कर्म - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

कर्म - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित

हमारे शास्त्रों में कर्म के बारे में बहोत कुछ कहा गया हे , यहाँ तक हम जानते हे की कर्म किये बिना कोई रह ही नहीं सकता सामान्य भाषामे समजे तो यदि हम सो रहे हे तो सोने का कर्म कर रहे हे और यदि सोव्हा रहे हे तो सोचने का कर्म कर रहे हे | और ज्ञान की भाषामे समजे तो हम जो कर्म करते हे वह मुख्या रूप से दो प्रकार का हो सकता हे एक तो अच्छा और दूसरा बुरा शास्त्रों में अच्छा कौनसा हे और बुरा कौनसा हे इस बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने बहोत ही संक्षिप्त में बताया हे की जो परोपकारी हे वह पुण्य यानि अच्छा कर्म हे और जो परपीड़ा दायक कर्म हे वह पाप यानि बुरे कर्म हे।  

कर्म - सुभाषित【संस्कृत सुभाषित】[ sanskrit subhashit]


इसी प्रकार इन अच्छे और बुरे कर्मो का फल भी समय आने पर भुगतना ही पड़ता हे , तो आइये जानते हे कर्म के सिद्धांतो को सुभाषितो के द्वारा। ...कर्म सुभाषित 

-: सुभाषित :- 

 नाभिषेको न संस्कार:
 सिंहस्य क्रियते मृगैः ।
 विक्रमार्जितराज्यस्य
 स्वयमेव मृगेंद्रता ।।

  • हिन्दी अर्थ :-
मृगादि के द्वारा सिंह का किसीभी प्रकार का राज्याभिषेक या संस्कार नही होता है। अपितु सिंह स्वयं के पराक्रम से मृगेन्द्रता(पशुओं का राजा) को प्राप्त करता है।

-: सुभाषित :-

 गते शोको न कर्तव्यो
 भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
 वर्तमानेन कालेन
 वर्तयन्ति विचक्षणाः॥

  • हिन्दी अर्थ :-
बुद्धिमान व्यक्ति जो हो चुका है उस पर दुःख(शोक) नही करते, और ना ही भविष्य की चिंता करते है । ऐसे विचक्षण लोग केवल वर्तमान को ध्यान में रखकर वर्तन करते है।

 यथा धेनुसहस्त्रेषु
 वत्सो विन्दति मातरम्।
 तथा पूर्वकॄतं कर्म
 कर्तारमनुगच्छत्॥

  • हिन्दी अर्थ :-
जिस तरह हजारों गायो बीच कोई बछड़ा अपनी माता को पहचान लेता है , बस उसी प्रकार से पूर्व में कृत अच्छे या बुरे कर्म कर्ता को पहचान कर अनुगमन करते है ।

 अकॄत्यं नैव कर्तव्य
 प्राणत्यागेऽपि संस्थिते।
 न च कॄत्यं परित्याज्यम्
 एष धर्म: सनातन:॥

  • हिन्दी अर्थ :-
जो कार्य करने योग्य न हो उन्हें प्राण के भोग पर भी नही करना चाहिए । ओर जो करने योग्य है जो कर्तव्य है उनका कभी त्याग नही करना चाहिए यही सत्य सनातन धर्म है।


न धैर्येण विना लक्ष्मी-    
र्न शौर्येण विना जयः।
न ज्ञानेन विना मोक्षो
न दानेन विना यशः॥
  • हिन्दी अर्थ :-
यहा कहते है कि लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए धैर्य का होना आवश्यक है , विजय प्राप्ति के लिये शौर्य (पराक्रम ) का होना आवश्यक है , मोक्ष प्राप्ति हेतु ज्ञान का होना आवश्यक है और यश प्राप्ति के लिए दान करना आवश्यक है इनके बिना यह सब प्राप्त नही होता ।

 मनसा चिन्तितंकार्यं
 वचसा न प्रकाशयेत्।
 अन्यलक्षितकार्यस्य
 यत: सिद्धिर्न जायते॥

  • हिन्दी अर्थ :-
मन मे चिंतन किये हुए किसीभी कार्य को मुख से कीसीको भी नही बताना चाहिए । कह देने से किसी ओर की दृष्टि उस कार्य पर लगने से वह कार्य पूर्ण नही होता (कार्य सिद्ध नही होता )।

 अर्थाः गृहे निवर्तन्ते
 श्मशाने पुत्रबान्धवाः। 
 सुकृतं दुष्कृतञ्चैव
 गच्छन्तमनुगच्छति ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
यहां पर बताते है कि परलोक में मृत्यु के बाद क्या साथ में आता है  कहते है आजीवन कमाया हुआ धन घरपर ही रह जाता है , पुत्र ,संबंधी स्मशान तक ही रहते है ,किन्तु जीवन मे कीए गए अच्छे या बुरे कर्म जाने वाले के साथ रहते है 

 काकः कृष्णः पिकः
 कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
 वसंत समये प्राप्ते
 काकः काकः पिकः पिकः ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
कौआ काले रंग का होता है और कोयल भी काले रंग की होती है तो इन दोनोमे अंतर(भेद) का कैसे पता चलता है । तो कहते है वसंत ऋतु में समय आने पर कोयल की ओर कौए की आवाज सुनकर स्पस्ट हो जाता है । इसी प्रकार किसी मनुष्य का सही रूप समय आने पर पता चल जाता है।।

 सुखस्य दुःखस्य न कोSपि दाता 
 परोददातीति कुबुद्धिरेषा ।
 अहं करोमीति वृथाSभिमानः 
 स्वकर्मसूत्र ग्रथितो हि लोक: ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
सुख या दुःख जा कोई दाता नही होता , किसी ओर के कारण मिला है इसा मानना मूर्खता है । और में ही सभी कार्य करता हु ऐसा वृथा अभिमान रखना भी मूर्खता है । सभी अपने अपने कर्म सूत्र से बंधे है उस आधार पर फल प्राप्त करते है ।

 कराग्रे वसते लक्ष्मीः
 कर मूले सरस्वती ।
 करमध्येतु गोविंद
 प्रभाते कर दर्शनम् ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
हाथ के आगे के उंगलियों वाले भागमे लक्ष्मीजी , हाथ के मूल में कांडे वाले भाग में सरस्वती ओर हाथ के मध्य भाग में भगवान श्रीकृष्ण का वास है मैं प्रातः ऐसे हाथ(कर) का दर्शन करता हु ।

सर्वदा सर्वकार्येषु 
नास्ति तेषाममङ्गलम् ।
येषां हृदिस्थो भगवान् 
मङ्गलायतनो हरिः ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
मंगलकारी जिनका शरीर है ऐसे हरि जिनके हृदय में बिराजमान है उनका हमेशा , सभीकार्यो में मंगल होता है , कभी अमंगल नही होता।

आदानस्य प्रदानस्य 
कर्तव्यस्य च कर्मण: ।
क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य
काल: पिबति तद्रसम् ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
जीवन मे कही दान ग्रहण करना है या फिर कीसीको प्रदान करना है या फिर अपना कर्तव्य समझकर कोई कर्म करना है । उसे यदि उपयुक्त समय पर नहीं होता हैं तो काल(समय) उस कार्य का सारभूत रस को पी लेता है ।।

नीरक्षीरविवेके हंस 
आलस्यम् त्वम् एव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन् अधुना
अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क: ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
समय पर जब योग्य पुरुष अपना कर्तव्य छोड़ देता है तब केसी स्थिति बनती है वह यहा हंस के द्वारा बताई जा रही है कहते है कि नीर(जल) और क्षीर(दूध) अलग करने की क्षमता हंस तुममे है और तुम ही इस कार्य मे आलस करोगे तो विश्व मे इस समय कौन अपना कुलकी परंपराओं का पालन करेंगे ।।

 यद्यत् परवशं कर्मं
 तत् तद् यत्नेन वर्जयेत् ।
 यद्यदात्मवशं तु स्यात्
 तत् तत् सेवेत यत्नत: ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
नीति कहै है, हमे  आत्मनिर्भर बनना चाहिए जीवन मे जो कार्य पराश्रित हो उनका यत्न से त्याग करना चाहिए और जो आत्माश्रित कार्य हो उनका प्रयत्न से सेवन करना चाहिए ।।

 नात्यन्त गुणवत् किंचित्
 न चाप्यत्यन्तनिर्गुणम् ।
 उभयं सर्वकार्येषु
 दॄष्यते साध्वसाधु वा ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
कोईभी कार्य अत्यंत गुणवान नही होता वैसे ही कोईभी कार्य अत्यंत निर्गुण नही होता , अभी कार्य अच्छे और बुरे दोनो गुणों से युक्त होते है । वह देखने वाले कि दृष्टि पर निर्भर करता है ।।

 यदीच्छसि वशीकर्तुंं
 जगदेकेन कर्मणा ।
 परापवादससेभ्यो
 गां चरन्तीं निवारय ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
यदि केवल एक काम करके विश्व को वश करना है तो बस परनिंदा रूपी खेत से अपनी गो(जिह्वा ) को निवार (हकाल) दो पूरी दुनिया आप के वश में हो जाएगी ।।

 वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये
 महार्णवे पर्वतमस्तके वा।
 सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा
 रक्षन्ति पुण्यानि पुरा कृतानि।।
  • हिन्दी अर्थ :-
हमे यह प्रश्न बहोत सुनने को मिलता है कि पुण्य करने से क्या लाभ है, यह बताते है कि वनमे , युद्ध मे , शत्रु-जल-अग्नि के मद्य मैं महासागर में , पर्वत की चोटियों पर, शयन अवश्था मे, बेहोशिकी स्थिति मे, कठिन परिस्थितियों में हमारे पूर्व में किये गए पुण्य हमारी रक्षा करते हैं।।

 न कश्चिदपि जानाति
 किं कस्य श्वो भविष्यति ।
 अतः श्वः करणीयानि 
 कुर्यादद्यैव बुद्धिमान् ॥
  • हिन्दी अर्थ :-
यह कोई नही जानता है कि कल किसका क्या होगा, बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो कल करने वाले कार्यो को प्रयत्न से आज ही करे ।।

 कर्तव्यम् आचरं कार्यम्
 अकर्तव्यम् अनाचरम् ।
 तिष्ठति प्राकॄताचारो
 य स: आर्य इति स्मृतः ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
जो आचरण योग्य कार्यो को ही करता है , अनाचार युक्त कार्य का त्याग करता है  । प्रकृति के अनुकूल आचार के साथ जो चलता है वही आर्य कहलाता है । 

तत्कर्म यन्न बन्धाय
सा विद्या या विमुक्तये ।
आयासायापरं कर्म
विद्यान्या शिल्पनैपुणम् ॥
                                                        - विष्णुपुराण
  • हिन्दी अर्थ :-
यहाँ यह कहते की जो हमें बंधन मे डाल दे वह कर्म नहीं हे , वैसे ही जो विद्या हमें सही ज्ञान देकर मुक्त न बनाए वह विद्या भी नहीं हे। क्योकि बंधनो में डालने वाले कर्म तो परिश्रम हे , और जो मुक्त न बनावे वह कला , विषय , निपुणता आदि विद्याये केवल कौशल हे। 

कार्यमण्वपि काले तु   
कॄतमेत्युपकारताम् ।
महदप्युपकारोऽपि 
रिक्ततामेत्यकालत: ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
बहोत ही लघु (छोटा) कार्य भी समय रहते कियत् जाए तो वह काम उपकारक होता है , वैसे ही कोई बृहद(बडा) उपकारक कार्य भी समय रहते नही होता और समय निकलने के बाद होता है तो वह काम किसी कार्य का नही होता ,निष्फल कार्य कहलाता है ।।

श्रमेण दु:खं यत्किन्चि
कार्यकालेनुभूयते । 
कालेन स्मर्यमाणं तत् 
प्रामोद इत्युच्यते ।।
  • हिन्दी अर्थ :-
जब किसी कार्य के लिए श्रम करते है तब कष्ट (दु:ख) तो होता है परंतु जब भविष्य में उस कार्य का स्मरण होता है तब वह आनंद देता है ।। 

आस्ते भग आसीनस्य
ऊध्र्वम् तिष्ठति तिष्ठत:। 
शेते निषद्यमानस्य
चरति चरतो भग:।।
  • हिन्दी अर्थ :-
भाग्य हमारे कर्म के आधार पर फल देता है यहा कहते है कि जो व्यक्ति कर्म मार्ग पर बैठा रहता है तो उसका भाग्य भी बेठ जाता है । जो खड़ा रहता है उसका भाग्य भी खड़ा रहता है , ओर जो सो जाता है उसका भाग्य भी सो जाता है एवम् जो चलता है उसका भाग्य भी चलने लगता है । इसे ध्यान में रख कर कोई भी कार्य करना चाहिए ।।

FAQ For Karm subhashit :-

१. बुद्धिमान लोग कैसी सोच रखते हे ?
 बिद्धिमान लोग जो हो गया हे उस पर दुखी नहीं होते , और जो होगा उसकी चिंता नहीं करते। बस वर्तमान में ही जीते हे वर्तमान देखकर कार्य करते हे। 
२.कर्म का सिद्धांत क्या है ?
इस बारे में एक उदहारण दिया है की जिस तरह एक बछड़ा हजारो गायो में भी अपनी माता को पहचान लेता हे ,वैसे ही कर्म भी अपने कर्ता का अनुसरण करते हे। 
३. सनातन धर्म क्या हे ? 
सनातन धर्म वह हे जो हमें जीवन जीना सिखाता हे , सनातन धर्म हमें सिखाता हे की जो न करने योग्य कार्य हो उन्हें प्राण देकर भी नहीं करने चाहिए। 
४. क्या मनकी बात किसी को करनी चाहिए ?
शास्त्रों में कहा हे की मन में जो कार्य करने का सोचा हे, वह पूर्ण हो जाने तक किसीके सामने नहीं कहना चाहिए क्योकि उस कार्य पर किसी और की दृष्टि लगने से वह कार्य पूरा नहीं होता।