सरमा पणि संवाद में सरमा नामक एक शुनी और पणि नामक असुर का सवाद मिलता है। पणि लोगों ने आय की गायों को चुराकर कहीं अन्धेरी गुफा में डाल दिया। इन्द्र ने अपनी शुनी (सरमा) को उन्हें खोजने के लिए और पणियों को समझाने के लिए दूती बनाकर भेजा। सरमा इन्द्र के अतुलित पराक्रम के विषय में बतलाती है किन्तु वे उसकी बात नहीं माने।
UGC - net सम्पुर्ण संस्कृत सामग्री कोड - २५ पुरा सिलेबस
किमिच्छन्ती सरमा प्रेदमानड्, दूरे ह्यध्वा जगुरिः पराचैः ।
कास्मेहितिः का परितक्यासीत्कथं रसाया अतरः पयांसि ।। 1 ।।
सरमा क्या इच्छा करती हुई इस स्थान पर पहुंची है; क्योंकि मार्ग बहुत दूर उभरा हुआ तथा गमनागमन से रहित है। हममें तुम्हारा कौन-सा अभिप्रेत अर्थ निहित है? तुम्हारी यात्रा कैसी थी ? रसा (नदी) के जल को तुमने कैसे पार किया?
इन्द्रस्य दूतीरिषिता चरामि, मह इच्छन्ती पणयो निधीन्वः।
अतिष्कदो भियसा तन्न आवत्तथा रसाया अतरं पयांसि ।।2।।
हे पणियों! इन्द्र के द्वारा भेजी गई, मैं उसकी दूती हूँ। तुम लोगों के प्रभूत धन की इच्छा करती हुई घूम रही हूँ। मेरे कूदने के भय से उस रसा के जल ने मेरी सहायता की। इस प्रकार रसा के जल को मैंने पार किया।
कीदृङिन्द्रः सरमे का दृशीका, यस्येदं दूतीरसरः पराकात् ।
आ च गच्छान्मित्रमेना दधामाथा गवां गोपतिर्नो भवाति ।।3।।
हे सरमा! इन्द्र कैसा है? उसकी दृष्टि कैसी है? जिसकी दूती (तुम) दूर से यहाँ आई हो। अगर वह आए, तो हम उसे मित्र बनाएँगे। तब वह हमारी गायों का संरक्षक (गोपति) होगा।
नाहं तं वेद दभ्यं दभत्स, यस्येदं दूतीरसरं पराकात्।
न तं गूहन्ति स्रवतो गभीरा, हता इन्द्रेण पणयः शयध्वे।। 4।।
सरमा ने कहा-मैं उसको कष्ट पहुँचाया जाने वाला नहीं समझती हूँ; अपितु वह (शत्रुओं को) कष्ट देता है। जिसकी मैं दूती बनकर बहुत दूर से यहाँ आई हूँ। बहती हुई गहरे जल वाली नदियाँ उसको छिपा नहीं सकतीं। हे पणियों! इन्द्र द्वारा मारे जाकर तुम लोग ( पृथिवी पर) पड़ जाओगे।
इमा गावः सरमे या ऐच्छः परिदिवो अन्तान्त्सुभगे पतन्ती ।
कस्त एना अव सृजादयुध्व्युतास्माकमायुधा सन्ति तिग्मा ।। 5 ।।
पणियों ने कहा- हे सरमा ! आकाश की छोर तक चारों तरफ घूमती हुई इन गायों को, जिनकी तुमने इच्छा की है। हे सौभाग्यवती! तुममें से कौन मुक्त कर सकता है? और हमारे शस्त्र भी अत्यन्त तीक्ष्ण हैं।
असेन्या वः पणयो वास्यनिषव्यास्तनवः सन्तु पापीः ।
अधृष्टो व एतवा अस्तु पन्था, बृहस्पतिर्व उभया न मृळात् ।। 6।।
सरमा ने कहा- हे पापियों ! तुम्हारे वचन शस्त्र के आघात से सुरक्षित हैं; तथा पापी शरीर बाणों के निशाने से बचने वाले हो सकते हैं। तुम्हारे पास पहुँचने के लिए मार्ग भी अगम्य किसी भी प्रकार से बृहस्पति दया नहीं करेंगे। सकता है; किन्तु
अयं निधिः सरमे अदिबुध्नो, गोभिरश्वेभिर्वसुभिर्दृष्टः ।
रक्षन्ति तं पणयो ये सुगोपा, रेकु पदमलकमा जगन्ध ॥7॥
पणियों ने कहा-हे सरमा ! गायों, अश्वों तथा रत्नों से भरा हुआ यह खजाना पर्वतों से ढका हुआ है। कुशल रक्षक पणि, इसकी रक्षा करते हैं। तुम व्यर्थ में इस खाली स्थान पर आई हो।
एह गमन्नृषयः सोमशिता, अयास्यो अङ्गिरसो नवग्वाः ।
त एतमूर्वं वि भजन्त गोनामथैतद्वचः पणयो वमन्नित् ।। 8।।
सरमा ने कहा-सोमपान से उत्तेजित, अयास्य, अङ्गिरस, नवग्वा आदि ऋषि यहाँ पर आएंगे। वे गायों के इस विशाल समूह को बाँट लेंगे। तब पणियों को अपने इस वचन को उगलना पड़ेगा।
एवा च त्वं सरम आजगन्ध, प्रबाधिता सहसा दैव्येन ।
स्वसारं त्वा कृणवै मा पुनर्गा, अप ते गवां सुभगे भजाम।। 9।।
पणियों ने कहा-हे सरमा ! इस प्रकार यदि तुम देवताओं की शक्ति से पीड़ित की गई हो; तो हम तुम्हे बहन बनाते हैं। फिर मत जाओ। हे सौभाग्यवती! हम तुम्हें गायों का अलग हिस्सा देंगे ।
नाहं वेद भ्रातृत्वं नो स्वसृत्वमिन्द्रो विदुराङ्गिरसश्च घोराः।
गोकामा मे अच्छदयन्यदायमपात इत पणयो वरीयः।। 10।।
सरमा ने कहा- मैं न तो भ्रातृत्व को जानती हूँ न स्वसृत्व को; इन्द्र तथा भयानक अङ्गिरस इसको जानते हैं। जब मैं आई (तब) वे गायों की इच्छा करने वाले मालूम पड़े। अतः हे पणियों ! (इसकी अपेक्षा) किसी विस्तृत स्थान पर चले जाओ।
दूरमित पणयो वरीय उद्, गावो यन्तु मिनतीरृतेन।
बृहस्पतिर्या अविन्दन्निगूळहाः, सोमो ग्रावाण ऋषयश्च विप्राः ।। 11।।
सरमा ने कहा- हे पणियो! किसी विस्तृत स्थान पर चले जाओ। छिपी हुई गायें, चट्टानों के आवरण को तोड़ती हुई सत्य नियम के अनुकूल बाहर निकले; जिनको बृहस्पति ने ढूंढ निकाला है तथा जिनका, सोम ने, पत्थरों ने तथा बुद्धिमान ऋषियों ने पता लगाया है।