अथर्ववेद का सम्पूर्ण परिचय।
वैदिक इतिहास में महर्षी व्यास के वेद व्यास करने पर चार भागो में विभाजित वेद ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद इन में चौथा अथर्व वेद अभिचार क्रियाओ के प्राधान्य के कारण से अथर्व नामक ऋषि के दृष्ट होनेसे अथर्ववेद कहा गया।
'निरुक्त' के अनुसार 'थर्व' धातु का अर्थ है गति या चेष्टा थर्व धातु- गति/ चेष्टा अथर्वन् गतिहीन स्थिर। अत: अथर्वन् का अर्थ है गतिहीन या स्थिर । ‘अथर्वाणोऽथर्वणवन्तः । थर्वतिश्चरतिकर्मा, तत्प्रतिषेधः । (निरुक्त-11.18) अर्थात् जिस वेद में स्थिरता या चित्तवृत्तियों के निरोधरूपी योग का उपदेश है, वह अथर्वन् वेद है । अथर्वन् गतिहीन या स्थिरता से युक्त योग ।
'गोपथ ब्राह्मण' अथर्वन् (अथर्वा) शब्द 'अथार्वाक्' का संक्षिप्त रूप माना गया है । अथ + अवाक् = अथर्वा । गोपथ ने इसका अभिप्राय यह दिया है । 'समीपस्थ आत्मा को अपने अन्दर देखना या वह वेद जिसमें आत्मा को अपने अन्दर देखने की विद्या का उपदेश है' । अथर्ववेद योग-साधना, चित्तवृत्तिनिरोध, ब्रह्म की प्राप्ति आदि विषयों से संबद्ध वेद माना जाता है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि प्राण अथर्वा है- “प्राणोऽथर्वा” । (शत-6.4.2.2)' इसका अभिप्राय प्राणशक्ति को प्रबुद्ध करना और प्राणायाम के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति करना है ।
अथर्ववेद के विविध नाम -
- (1) अथर्ववेद अथर्वा ऋषि के नाम पर मंत्र संख्या 17721
- (2) अंगिरस वेद- अंगिरस (अंगिरा) ऋषि । मंत्र सं- 420
- (3) अथर्वाङ्गिरस वेद- अथर्वा और अङ्गिरा दोनों का समन्वित नाम।
- (4) ब्रह्मवेद- प्राचीन वेद | मंत्र - 8631
- (5) भृग्वंगिरावेद - भृग्वंगिरा वंशज दृष्ट मं.सं. 548 1
- (6) क्षात्रवेद- राजा कौर क्षत्रियों के कर्त्तव्य वर्णन।
- (7) भैषज्य वेद चिकित्सा, औषधि वर्णन। -
- (8) छन्दोवेद- छन्द प्रधान ।
- (9) महीवेद - ब्रह्मविद्या वर्णन मही ( पृथ्वी) का विशेष गुणगान है।
अथर्ववेद की शाखाएँ
'नवधाऽऽथर्वणो वेदः' नौ शाखाएं
- (1) पैप्पलाद
- (2) तौद
- (3) मौद
- (4) शौनकीय
- (5) जाजल
- (6) जलद
- (7) ब्रह्मवेद
- (8) देवदर्श
- (9) चारणवैद्य।
अथर्ववेद की मुख्य दो शाखाएं हैं - शौनकीय, पैप्पलाद। इनमें सर्वप्रसिद्ध प्रचलित शौनकीय शाखा है। अथर्ववेद के प्रारम्भिक (13) काण्डों का विषय मारणोच्चाटनादि है।
- (1) शौनकीय शाखाकाण्ड = 20, सूक्त = 730, मंत्र = 5987,
- (2) पैप्पलाद शाखा - इस शाखा की संहिता पैप्पलाद है । "प्रो. ब्लूमपील्ड" ने 1901 ई. में इसे अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित किया था। "डॉ. रघुवीर" ने भी इसका संस्करण प्रस्तुत किया है। यह संहिता अपूर्ण ही प्राप्त है ।
अथर्ववेद के (5) उपवेद -
अथर्ववेद के पांच उपवेदों का 'गोपथ ब्राह्मण' में उल्लेख है।
- 1. सर्पवेद- सर्पविष चिकित्सा,
- 2. पिशाचवेद- पिशाचों राक्षसों का वर्णन,
- 3. असुरवेद - अथर्ववेद में असुरों को यातुधान कहा गया है । इसमें 'यातु' (जादू-टोना) आदि का वर्णन है ।
- 4. इतिहासवेद- प्राचीन आख्यान तथा राजवंशों का परिचय ।
- 5. पुराणवेद- इसमें रोग निवारण, कृत्या प्रयोग, अभिचार कर्म, सुख-शान्ति, शत्रुनाशक इत्यादि मंत्र है।
अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण सूक्त
अथर्ववेद में ऐसे अनेक सूक्त हैं, जिनमें आत्मविद्या, आत्मा, ज्येष्ठ ब्रह्म, ब्रह्मविद्या, उच्छिष्ट ब्रह्म महद् ब्रह्म और ब्रह्मविद्या का विस्तृत वर्णन है
1. पृथिवी सूक्त (12/1)
(63) मंत्रों में पृथ्वी का माता के रूप में वर्णन है । पृथ्वी के आधारभूत तत्त्व- सत्य, ऋत, दीक्षा (अनुशासन) तप (तपोमय जीवन) ब्रह्म व यज्ञ।
प्रमुख मंत्र
- माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः,
- वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम ।
- जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम्।
- सत्यं बृहद् ऋतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति।
2. ब्रह्मचर्य सूक्त ( 11/5) मंत्र- (26)
3. काल सूक्त ( 11 / 53 ) मंत्र- ( 15 )
4. विवाह सूक्त (14) मंत्र (139)
5. व्रात्य सूक्त (15) मंत्र (230)
6. मधुविद्या सूक्त (9/1) मंत्र- (24)
अथर्ववेद वेद का विवरण :-
यहाँ अथर्व वेद में
ऋत्विक :- ब्रह्मा।
मंत्र :- शान्तिक , पौष्टिक।
उपाधि :- ब्रह्मवेद , अंगिरोवेद , द्वन्द्वोवेद ,
२० काण्ड ,
७३१ सूक्त ,
२९८७ मंत्र हे।
इन मंत्रो में से बारह्सो (१२००) मन्त्र ऋग्वेद में मिलते हे। अथर्व वेद के बिसवे (२०) कांड में १५३ सूक्त हे , उनमे बारह सूक्त छोड़ अन्य सभी सूक्त ऋग्वेद के दसवे मंडल में मिलते हे।
अथर्ववेद के ब्राह्मण कितने हे ?
१ ) गोपथ ब्राह्मण।
क्या अथर्ववेद के आरण्यक हे ?
नहीं अथर्ववेद के आरण्यक नहीं हे।
अथर्ववेद के कितने और कोनसे उपनिषद हे ?
- १ ) प्रश्न उपनिषद। .
- २ ) मुण्डक उपनिषद।
- ३ ) माण्डूक्य उपनिषद।
अथर्ववेद संहिता
(क) शाखा= शौनक, पैप्पलाद,
(ख) ब्राह्मण = गोपथ,
(ग) आरण्यक = -
(घ) उपनिषद् = प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य,
(ङ) कल्पसूत्र
- (1) श्रौतसूत्र = वैतान,
- (2) गृह्यसूत्र = कौशिक,
- (3) धर्मसूत्र = -
अथर्ववेद के प्राचीन भाष्यकार
1. सायण ।
॥ पाश्चात्य विद्वान ॥
भारतीय वाङ्मय की ओर पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करने का मुख्य श्रेय 'सर विलियम जोन्स' (1746-1794) को है । इन्होंने "रायल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल" की स्थापना (1784) में की है।
अथर्ववेद पाश्चात्य विद्वान
- रीठ और ह्रिटनी- शौनकीय शाखा संपादन,
- ब्लूमफील्ड, गार्वे - पैप्पलाद,
- कैलेन्ड- अथर्ववेद संहिता संस्करण,
- ग्रिफिथ- अथर्ववेद का अंग्रेजी में अनुवाद,
- ह्निटनी, लानमान- अथर्ववेद का अंग्रेजी में अनुवाद
- ब्लूमफील्ड- पैप्पलाद संहिता का अंग्रेजी में अनुवाद
अथर्ववेदीय ब्राह्मण
1. गास्ट्रा- गोपथ ब्राह्मण का संस्करण,
2. ब्लूमफील्ड- कौशिक गृह्यसूत्र का प्रकाशन,
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अथर्ववेद athrban beid
चलिए अब संस्कृत भाषा में अथर्ववेद का परिचय प्राप्त करते हे।
अथर्ववेदस्य समूर्ण परिचयः
अभिचारक्रियायाः प्राधान्येन प्रतिपादकोऽयं वेदः अथर्वनामकर्षिणा दृष्टत्वात् अथर्ववेद इत्युच्यते । अत्र वेदे २० काण्डानि , ७३१ सूक्तानि , २ ९ ८७ मन्त्रा विद्यन्ते ।
एषु मन्त्रेषु द्वादशशतमन्त्रा ऋग्वेदेऽपि दृश्यन्ते । विंशकाण्डे १५३ सूतानि सन्ति , तेषु द्वादशसूक्तानि अतिरिच्य शेषाणि सर्वाण्यपि ऋग्वेदस्य दशममण्डले समुपलभ्यन्ते ।
अथर्ववेदस्य नव शाखा आसन् , परं सम्प्रति शौनकपिप्पलादसमाख्ये द्वे एव शाखे प्राप्यते प्रचलिता अथर्वसंहिता शौनकशाखान्तर्गता , पैप्पलादशाखा संहिताऽपि अनतिचिरेणैव मुद्रिता ।
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