति , कुलहीन की सेवा यह सभी लक्षण होते है वह यहां पृथ्वी पर ही नरक भोगने का फल पाता है ।।
लोभात् क्रोधः प्रभवतिलोभात् कामः प्रजायते ।लोभात् मोहश्च नाशश्चलोभः पापस्य कारणम् ।।
- हिन्दी अर्थ :-
क्रोध की उत्पत्ति लोभ से होती है , ओर लोभ से ही काम की उत्पत्ति होती है । लोभ से ही मोह ओर नाश का कारण भी लोभ है , लाभ से ही मनुष्य पाप करता है ।।
अक्रोधेन जयेत् क्रोधमसाधुं साधुना जयेत् ।जयेत् कदर्यं दानेनजयेत् सत्येन चानृतम् ।।
- हिन्दी अर्थ :-
क्रोध का त्याग करके ही क्रोध को जीता जा सकता है , साधु बनकर ही असाधु से जीता जा सकता है , दान से ही कंजूसी प्रवृत्ति को हरा सकते है , सत्य से ही असत्य को जीता जा सकता है ।।
ये क्रोध सुभाषित आपको जरूर कुछ उपयोगी हो ।