यजुर्वेद का समूर्ण परिचय
The full intro of yajurveda
संस्कृत साहित्य की अमूल्य धरोहर में ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद यह सर्वोपरी। इनमे क्रमसे देखा जाये तो यजुर्वेद दुसरे क्रम में आता हे। यजुर्वेद में गद्य प्रधान है यह अध्वर्यु के उपयोगी मंत्रो का संकलन है , यज्ञ का वास्तविक विधान अध्वर्यु ही करता है , इसीलिए यजुर्वेद यज्ञविधि के अति निकट संबंधित है ।
शुक्ल यजुर्वेद को ही 'वाजसनेय-संहिता' और 'माध्यन्दिन संहिता' भी कहते हैं। इसके ऋषि 'याज्ञवल्क्य' हैं। वे मिथिला के निवासी थे पिता का नाम 'वाजसनि' होने से याज्ञवल्क्य को वाजसनेय कहते थे । वाजसनेय से संबद्ध संहिता वाजसनेयि-संहिता कहलाई । याज्ञवल्क्य ने मध्याहन के सूर्य से इस वेद को प्राप्त किया था, अतः इसे माध्यन्दिन संहिता भी कहते हैं ।
शुक्ल और कृष्ण भेदों का आधार यह है कि शुक्ल यजुर्वेद में यज्ञों से संबद्ध विशुद्ध मंत्रात्मक भाग है । इसमें व्याख्या विवरण और विनियोगात्मक भाग नहीं है । ये मंत्र इसी रूप में यज्ञों में पढे जाते हैं। विशुद्ध और परिष्कृत होने के कारण इसे शुक्ल (स्वच्छ, अमिश्रित) यजुर्वेद कहा जाता है । कृष्ण यजुर्वेद का संबन्ध ब्रह्म संप्रदाय से है। इसमें मंत्रों के साथ ही व्याख्या और विनियोग वाला अंश भी मिश्रित है, अत: इसे कृष्ण (अस्वच्छ, मिश्रित) कहते हैं। इसी आधार पर शुक्ल यजुर्वेद के पारायणकर्ता ब्राह्मणों को 'शुक्ल' और कृष्ण यजुर्वेद के पारायणकर्ता ब्राह्मणों को 'मिश्र' नाम दिया गया है।
UGC - net सम्पुर्ण संस्कृत सामग्री कोड - २५ पुरा सिलेबस
महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य में यजुर्वेद की 100 शाखाओं का वर्णन किया है। 'एकशतमध्वर्युशाखाः' (आह्निक 1) | षड्गुरुशिष्य की सर्वानुक्रमणी की वृत्ति में तथा कूर्मपुराण में भी यजुर्वेद की 100 शाखाओं का उल्लेख मिलता है। परन्तु 'चरणव्यूह' में यजुर्वेद की 86 शाखाओं का ही उल्लेख मिलता है । "
- यजुष (यजुस्, यजुः) का अर्थ=
- (1) यजुर्यजते यज्ञ से सम्बद्ध मंत्र।
- (2) इज्यतेऽनेनेति यजुः- जिन मंत्रों से यज्ञ किया जाता है- यजुष्।
यजुर्वेद की शाखाएँ-दो विभाग
(1) शुक्ल यजुर्वेद आदित्य सम्प्रदाय ।
(2) कृष्ण यजुर्वेद ब्रह्म सम्प्रदाय ॥
(1) शुक्ल यजुर्वेद
शुक्ल यजुर्वेद में दो शाखाएँ हैं
1. माध्यन्दिन संहिता -
- माध्यन्दिन संहिता / वाजसनेय संहिता,
- वाज = अन्न, सनि = दानम् |
- अध्याय- 40, मंत्र- 1975
- यजुर्वेद में अक्षरों की संख्या= 2,88,000 (शतपथ ब्रा )
- सौत्रामणि स्तोत्र वाजसनेयी संहिता में है ।
- इस शाखा पर उपलब्ध भाष्य का नाम है- मातृमोद |
2. काण्व संहिता
- अध्याय 40, मंत्र- 2086,
- इसमें वाजसनेय संहिता से 111 मंत्र अधिक हैं। .
- विभाजन- अध्याय - 40, अनुवाक्- 328, मंत्र- 2086,
- विषय- विभिन्न यज्ञों की विधियाँ और उनमें पाठय मंत्रों का संकलन।
यजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता में प्रमुख अध्यायों के वर्णित विषय
अध्याय | विषय |
अध्याय- 1-2 | दर्श, पौर्णमास |
अध्याय- 3 | अग्निहोत्र, चातुर्मास्य। |
अध्याय- 4-8 | सोमयाग, अग्निष्टोम |
अध्याय 11 | अग्निचयन |
अध्याय 15 | अग्र्याधान |
अध्याय 16 | रुद्राध्याय (शतरुद्रीय) |
अध्याय- 20 | अश्विनी कुमार |
अध्याय- 22 | अश्वमेध |
अध्याय- 23 | प्रजापति सूक्त |
अध्याय 30 | पुरुषमेघ |
अध्याय 31 | पुरुषसूक्त- विष्णुसूक्त |
अध्याय 33 | सर्वमेध |
अध्याय 34 | शिवसङ्कल्पसूक्त |
अध्याय 35 | पितृमेघ |
अध्याय- 40 | ईशावास्योपनिषद् |
(2) कृष्णयजुर्वेद
- इसमें मंत्र और ब्राह्मण का सम्मिश्रण है।
- चरणव्यूह के अनुसार (86) शाखाएं,
- शुक्ल यजुर्वेद- 17 कृष्ण यजुर्वेद - 69 = (86)
- कृष्ण यजुर्वेद में तैत्तरीय शाखा के दो भेद औख्य, खांडिकेय।
- मुख्य शाखा (1) तैत्तिरीय (2) मैत्रायणी (3) काठक/कठ (4) कपिष्ठल।
- (1) तैत्तिरीय = (1) औख्य, (2) खांडिकेय।
- खांडिकेय के पाँच भेद हैं । = आपस्तब, बौधायन, सत्याषाढ, हैरण्यकेश, काट्यायन
- (2) मैत्रायणी = (7) भेद।
- (3) काठक/कठ = (12) भेद। (44) उपग्रन्थ ।
(क) तैत्तिरीय संहिता
- कांड = 6, प्रपाठक= 44, अनुवाक= 631,
- (अनुवाक का उपभेद खंड है।)
- यही एक संहिता है, जिसके ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, शुल्बसूत्र और धर्मसूत्र प्राप्य है, अतः यही संहिता सर्वांगपूर्ण है।
तैत्तिरीय संहिता के प्रमुख कांडों के वर्णित विषय
- कांड 1- दर्शपूर्णमास, अग्निष्टोम, राजसूया,
- कांड 2- पशुविधान, इष्टि विधान, कारीरी इष्टि।
- कांड 3- पवमान ग्रह आदि, वैकृत विधि, इष्टिहोम।
- कांड 4- अग्निचिति देवयजनग्रह, चितिवर्णन, वसोर्धारा संस्कार ।
- कांड 5- उख्य अग्नि, चितिनिरूपण, इष्टकायत्र, वायव्य पशु आदि ।
- कांड 6- सोममंत्रब्राह्मण।
- कांड 7- अश्वमेघ, षड्रात्र आदि, सत्रकर्म आदि।
(ख) मैत्रायणी संहिता
- मैत्रायणी उपनिषद अध्याय = 12 शाखाओं में से एक है। (चरणव्यूह) (7) यह चरक/ कठ की
- (1) मानव, (2) दुन्दुभ, (3) ऐकेय, (4) वाराह, (5) हारिद्रवेय, (6) श्याम (7) श्यामायनीय,
- काण्ड = 4, प्रपाठक= 56, मंत्र = 3144 इनमें (1701) मत्र ऋग्वेद से उद्धृत है।
मैत्रायणी संहिता के प्रमुख कांडों के वर्णित विषय
- कांड 1- दर्शपूर्णमास, अध्वर अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, वाजपेय याग ।
- कांड 2- काम्य इष्टियाँ, राजसूय और अग्निचिति।
- कांड 3- अग्निचिति अध्वर आदि विधि, सौत्रामणी, अश्वमेध याग ।
- कांड 4- यह खिल नाम से विख्यात है, राजसूय अध्वर, प्रवर्ग्य, याज्यानुवाक् ।
(ग) काठक/कठ संहिता
- कठ शाखा की संहिता । खड = (5)
- (1) इठिमिका (2) मध्यमिका (3) ओरिमिका (4) याज्यानुवाक्या (5) अश्वमेधादि अनुवचन ।
- 19 यागों का वर्णन है। इसके उपखंडों को 'स्थानक' और 'अनुवचन' नाम दिए हैं। इसमें
- खंड = 5, स्थानक = 40, उपखण्ड = 53, अनुवाक = 843, मंत्र = 3028,
- इसमें मंत्र और ब्राह्मणों की संख्या (18000) है ।
(घ) कपिष्ठल-कठ संहिता
- यह चरकों की 12 शाखाओं में एक है। इसके प्रवर्तक ऋषि 'कपिष्ठल' ऋषि हैं ।
- प्राचीन शाखाए कठ, प्राच्य / कपिष्ठल कठ।
- पाणिनि- 'कपिष्ठलो गोत्रो' । (8, 3, 91)
- अष्टक = 6, अध्याय = 48, (विवादित अध्याय)
यजुर्वेद के प्रमुख सन्दर्भ
- विनियोगामिश्रितत्वम् - शुकत्वम्,
- विनियोगमिश्रितत्वम्- कृष्णत्वम्,
- आदित्यसम्प्रदाय - शुक्ल, ब्रह्मसम्प्रदाय - कृष्णः, .
- ऋत्विज=अध्वर्यु। “अध्वर्युनामक एक ऋत्विग् यज्ञस्य स्वरूपं निष्पादयति” । अध्वरं यूनक्ति, अध्वरस्य नेता।
- यजुर्वेद का यज्ञ के कर्मकाण्ड से साक्षात् सम्बन्ध है, अतः इसे 'अध्वर्युवेद' कहा जाता है ।
- ‘षड्गुरुशिष्य' की सर्वानुक्रमणि ‘चरणव्यूह' यजुर्वेद में शाखाएं = (86) के अनुसार
- परमावटिक शाखीय वेद- शुक्ल यजुर्वेद |
- अनियताक्षरावसानो यजुः जिन मंत्रों में पद्य तुल्य अक्षर सीमित न हो।
- ‘शेषे यजुः' - जैमिनि । (आचार्य वैशम्पायन) =
- शुक्ल यजुर्वेद पर स्वामी करपात्री का भाष्य है।)
- यजुर्वेद में 'अश्वमेध' शब्द राष्ट्रीय उन्नति तथा प्रगति के लिये प्रयुक्त हुआ है ।
- 'पितृमेध/पितृयज्ञ' माता पिता की सेवा-शुश्रूषा के लिये प्रयुक्त हुआ है ।
- ‘पुरुषमेध/नरमेध’ मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति के लिये प्रयुक्त हुआ है। पुरुषमेध में 184 वृत्तियों और वृत्ति जीवियों का उल्लेख है। इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी है।
- 'सर्वमेध' प्रजामात्र की सर्वतोमुखी उन्नति के लिये प्रयुक्त हुआ है ।
- 'गोमेध' गोवंश की रक्षा और पशु- समृद्धि के लिये प्रयुक्त हुआ है ।..
यजुर्वेद के कितने प्रकार है
यजुर्वेद के दो प्रकार है एक कृष्ण यजुर्वेद, ओर दूसरा शुक्ल यजुर्वेद ।
पौराणिक कहते है -- कि व्यास ने वैशम्पायन को वेद का ज्ञान दिया , वैशम्पायन ने याज्ञावल्क्य को । किसी कारण वश रुष्ट होकर वैशम्पायन ने याज्ञावल्क्य कहा मुझसे प्राप्त वेद मुझे लोटा दो । याज्ञावल्क्य गुरुवचन का पालन करने के लिए प्राप्त वेद का ज्ञान वांत(ओक) (मुह से बाहर निकाल दिया) दिया । अन्य वैशम्पायन के शिष्य तित्तर का रूप लेखर उसका ग्रहण कर लिया । और यही गृहीत वेद कृष्ण यजुर्वेद के रूप मे प्रचलित हैं।
वैशम्पायन के कुपित होने के कारण अधित वेद का विसर्जन करके पुनः वेद पढ़ने याज्ञावल्क्य ने सूर्य की आराधना की , ओर भगवान सूर्य से वेद का ज्ञान प्राप्त किया ओर यह शुक्ल यजुर्वेद के नाम से प्रचलित हुआ। ओर इन दोनों प्रकारों मैं बहोत अंतर है ।
कृष्णयजुर्वेद ओर शुक्लयजुर्वेद का अंतर (भेद) :-
शुक्लयजुर्वेद मैं विनियोग वाक्य रहित केवल मंत्र हु दिखते है , जबकि कृष्णयजुर्वेद में विनियोग वाक्य मंत्र तीनो देखने को मिलते है , इसीलिए अमिश्रित रूप शुक्लयजुर्वेद ओर मिश्रीत रूप कृष्णयजुर्वेद ऐसा लोग कहते है ।
यजुर्वेद का मुख्य विवरण :-
ऋत्विक ;- अध्वर्यु
मुख्या देवता ;- वायु
मुख्य आचार्य :- वैशम्पायन
विषय :- याग
शाखा :- २
अध्याय :- 40
अनुवाक :- 303
(कंडिका) मंत्र :- 1975
शब्द :- 29625
अक्षरों :- 88875
यजुर्वेद के 40 अध्याय के विषय
पहले अध्याय में दर्शपौर्णमास ,
दूसरे अध्याय मैं पिंडपितृयज्ञ ,
तीसरे अध्याय मैं अग्निहोत्र, चातुर्मास ,
चौथै अध्याय से आठवे अध्याय तक अग्निष्टोम ओर सोमयाग विधान ,
नौवें अध्याय मैं वाजपेय , राजसूय विधान,
दसवे अध्याय मैं सौत्रामणी ,
ग्याहरवें अध्याय से अठारवे अध्याय तक - अग्निचयन , उखाभरण , चित, रुद्र , शतरुद्र, वसोर्धारा, रास्ट्रभृच्च आदि ,
उन्नीसवी अध्याय मैं परिशिष्ट का आरंभ होता है ,
बीसवें ओर इक्कीसवे अध्याय मैं सोमसम्पादन विधिः ,
तेइसवें , चौबिस ओर पच्चीसवे अध्याय मैं अश्वमेध ,
छब्बीस से शेष अध्यायों में पुरुष मेध , सर्वमेध , पितृमेध आदि विवरण मिलता है , अंतिम चालीसवे अध्याय मैं ईशावास्योपनिषद ।
शुक्लयजुर्वेद की कितनी शाखाए हैं?
शुक्लयजुर्वेद की संहिता वाजसनेयी संहिता कही जाती है । ऐसा नाम होने का कारण यह है कि याज्ञवल्क्य के द्वारा सूर्य की आराधना करने पर भगवान सूर्य ने वाजी के रूप में उन्हें वेद का ज्ञान दिया था इसीलिए उनकी कही गयी संहिता वाजसनेयी संहिता हुई ।
शुक्लयजुर्वेद की माध्यान्दिनी ओर कण्व ऐसी दो शाखा है । पहली उत्तर भारत मैं प्राप्त होती है और दूसरी महाराष्ट्र प्रान्त मैं । अन्य शाखा स्वल्प भगोमे प्रचलित है ।
कृष्णयजुर्वेद की कितनी शाखाए है?
कृष्णयजुर्वेद की चार शाखाए मिलती है -
१ ) तैत्तिरीय शाखा :- यह इस वेद की प्रधान शाखा है , यहा पर सात (7) खंड है , ये खंड अष्टक शब्द और कांड शब्द से प्रचलित है । हर कांड में कुछ अध्याय है जो प्रपाठक नाम से ख्यात है । और यह प्रपाठक बहोत सारे अनुवाको मैं विभाजित है ।
२ ) मैत्रायणी शाखा , ३ ) कपिष्ठल शाखा ओर ३ ) कठ शाखा यह दोनों तैत्तिरीय संहिता का अनुकरण करते है । केवल क्रम मैं कही कही भिन्नता मिलती है।
यजुर्वेद के ब्राह्मण कोनसे हे ?
(१) शतपथ ब्राह्मण (माध्यान्दिनी)
(२) शतपथ ब्राह्मण (काण्व )
(३) तैत्तरीय ब्राह्मण
(४) मैत्रायणी ब्राह्मण
(५) कठ ब्राह्मण
(६) कपिष्ठल ब्राह्मण
यजुर्वेद के आरण्यक कोनसे हे ?
(१) बृहदारण्यक (माध्यान्दिनी)
(२) बृहदारण्यक (काण्व )
(३) तैत्तरीय आरण्यक
(४) मैत्रायणीय आरण्यक
यजुर्वेद के उपनिषद कोनसे हे ?
(१) ईशावास्य उपनिषद
(२) बृहदारण्यक उपनिषद
(३) कठ उपनिषद्
(४) मैत्रायणी उपनिषद्
(५) तैत्तरीय उपनिषद
(६) श्वेताश्वतर उपनिषद
शुक्ल यजुर्वेद संहिता
(क) शाखा - माध्यन्दिन (वाजमनेयि), काण्व ।
(ख) ब्राह्मण= शतपथ (याज्ञवल्क्य)
(ग) आरण्यक= बृहदारण्यक
(घ) उपनिषद् = ईशोपनिषद, = बृहदारण्यक उपनिषद् ।
(ङ) कल्पसूत्र
- (1) श्रौतसूत्र = कात्यायन। ( 36 अध्याय)
- (2) गृह्यसूत्र = पारस्कर। मैत्रायणीय,
- (3) शुल्बसूत्र = बौधायन, मानव, आपस्तम्ब, कात्यायन, हिरण्यकेशि (सत्याषाढ़), वागह। (शुल्ब = रम्मी)
- (4) धर्मसूत्र = हारीत, शंखधर्म, विष्णुधर्म,
कृष्ण यजुर्वेद-संहिता
(क) शाखा= तैत्तिरीय, मैत्रायणीय, कठ (काठक),
(ख) ब्राह्मण= तैत्तिरीय, कपिष्ठल-कठ।
(ग) आरण्यक= तैत्तिरीय, मैत्रायणीय।
(घ) उपनिषद्= तैत्तिरीय, कठ, श्वेताश्वतर, मैत्रायणी (मैत्री), महानारायण ।
(ङ) कल्पसूत्र=
- (1) श्रौतसूत्र- बौधायन, वाधूल, मानव, भारद्वाज, आपस्तम्ब, काठक, सत्याषाढ़ वाराह, वैखानस।
- (2) गृह्यसूत्र- बौधायन, मानव, भारद्वाज, आपस्तव, काठक, अग्निवेश्य, हिरण्यकेशि, वाराह, वैखानस, चारायणीय, वैजवाप।
- (3) शुल्बसूत्र- बौधायन, मानव, आपस्तम्ब, कात्यायन, मैत्रायणीय, हिरण्यकेशि (सत्याषाढ़), वाराह|
- (4) धर्मसूत्र- बौधायन, आपस्तम्ब, हिरण्यकेशि।
शुक्ल यजुर्वेद के प्राचीन भाष्यकार
(1) माध्यन्दिन-संहिता- 1. उच्घट / उवट 2 महीधर,
(2) काण्व-संहिता-
- 1. हलायुध, (ब्राह्मणसर्वस्व)
- 2. सायण,
- 3. अनन्ताचार्य,
- 4. आनन्दबोध भट्टोपाध्याय ।
'माधवभट्ट' ने ऋग्वेद के विषय में (11) अनुक्रमणिया लिखी थी।
कृष्ण-यजुर्वेद के प्राचीन भाष्यकार
तैत्तिरीय-संहिता भाष्य-
- 1. कुण्डिन
- 2. भवस्वामी
- 3. गुहदेव
- 4. क्षुर
- 5. भट्टभास्कर
- 6. सायण ।
तैत्तिरीय संहिता पर "ज्ञानयज्ञ भाष्य" भट्टभास्कर ने लिखा है
॥ पाश्चात्य विद्वान ॥
भारतीय वाङ्मय की ओर पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करने का मुख्य श्रेय 'सर विलियम जोन्स' (1746-1794) को है । इन्होंने "रायल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल" की स्थापना (1784) में की है।
शुक्ल यजुर्वेद संहिता पाश्चात्य विद्वान
- बेबर शुक्ल यजुर्वेद संहिता के महीधरभाष्य सहित एवं काण्व संहिता का देवनागरी लिपि में संस्करण प्रकाशित किया ।
- प्रो. ग्रिफिथ- माध्यन्दिन, वाजसनेयि शाखा का अंग्रेजी में पद्यानुवाद ।
शुक्ल यजुर्वेद ब्राह्मण
बेबर - शतपथ ब्राह्मण का आलोचनात्मक संस्करण ।
कैलेंड- शतपथ ब्राह्मण काण्वशाखा का अंग्रेजी में प्रकाशन ।
जे. इंग्लिंग- शतपथ ब्राह्मण का अंग्रेजी अनुवाद बृहद् भूमिकामहित 'सेक्रेड बुक्स आफ़ द ईस्ट सीरीज में 5 भागों में प्रकाशित किया ।
शुक्ल यजुर्वेद सूत्रग्रन्थ
- बेबर कात्यायन श्रौतसूत्र का प्रकाशन |
- स्टेन्त्सलर पारस्कर गृह्यसूत्र का संपादन ।
कृष्ण यजुर्वेद संहिता - पाश्चात्य विद्वान
- वेबर- तैत्तिरीय-संहिता का रोमन अक्षरों में संपादन,
- श्रेडर- मैत्रायणी तथा काठक संहिता का प्रकाशन,
- डॉ. कीथ- तैत्तिरीय महिता का 'हार्वर्ड ओरियण्टल सीरीज़' से अंग्रेजी में प्रकाशन किया ।
कृष्ण यजुर्वेद सूत्रग्रन्थ
कैलेन्ड- बौधायन श्रौतसूत्र का प्रकाशन,
विन्टरनित्स- आपस्तम्ब गृह्यसूत्र का संस्करण
गार्बे- आपस्तम्ब श्रौतसूत्र,
नाउएर- मानव श्रौतसूत्र,
अब हैम यजुर्वेद का समूर्ण परिचय संस्कृत में भी देखेंगे -
यजुर्वेदस्य सम्पूर्ण परिचयः :-
यजूषि गद्यानि । अध्वर्युणा यज्ञे उपयुज्यमाना मन्त्रा एवात्र यजुवेंदे सङ्क लिताः , यज्ञस्य वास्तविक विधानमध्वर्युरेव करोति , अतोऽयं यजुर्वेदो यज्ञविधेर- तिसन्निकृष्टं सम्बन्धं रक्षति ।
यजुर्वेदो द्विप्रकारकः , कृष्णयजुः शुक्लयजुश्च ।
पौराणिकाः कथयन्ति - व्यासो वैशम्पायनाय वेदं प्रोवाच , स स्वशिष्याय याज्ञवल्क्याय । कुतोऽपि कारणाद् रुष्टो वैशम्पायनो याज्ञवल्क्यमुवाच - देहि मदधीतं वेदमिति । याज्ञवल्क्यो गुरुवचनपालनाय ततोऽधीतं वेदं सद्यो वान्त- वान् । अन्ये वैशम्पायनशिष्यास्तित्तिरिरूपं धृत्वा याज्ञवल्क्येन वान्तं वेदं गृहीतवन्तः । स एवायं वान्तगृहीतो वेदः कृष्णयजुर्वेदः ।
वैशम्पायने कुपिते ततोऽधीतं वेदं विसृज्य याज्ञवल्क्यः पुनवेंदाधिगतये सूर्यमाराधयामास , ततश्च वेदमाप , ततोऽयं वेदः शुक्लयजुर्वेदनाम्नाऽप्रथत ।
अनयोरन्तरम् :-
शुक्लयजुर्वदे विनियोगवाक्यरहिताः केवला मन्त्रा विद्यन्ते , कृष्णयजुर्वेद तु विनियोग वाक्यानि मन्त्राश्च । अतोऽमिथितरूपतया शुक्लयजुर्वेदः , मिश्रित रूपतया च कृष्णयजुर्वेद इति संज्ञा जातेत्यपि लोकाः कथयन्ति ।
About sanskrit gyan app and site :-
शुक्लयजुर्वेद का विवरण
सोऽयं यजुर्वेदः ४० अध्यायान् , ३०३ अनुवाकान् , १ ९ ७५ कण्डिका ( मन्त्रान् ) , २ ९ ६२५ शब्दान , ८८८७५ अक्षराणि च वित्ति । अस्य वेदस्य प्रथमेऽध्याये दर्शपौर्णमासी , द्वितीये पिण्डपितृयज्ञः , तृतीयेऽग्निहोत्रं चातुर्मास्येष्टिः , चतुर्थाध्यायादष्टमाध्यायपर्यन्तमग्निष्टोमविधानं सोमयागः , नवमे वाजपेयो राजसूयश्च , दशमे सौत्रामणिः , एकादशाध्यायादष्टादशाध्यायपर्यन्तम् अग्निः चयनम् , उखाभरणम् , चितयः , रुद्रहः , शतरुद्रियम् , वसोर्धारा , राष्ट्रभूच्च । एकोनविंशतितमाध्यायात् परिशिष्टमारभ्यते , विशे एकविशे च सोमसम्पादन विधिः , तदनु पञ्चविंशतिपर्यन्तमश्वमेधः , ततः शेषे भागे पुरुषमेधसर्वमेधषित मेधादिविवरणच प्रपञ्चितम् । अन्तिमश्चाध्याय ईशावास्योपनिद्रूपः ।
शुक्लयजुर्वेदस्य संहितैव वाजसनेयिसंहिता कथ्यते । तादृशनामकरणे बीजं त्विदं कथ्यते यत् याज्ञवल्क्येनाराधितः सूर्यो बाजी भूत्वा तस्मै वेदं प्रोक्तवान् अतस्तदुक्ता संहिता वाजसनेयी संहिता समाख्याता ।
शुक्लयजुर्वेदस्य माध्यन्दिनशाखा कण्वशाखा चेति द्वे शाखे । प्रथमा उत्तर भारते प्राप्यते , द्वितीया च महाराष्ट्र । अनयोः शाखयोः संहिते भिन्ने सत्या बपि स्वल्पमेव भेदं धारयतः , बहुष्वंशेषु तुल्यता वर्तते ।
कृष्णयजुर्वेदस्य चतस्रः शाखा प्राप्यन्ते
( क ) तैत्तिरीयशाखा - इयं प्रधानशाखा , अत्र सप्तखण्डाः , ते च खण्डाः अष्टकशब्देन काण्डशब्देन च व्यह्रियन्ते । प्रतिकाण्डं कतिपयेऽध्याया , ये प्रपाठकनाम्ना ख्याताः । इमे प्रपाठका बहुष्वनुवाकेषु विभकाः सन्ति ।
( ख ) मैत्रायणीसंहिता ग ) कपिष्ठल शाखा इमे द्वे अपि संहिते तैत्तिरीय - संहितामनुकुरुतः ,
( घ ) कठसंहिता केवल क्रमे यत्र तत्र पार्थक्यं विद्यते ।