वेद का सम्पूर्ण परिचय:-
वेद का सम्पूर्ण परिचय:-
संस्कृत साहित्य मैं वेदों का स्थान सर्वोपरि है । भारत मे धर्म व्यवस्था वेदों से ही है । और वेद धर्म निरूपण मैं स्वतंत्र प्रमाण हैं, स्मृति इत्यादि उसीका अनुसरण करते है। यदि श्रुति ओर स्मृति की तुलना की जाए तो श्रुति(वेद) ही सर्वोपरि है। ना ही केवल धर्म के मूल के रूप में अपि तु विश्वके सबसे प्राचीन ग्रंथ के रूप में भी वेद ही सर्वश्रेष्ठ है। प्राचीन धर्म , समाज, व्यवस्था आदि का ज्ञान देने में वेद ही सक्षम है ।
मुख्य रूप से वेद के दो प्रकार है १) मंत्ररूप , २) ब्राह्मणरूप । मंत्रसमुदाय ही संहिता शब्द से व्यवहार में आया और ब्राह्मण रूप वेदके भाग रूप संहिताभाग के व्याख्या रूप है। और यही ब्राह्मण भाग यज्ञ स्वरूप को समजाने वाला भाग कहलाया।
ब्रह्माण ग्रंथ भी तीन प्रकार से विभाजित है ----
१)ब्राह्मण
२)आरण्यक
३)उपनिषद
यज्ञस्वरूप को प्रतिपादित करने वाला ब्राह्मणभाग ।
वनमैं पढ़ने योग्य यज्ञ का आद्यात्मिक रूप विवेचक आरण्यक भाग ।
ब्रह्मबोधक , मोक्षसाधन का ज्ञान देने वाला उपनिषद भाग । ओर यही भाग वेद के अंतिम रुप मे वेदांत कहा जाता है । यहा ब्राह्मण भाग गृहस्थी के लिए , आरण्यक भाग वानप्रस्थी के लिए , उपनिषद भाग सन्यासीओ के लिए उपयोगी है कह सकते है ।
चार वेदो के नाम क्या हे :-
(१) ऋग्वेद।
(२) यजुर्वेद।
(३) सामवेद।
(४) अथर्ववेद।
वेद शब्द का शाब्दिक अर्थ और विवेचन:-
यहा ' बहवृक्प्रातिशाक्यम् ' में वेद के विषय मे यह कहा है कि
" विद्यन्ते धर्मादयः पुरुषार्था यैस्ते वेदाः"
अर्थात् धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष इन पुरुषार्थ जिससे है वह वेद है ।
एक अन्य प्रचलित व्याख्या है के ---
" अपौरुषेयं वाक्यं वेद "
अर्थात् जो वाक्य किसी पुरुष से नही कहा है यानी अपौरुषेय है वैसा वाक्य वेद है।
'भाष्य भूमिका' मैं वेद की व्याख्या इस प्रकार से है ---
"इष्टप्राप्तयनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो वेदयति स वेद इति "
अर्थात् जो प्रिय है उसकी प्राप्ति ओर जो अप्रिय है उसका परिहार करने का लौकिक उपाय जो बताता है वह वेद है।
वेद शब्द के बहोत से पर्याय शब्द है यथा ----
1 आम्नाय
2 आगमः
3 श्रुति
4 वेद आदि।
यही वेद - " वेदत्रयी " के पद से व्यायवहार मे बोला जाता है , वेदरचना के तीन प्रकार के कारण त्रयी एसा कहा जाता हैं। जो पद्यमयी है वह ऋक् , जो गद्यमयी है वह यजुुः और जो गान मयी है वह साम ईस तरह से जैैैमिनि के मत से वेदत्रयी हैै।
ऋग्वेद मै अथर्ववेद का नाम उल्लेख देखने के बाद भगवान पतंजलि ने पस्पशाह्निक मै स्पष्ट कहा कि...
" चत्वारो वेदाः साङ्गाः सरहस्याः "
अर्थात् वेद चार है अपने अङ्ग ओर रहस्यो के साथ ।
Introduction of veda in sanskrit
संस्कृतसाहित्ये वेदानां स्थानं सर्वोपरि वर्तते । भारते धर्मव्यवस्था वेदा यत्तैव । वेदो धर्मनिरूपणे स्वतन्त्रभावेन प्रमाणम् , स्मृत्यादयस्तु तन्मूलकतया । श्रुतिस्मृत्योविरोधे श्रुतिरेव गरीयसी । न केवलं धर्ममूलतयैव वेदाः समादृताः , अपि तु विश्वस्मिन् सर्वप्राचीनग्रन्थतयाऽपि । प्राचीनानि धर्मसमाज - व्यवहार प्रभृतीनि वस्तुजातानि बोधयितुं श्रुतय एव क्षमन्ते ।