ऋग्वेद परिचय । ऋग्वेद का सम्पूर्ण परिचय ।

ऋग्वेद का सम्पूर्ण परिचय 

ऋग्वेद किसे कहते है ? उसकी व्याख्या क्या है ?  मुख्य ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अर्थर्ववेद इन सबमे सबसे प्राचीन और प्रथम वेद और ग्रन्थ ऋग्वेद हे।  तो जानते है व्याकरण की दृष्टि से ऋग्वेद की व्युत्पत्ति कुछ इस प्रकार से है " ऋच्यते स्तूयते यया सा ऋक् " जिसमे ऋचाओ के द्वारा किसीकी स्तुति हो वह ऋक् है । ओर ऐसी ऋचाओं का समूह ही ऋग्वेद है। एक ओर व्याख्या है जो मीमांसक के मत से है- "यत्रार्थवशेन पादव्यवस्था सा ऋगिति " अर्थात् जहा पर अर्थ के वश में पाद व्यवस्था है वह ऋक् है । 

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Introduction of rugved

‘ऋक्' का अर्थ स्तुतिपरक मन्त्र हैं- "ऋच्यते स्तूयतेऽनया इति ऋक्”। जिन मन्त्रों के द्वारा देवों की स्तुति की जाती है, उन्हें (ऋक्, ऋच्, ऋचा) कहते हैं। ऋग्वेद में विभिन्न देवों की स्तुति वाले मंत्र हैं, अतः इसे ऋग्वेद कहते हैं। ऋग्वेद में ब्रह्मप्राप्ति, वाक्तत्व या शब्द ब्रह्म की प्राप्ति, प्राण या तेजस्विता की प्राप्ति अमरत्व के साधन तथा ब्रह्मचर्य के द्वारा ओजस्विता आदि का वर्णन है। ऋचा तीन प्रकार की होती है


(1) परोक्षकृत, (2) प्रत्यक्षकृत, (3) आध्यात्मिक।


ऋग्वेद का मुख्य विवरण :-

ऋग्वेद की कितनी शाखा हे ? 

महाभाष्य में ऋग्वेद की (21) शाखाएं वर्णित है। 'एकविंशतिधा बाह्वच्यम्' - (महर्षि पतंजलि 150 ई.पू.)


प्रमुख रूप से पाँच शाखाएं हैं

(1) शाकल - वर्ण्य विषय, मंत्रसंख्या इत्यादि। (1017) सूक्त

(2) वाष्कल - यह शाखा उपलब्ध नहीं है। (1025) सूक्त 8 अधिक शाकल में। बाष्कल शाखा के रचयिता- 'सुयज्ञ' ।

(3) आश्वलायन - यह संहिता और इसका ब्राह्मण सम्प्रति उपलब्ध नहीं है। इस शाखा के श्रौतसूत्र और गृह्यसूत्र ही उपलब्ध हैं।

(4) शांखायन - यह उपलब्ध नहीं है। इसके ब्राह्मण, आरण्यक, और श्रौतसूत्र प्राप्त हैं।

(5) माण्डूकायनी - यह शाखा संप्रति अप्राप्य है। चरणव्यूह के रचयिता- शौनक हैं।


ऋग्वेद विभाजन के दो प्रकार

(1) अष्टक, अध्याय, वर्ग, मंत्र

(2) मंडल, अनुवाक, मृक्त, मंत्र


1. अष्टक क्रम


पूरे वेद में आठ भाग हैं जिन्हें (अष्टक) कहा जाता है। प्रत्येक अष्टक में आठ अध्याय हैं। इस प्रकार ऋग्वेद में सम्पूर्ण (64) अध्याय हैं । प्रत्येक अध्याय में वर्गों की संख्या भिन्न है।

(अष्टक = 8, अध्याय = 64, वर्ग = 2024, मंत्र = 10580 ) ऋग्वेद में बालखित्य मूक्तों सहित= 1028 सूक्त हैं।


2. मण्डलक्रम


मण्डल = 10, बालखिल्य सूक्त= 11 सूक्त+80 मंत्र, अनुवाक = 85, सूक्त=1017+11=1028, मंत्र= 10580,


ऋग्वेद मण्डलों की संज्ञा, ऋषि, सूक्त तथा मंत्र

मण्डल 

संज्ञा 

ऋषि 

सूक्त सं.

मन्त्र 

प्रथम 

देवता 

मधुच्छन्दा 

191 

2006 

द्वितीय 

कथा 

गृत्समद 

43 

429 

तृतीय 

संवाद 

विश्वामित्र 

62 

617 

चतुर्थ 

ध्रुवपद 

वामदेव 

58 

589 

पञ्चम 

तत्त्वज्ञान 

अत्रि 

87 

727 

षष्ठ 

दानस्तुति 

भारद्वाज 

75 

765 

सप्तम 

यात्रिक 

वशिष्ठ 

104 

841 

अष्टम 

संस्कार 

कण्व 

(प्रगाथा मण्डल)

103 

1716 

नवम 

लौकिक 

पवमान सोम

114 

1108 

दशम 

आप्तसूक्त 

इन्द्राणी, शची, उर्वशी

191 

1754


ऋग्वेद के प्रमुख सन्दर्भ

  •  ऋग्वेद का प्रारम्भिक सूक्त = अग्नि,
  •  ऋग्वेद का अन्तिम सूक्त - संज्ञान,
  •  ऋग्वेद का पाठप्रणयनकर्ता - वाभ्रव्य,
  •  ऋग्वेद का पदपाठकर्ता - शाकल्य,
  •  ऋग्वेद पर सम्पूर्ण भाष्य - सायण,
  •  ऋग्वेद पर सबसे प्राचीन भाष्य - स्कन्दस्वामी
  •  याज्ञवल्क्य 'जनक' की सभा में थे।
  • ऋग्वेद में 'अघ्न्य' शब्द का सम्बन्ध 'गाय' से है।
  • “गीतिषु मामाख्या पुरुषार्थानां वेदयिता वेद उच्यते" (भट्टभास्कर)
  • “मत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम" (आपस्तम्ब -जैमिनि)
  • "आरण्यकञ्च वेदेभ्यः औषधिभ्योऽमृतं यथा" (कृष्णद्वैपायन) ।
  • "ब्राह्मण नाम कर्मणः तन्मत्राणां व्याख्यानग्रन्थः' (विष्णुमित्रः) ।
  • देवताओं के स्तुतिपरक मत्र - ऋक्
  • ऋग्वेद का मुख्यकर्म - उपासना
  • विभिन्न ऋचाओं का संग्रह- ऋग्वेद संहिता
  • संहिता- संकलन / संग्रह का बोधक है।
  • ऋग्वेद में `स्वरित' स्वर- ऊपर की ओर होता है, तथा
  • 'उदात्तस्वर' अचिह्नित होता है।
  • दशतयी- ऋग्वेद,
  • 'आद्युदात्तवेदशब्द'- ग्रन्थवाचकः,
  • ‘अन्त्योदात्तवेदशब्द’-कुशमुष्टिवाचक
  1. ऋक् भूलोक (अग्नि देवता प्रधान)
  2. यजु अन्तरिक्ष (वायु)
  3. साम- द्युलोक (सूर्य),

यजुर्वेद में प्राप्त दूसरी व्याख्या


(1) ऋग्वेद- वाक्तत्व (ज्ञानतत्व या विचारतत्व का संकलन

(2) यजुर्वेद - मनस्तत्व (चिन्तन, कर्मपक्ष, कर्मकांड, संकल्प का संग्रह) |

(3) सामवेद - प्राणतत्व (आन्तरिक ऊर्जा, संगीत, समन्वय का संग्रह ) ।

इन तीनों तत्वों के समन्वय से ब्रह्म की प्राप्ति होती है। ‘कितव' सूक्त- ऋग्वेद में है।

‘ऋक्लक्षण' शौनक का ग्रन्थ है।


मंत्रद्रष्टा ऋषिकाएं =

ऋग्वेद ऋषिकाएँ = 24 (224 मंत्र)

अथर्ववेद ऋषिकाएँ = 5 (198 मंत्र)

24+5 (29), 224+198=422 सम्पूर्ण ऋ.म.सं.।

ऋग्वेद में प्रमुख (20) छन्द हैं जिनमें ( 7 ) छन्दों का मुख्य रूप से उपयोग हुआ है।

(1) गायत्री (24)

(2) उष्णिक (28)

(3) अनुष्टुप (32)

(4) बृहती (36)

(5) पनि (40)

(6) त्रिष्टुप ( 44 )

(7) जगती (48)


ऋग्वेद के महत्वपूर्ण सूक्त

(1) पुरुषसूक्त (10/90) 

यह चारो वेदों में है। इसमें परमात्मा के विगट रूप का वर्णन तथा समस्त सृष्टि का वर्णन है। यह सूक्त अपनी उदात्त भावना, दार्शनिकता, भाव गांभीर्य और अन्तर्दृष्टि के लिये विख्यात है।

  •  पुरुष एवेद सर्वम् (ऋ. 10-10-2)
  •  ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद (ऋ. 10.10-12)

(2.) नासदीयसूक्त ( 10/129) 

यह सूक्त वैदिक ऋषियों के प्रतिभा ज्ञान और अलौकिक दार्शनिक चिन्तन का परिचायक है। सृष्टि से पूर्व केवल संकल्प काम उत्पन्न हुआ। 

(3) हिरण्यगर्भ सूक्त- ( 10/121) - प्रजापति ऋषि। 

यह (10) मंत्रों में विभक्त है । प्रजापति सृष्टिआरम्भ में हिरण्यगर्भ सुवर्ण पिण्ड के रूप में प्रकट हुआ वही सृष्टि का नियामक भी है। 

  • हिरण्यगर्भ समवर्तवाग्रे (ऋ. 10-121-1)
  • य आत्मदा बलदा (ऋ. 10-121-21) 
  • कस्मै देवाय हविषाविधेम।

(4) अस्य वामीय सूक्त (10/164) (52 मंत्र)

इसमें दर्शन, अध्यात्म मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान, ज्योतिष भौतिक विज्ञान सम्बन्धी तथ्य वर्णित हैं। भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों द्वारा इस सूक्त को अत्यन्त क्लिष्ट और दुर्बोध माना गया है।

  •  इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहु.. .......(मं. 46), 
  • द्वा सुपर्णा सयुजा ......(मं. 20),  
  • अयं यज्ञो भुवनस्य नाभि ..... (मं. 35 ),

(5) श्रद्धा सूक्त ( 10/151)

मंत्र श्रद्धा की परिभाषा - श्रद्धा काम (संकल्प) की पुत्री है उसे कामायनी कहते हैं।

  • श्रद्धां हृदय्ययाकूव्या श्रद्धया विन्दते वसु (मं-4),
  • श्रद्धे श्रद्धामयेह नः। (मं-5),
  • ऋतवाकेन सत्येन श्रद्धया । (ऋ. 9-113, 2),
  • ऋतं वदन्, सत्यं वदन, श्रद्धां वदन् । (ऋ. 113, 4 )
  • श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि।
  • श्रद्धया सत्यमाप्यते ।

(6) वाक्सूक्त (10 / 125)

8 मंत्रों में वाक्तत्व, शब्दब्रह्म, शब्दतत्व, वाग्देवी का ब्रह्म के रूप में वर्णन है। वाक्तत्व सर्वत्र व्याप्त है। यह इन्द्र, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण आदि की ऊर्जा का स्त्रोत है। यह राष्ट्रनिर्मात्री शक्ति है। पूरा सूक्त उत्तम पुरुष में (वाक् आम्भृणी) ऋषि द्वारा आत्मविवेचन के रूप में प्रस्तुत है।

  • अहं राष्ट्री संगमनी वसूनाम (मंत्र-3),
  • अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः (मंत्र - 5 ) 
  • अहमेव वात इव प्रवामि-आरभमाणा भुवनानि विश्वा ( मंत्र8)

(7) संज्ञान सूक्त ( 10 / 191)

4 मंत्रों में सामाजिक सौहार्द, सामंजस्य यह अस्तित्व, ऐकमत्य और संगठन का उपदेश है। यह सामाजिक, राष्ट्रीय और आर्थिक चिन्तन में समन्वय की भावना का प्रतिपादक है।

  • सं गच्छध्वं सं वदध्वं, सं वो मनांसि जानताम् । (मं-2), 
  • समानो मत्रः समितिः समानी, समानं मनः सह चित्तमेषाम् । 
  • समानी व आकूतिः समाना हृदयानी वः । 

(8) दानस्तुति सूक्त ( 10/107)

इसमें दान की प्रक्रिया महिमा का गुणगान है, दानी अमर हो जाता

  • न भोजा ममुर्न न्यर्थमीयुः।, 
  • उच्चा दिवि दक्षिणावन्तो अस्थुः । 
  • न स सखा यो व ददाति सख्ये । 
  • मोघमन्त्रं विन्दते अप्रचेताः । 
  • केवलाघो भवति केवलादी।

(9) अक्षसूक्त (10/34)

14 मंत्रों में अक्ष (द्यूत, जुआ खेलना) की कई शब्दों में निन्दा की गयी है।

  • अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषश्व वित्ते रमस्व बहु मन्यमानः ।

(10) विवाह सूक्त ( 10/85)

सूर्या (सूर्य की पुत्री उषा) का सोम (चन्द्रमा) से विवाह का वर्णन है।

  • अघोरचक्षुरपतिघ्नी एधि 
  • शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।। 
  • सम्राज्ञी श्वशुरे भव ।

आख्यानसूक्त -

"दृष्टचरितमाख्यानं” जिसे आंखों से देखा गया हो उसे आख्यान कहते हैं।

  •  विष्णु के तीन पैर ( त्रिविक्रम) (10.95) तीन पैर से द्युलोक, भूलोक और अन्तरिक्ष को नापने का वर्णन। अतः विष्णु को त्रिविक्रम कहते हैं। -
  • सोम- सूर्या - विवाह - ( 10/85) सोम और सूर्या के विवाह का वर्णन है।
  • श्यावाश्व सूक्त (561) इस सूक्त में श्यावाश्व और राजा रथवीथि की कन्या का वर्णन किया गया है।
  •  मण्डूक सूक्त (7/103) इसमें वर्षा ऋतु में बोलते मेंढकों की वेदपाठी ब्राह्मणों से तुलना की गई है।
  •  इन्द्र-वृत्र-युद्ध- (1/80 ) ( इन्द्र-सूर्य, वृत्र- मेघ), वर्षाकाल में इन दोनों का युद्ध चलता रहता है ।

संवाद सूक्त

(1) पुरुरवा उर्वशी संवाद सूक्त ( 10/95)

इसमें राजा पुरूरवा (पुरुरवस) और उर्वशी का संवाद वर्णित है। पुरुरवा

का उर्वशी नामक अप्सरा के प्रणय सम्बन्ध का वर्णन वर्णित है, इसका रूप विक्रमोर्वशीय भी में मिलता है।
  • पुरुरवो मा मृथा मा प्र पप्तो (मं. 15)

(2) विश्वामित्र नदी सूक्त (3/33) (ऋषि देवता) पणि, सरमा।


यमी यम से सृष्टि के लिये प्रणय याचना करती है।
  • पापमाहुर्यः स्वसारं निगच्छात्। (ऋ. 10-10)


कृपण व्यापारी द्वारा इन्द्र की गाय चुरा लेना वर्णित है।
  •  बृहस्पतिर्या अविन्दन निगूढाः, सोमो ग्रावाण ऋषयश्च विप्राः । (.10-10-8,11)

वैदिक खिल सूक्त

  •  खिल का अभिप्राय परिशिष्ट प्रक्षिप्त ।
  • समस्त खिल सूक्त (5) अध्याय, (86) खिल सूक्त । 
  • सर्वप्रथम खिल सूक्तों का संकलन (प्रो. जी. व्यूलर) ने एक
  • प्राचीन काश्मीरी पाण्डुलिपि से किया था।
  •  प्रमुख विद्वानों के अनुसार खिल सूक्तों की संख्या - मैक्समूलर- 32, आउफ्रेख्त - 25, सातवलेकर 36, 

विशिष्ट खिल सूक्त

सौपर्ण मूक्त, 
श्री सूक्त, (बालखिल्यमूक्त संख्या= 11 ऋग्वेद अष्टम मण्डल), 
पवमानी सूक्त, 
ब्रह्मसूक्त, 
रात्रिसूक्त, 
कृत्यासूक्त, 
शिवसंकल्पसूक्त, 
संज्ञान सूक्त, 
महानाम्न सूक्त, 
निविद अध्याय, 
प्रेष अध्याय, 
कुन्ताप मुक्त।

ऋग्वेद के ब्राह्मण कौनसे हे ?

१)  ऐतरेय ब्राह्मण। 

२) शांखायन ब्राह्मण। 

(कौषीतकि ब्राह्मण )

ऋग्वेद के उपनिषद कोनसे हे ?

१) ऐतरेय उपनिषद।

२) कौषतकि उपनिषद। 

३) वाष्कल उपनिषद्। 

यहा पर सूक्त विभाग में चार प्रकार है -

● ऋषिसूक्त ।

● देवतासूक्त ।

● छन्दसूक्त ।

● अर्थ सूक्त । 

  जहा एक ऋषि के दृष्ट मंत्रों का समूह हो वह ऋषि सूक्त कहलाता है । और जहा एक देवता से उद्देशित मंत्रो का समूह हो वह देवता सूक्त कहलाता है । और जहा समान छ्न्द के मंत्रो का समूह हो वह छंद सूक्त कहलाता है । ओर जहां एक अर्थ वाले मंत्रो का समूह हो वह अर्थ सूक्त कहलाता है । 

ऋग्वेद संहिता

(क) शाखा = 1. शाकल 2. बाष्कल,

(ख) ब्राह्मण = 1. ऐतरेय, 2. शांखायन (कौषीतकि) ।

(ग) आरण्यक= 1. ऐतरेय 2. शांखायन,

(घ) उपनिषद = 1. ऐतरेय, 2. कौषीतकि 3. बाष्कल मंत्रोपनिषद |

(ङ) कल्पसूत्र

  • (1) श्रौतसूत्र - 1. आश्वलायन, 2. शांखायन,
  • (2) गृह्यसूत्र- 1. आश्वलायन 2. शांखायन 3. कौषीतकि (शाम्बव्य) 
  • अमुद्रित- शौनक, भारवीय, शाकल्य, पैंगी, पराशर, वह्न्च, ऐतरेय गृह्यसूत्र,)
  • (3) धर्मसूत्र- वशिष्ठ

ऋग्वेद के प्राचीन भाष्यकार

1. स्कन्दस्वामी, 
2. नारायण,
3. उद्गीथ,
4. माधवभट्ट, 
5. वेंकट- माधव,
6. धानुष्क यज्वा,
7. आनन्दतीर्थ (मध्व),
9. सायण। 
8. आत्मानन्द,   
त्रिवेदी भाष्यकार - धानुष्क यज्वा, 
ऋग्वेद के सबसे प्राचीन भाष्यकार - स्कन्दस्वामी।   

॥ पाश्चात्य विद्वान ॥

भारतीय वाङ्मय की ओर पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करने का मुख्य श्रेय 'सर विलियम जोन्स' (1746-1794) को है । इन्होंने "रायल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल" की स्थापना (1784) में की है।

ऋग्वेद पाश्चात्य विद्वान

  • ऋग्वेद संहिता संपादन- फ्रीडिश राजेन, मैक्समूलर, थियोडोर आउप्रेख्त। 
  • सर्वप्रथम वेदों का अंग्रेजी भाषा में तथा रोमन लिपि में अनुवाद किया विल्सन' ने ।
  • चारों वेदों पर पद्यात्मक अनुवाद- ( ग्रिफिथ ) ।

ऋग्वेद के अनुवाद

  • (1) विल्सन अंग्रेजी में चारों वेदों पर,
  • (2) ग्रासमान जर्मन,
  • (3) लुड्डिंग जर्मन,
  • (4) प्रो. ग्रिफिथ अंग्रेजी,
  • (5) प्रो. ओल्डेनबर्ग- जर्मन, .
  • (6) लांग्लियस फ्रेन्च,

ऋग्वेदीय संकलन- मैक्समूलर ओल्डेनबर्ग, मैकडॉलन, थॉमस, पीटर्सन,

ऋग्वेदीय ब्राह्मण

  • प्रो. हाउग- (ऐतरेय ब्राह्मण-अंग्रेजी में अनुवाद), 
  • आउफ्रेख्त (ऐतरेय ब्राह्मण रोमन अक्षर में), 
  • प्रो. लिन्डर (कौषितकि ब्राह्मण का सम्पादन), 
  • डॉ. कीथ- (ऐतरेय, कौषितकि इन दोनों का अंग्रेजी में अनुवाद) ।

ऋग्वेद में कोनसे दो प्रकार हे ? 

 १) मण्डलानुवाकवर्ग। और 
२) अष्टकाध्यायसूक्त। 
  • बालखिल्य सूक्तो को छोड़कर सम्पूर्ण ऋग्वेद संहिता में दश(10) मण्डल है , पचाशी(85) अनुवाक है ओर दो सो आठ (208) वर्ग है । यह प्रथम भेद है ।   
  • आठ(8) अष्टक , चौशठ(64) अध्याय , एक हजार सत्तर (1017) सूक्त यह दूसरा भेद है ।
  • शाकल के मत से ऋग्वेद की मंत्र संख्या दस हजार चार सौ सुनसठ(10467) है , ओर
  • शौनक आदि के मत से दस हजार पांच सौ अस्सी(10580) है । यहा पर कालभेद ओर मंत्र लोप या वृद्धि के भेद से भिन्नता है ।
  •  ऋग्वेद में शब्द संख्या 153826 है ,
  •   अक्षर संख्या 432000 और यहा पर सभी मंत्र चौदह छन्दों के भीतर ही विभक्त है । 
  • ऋग्वेद के मंत्र द्रष्टा ऋषि गृत्समद , विश्वामित्र , वामदेव, अत्रि , भारद्वाज , वशिष्ठ आदि है । 

  ऋग्वेद के दस मंडलो मैं नौ वा मंडल पवमानमण्डल के नाम से प्रथित है । यहा पर ही सोमविषयक मंत्रो का कलन किया हुआ है । पवमान - सोम । ऊपर कहे गए मंत्र दृष्टा ऋषि गण ऋग्वेद के दूसरे मंडल से सातवे मंडल तक के है ओर यह भाग सर्वतः प्राचीन है । दशम मंडल अर्वाचीन है । बाकी बचे मंडल मध्य कालीन है ऐसा आलोचन कर्ताओं का कहना है ।

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ऋग्वेद १तः६ मंडल PDF (34MB) :- download free pdf  here

ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका PDF:- download free pdf  here

 ऋग्वेदिय ब्रह्मकर्म समुच्चय PDF (30MB) :- download free pdf  here
ऋग्वेद rak beid,



ऋग्वेदपरिचयः संस्कृत में

       ऋच्यते स्तूयते यया सा ऋक् । तादृशीनामचा समूह एव ऋग्वेदः । यत्रार्थवशेन पादव्यवस्था सा ऋगिति मीमांसकाः । स ऋग्वेदः सूक्तमण्डल भेदेन द्विधा विभक्तः । तत्र सूक्तं चतुर्विधम् - ऋषिसूक्तदेवतासूक्तच्छन्दःसूक्तार्थसूक्तभेदात् । एकर्षिदृष्टमन्त्राणां समूहो ऋषिसूक्तम् । एकदेवताकमन्त्राणां |
समूहो देवतासूक्तम् । समानछन्दसां मन्त्राणां समूहो नामच्छन्द सूकम् । यावदर्थ समाप्तानां मन्त्राणां समूहोऽर्थसूक्तम् । सुष्ठूक्तत्वात्सर्वं सूक्तमित्याख्यायते ।
 ऋग्वेदः सोऽयं मण्डलानुवाकवर्गभेदेन अष्टकाध्यायसूक्तभेदेन च द्विधा । बाल खिल्यसूक्तानि विहाय सम्पूर्णायामृग्वेदसंहितायां दशमण्डलानि , पञ्चाशीतिश्चा नुवाकाः , अष्टोत्तरशतद्वयमिताश्च वर्गाः ( इति प्रथमो भेदः ) । अष्टौ अष्टकानि , चतुष्षष्टिरध्यायाः , सप्तदशोत्तरसहस्राणि च सूक्तानि ( इति द्वितीयो भेदमार्गः ) । 

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    मन्त्राश्च सर्वे दश सहस्रचतुःशतसप्तषष्ठिमिताः ( १०४६७ ) इति शाकलः , शौनकानुक्रमणो तु दशसहस्रपञ्चाशताशीतिमितान् ( १०५८० ) मन्त्रान् आह । अत्र भेदे कालभेदेन मन्त्रवृद्धिलोपावेव हेतुतयोन्नेयो भवतः । शब्दसंख्या १५३८२६ , अक्षरसंख्या -४३२००० । सर्वेऽपि मन्त्राः चतुर्दशसु छन्दस्सु विभक्का बोध्याः । 
     ऋग्वेदगतमन्त्रद्रष्टारो ऋषयः गृत्समदविश्वामित्र वामदेवात्रिभरद्वाजवसिष्ठादयः सन्ति । 
      ऋग्वेदस्य दशसु मण्डलेषु नवमं मण्डलं पवमानमण्डलनाम्ना प्रथितम् । तत्र हि सोमविषयकमन्त्राणां सङ्कलनं वृतम् । पवमानः - सोमः पूर्वोक्ताः सप्तापि मन्त्रद्रष्टारो ऋपयो द्वितीयमण्डलतः सप्तमण्डलपर्यन्तगताभिः ऋग्भिः सम्बद्धाः , दशमण्डले मन्त्रा नानर्षिसम्बद्धाः । दशमे मण्डले न केवलं देवता स्तुतय एव , अन्यप्रकारका अपि मन्त्र दृश्यन्ते ।
            द्वितीयमण्डलादारभ्य सप्तममण्डलपर्यन्तस्य ऋग्वेदभागस्य रचना सर्वतः प्राचीना , दशमं मण्डलं सर्वतोर्वाचोनम , शेषाणि मध्यकालिकानीति साम्प्रतिका आलोचकाः कथयन्ति ।