व्याकरण वेद का अङ्ग

व्याकरण विषय का एतिहासिक परिचय:-

वैदिक साहित्य में वेद के छह अङ्ग बताये गए हैं। वह ईस प्रकार है - शिक्षा कल्प निरुक्त छंद ज्योतिष व्याकरण 

व्याकरण का अर्थ

'व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते शब्दा अनेनेति व्याकरणम्' अर्थात् जिस शास्त्र के द्वारा शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय का विवेचन किया जाता है उसे व्याकरण कहते हैं । इसमें यह विवेचन किया जाता है कि शब्द कैसे बनता है। इसमें क्या प्रकृति है और क्या प्रत्यय लगा है । तदनुसार शब्द का अर्थ निश्चित किया जाता है । पाणिनीय शिक्षा में व्याकरण को वेदपुरुष का मुख बताया गया है। "मुखं व्याकरणं स्मृतम्" ।

व्याकरण के प्रयोजन

पतंजलि ने महाभाष्य आह्निक- 1 ( में व्याकरण के 5 प्रयोजन बताए हैं रक्षोहागमलघ्वसन्देहाः प्रयोजनम् । (महा.आ. 1)।

भाषा लोक व्यवहार चलाती है। अर्थात लोगो को व्यवहार करने के लिए भाषा बहोत ही आवश्यक होती है । यदि भाषा नही होती , तो यह जगत अंधकार मय होता । जैसे डंडी ने कहा है --

' इदमन्ध तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम् । 
यदि शब्दाह्वयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ॥
अर्थात यदि शब्द स्वरूप ज्योति से यह संसार न प्रकाशित हुआ होता तो यह तीनों भुवनों मैं तम स्वरूप अंधकार फैल जाता ।
व्याकरण विषय का एतिहासिक परिचय:-

   इस भाषा को शुद्ध तरह बोलने , लिखने या समजने के लिए ' व्याकरण ' की अपेक्षा व आवश्यकता होती हैं। कोई भी विद्वान व्याकरण के ज्ञान के बिना शुद्ध शब्द बोल नही सकते है।
   ओर वेद की रक्षा हेतु व्याकरण का अध्ययन अति आवश्यक है ।
 " रक्षार्थ वेदानामध्येयं व्याकरणम् , लोपागमवर्णविकारज्ञो हि पुरुषः सम्यग् वेदान् परिपालयिष्यति "
            -- इति पतंजलि ।।
वेद की रक्षा हेतु व्याकरण का अध्ययन आवश्यक होने से वेद के अंग के रूप में इसका स्वीकार किया। वेद की रक्षा के सामर्थ्य होने के कारण वेद के " मुख " के रूप वेदांग कहा गया।
" रक्षोहागमलध्वसन्देहाः प्रयोजनम् "
           --- महाभाष्ये व्याकरण प्रयोजनम् 
महर्षि पाणिनि के अष्टाध्यायी , वररुचि के वार्तिक ओर महर्षि पतंजलि के महाभाष्य इन त्रिमुनि के द्वारा व्याकरण प्रसिद्ध हुआ ।

प्राचीन इतिहास को देखा जाए तो आठ व्याकरण है इस 

 ' प्रथमं प्रोच्यते ब्राह्म द्वितोयमैन्द्रमुच्यते ।
याम्यं प्रोकं ततो रौद्र वायव्यं वारुणं तथा ।।
सावित्रच तथा प्रोक्तमष्टमं वैष्णवं तथा ॥ '
 ( भविष्यपुराणे ब्राह्मपर्व )
यहा क्रमसे 
1 ब्रह्म व्याकरण।
2 इंद्र व्याकरण।
3 यम व्याकरण।
4 रुद्र व्याकरण।
5 वायु व्याकरण।
6 वरुण व्याकरण।
7 सवित्र व्याकरण।
8 विष्णु व्याकरण। 

पाणिनीय व्याकरण का इतिहास:-

       कहा जाता हैं कि देवो के देव " महादेव भगवान शिव " ने जब अपना डमरू 14 बार बजाया तब उसमें से जो स्वर निकले वह " आचार्य पाणिनि ने" ध्यान की स्थिति में सूत्रों के रूप में सुने - 
वे " अईउण्  ..."  आदि 14 सूत्रों से सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण की रचना की। यह रचना सूत्र माध्यम से " अष्टाध्यायी " नामक ग्रन्थ मैं कि। 
कुछ समय पश्चात ईनके परवर्ती आचार्य " वररुचि " हुए , ईन्होंने ईन सूत्रों पर वार्तिक लिखे और वार्तिककार कहलाए ।
फिर कुछ समय बाद ईनके परवर्ती आचार्य " महर्षि पतंजलि " हुए और इन्होंने ईन सूत्रों और वार्तिकों पर भाष्य लिखे । जिससे वे महाभाष्यकार कहलाए । - 
  
तो ईस तरह संस्कृत प्रसिद्ध पाणिनीय व्याकरण हमारे पास आया ।  चलिए जानते है संस्कृत व्याकरण मे कुछ महत्वपूर्ण पूर्ण पाठ्य (topics) बिन्दुओ को जिनका हम धीरे धीरे अभ्यास करके संस्कृत मे प्रविणता हासिल कर सकते है ।

👑 प्रमुख व्याकरण बिन्दु :-

💍वर्णमाला।
💍अनुस्वार।
💍विसर्ग।
💍अवग्र ।
💍धातुरूप ।
💍कारक-विभक्ति ।
💍उपसर्ग ।
💍प्रत्यय ।
💍सन्धि ।
💍समास ।
💍सर्वनाम ।
💍विशेष्य-विशेषण ।
💍संख्या ज्ञान ।
💍अव्यय।
💍माहेश्वर सूत्र।
💍लिंग ज्ञान।
💍क्रियापद।
💍लकार।
💍उच्चारण स्थान।
💍लोमशब्द।
💍विलोमशब्द।
💍समय(काल) ज्ञान।
💍छंद।
💍अलंकार।
💍अनुवाद। आदि ।।


५. व्याकरणम् 
  भाषा लोकव्यवहारं चालयति , यदि भाषा न स्यात् , जगदिदमन्धे तमसि मज्जेत् , यथोक्तं दण्डिना--
 ' इदमन्ध तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम् । 
यदि शब्दाह्वयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ॥ 
     भाषायाः शुद्धये व्याकरणापेक्षा भवत्येव । नहि व्याकरणज्ञानशून्यः साधून शब्दान् प्रयोक्तुमीशः । वेदस्य रक्षार्थं व्याकरणाध्ययनमत्यावश्यकम् , ' रक्षार्थ वेदानामध्येयं व्याकरणम् , लोपागमवर्णविकारज्ञो हि पुरुषः सम्यग् वेदान् परिपालयिष्यति ' इति पतंजलि । वेदरक्षाक्षमतयैव व्याकरणस्य वेदाङ्गत्वमपि समय॑ते । व्याकरणस्य सर्वाणि प्रयोजनान्युक्तानि महाभाष्ये , ' रक्षोहागमलध्वसन्देहाः प्रयोजनम् ' । रक्षार्थं वेदानामध्येयं व्याकरणम् ।
ऊहः खल्वपि , न सर्वेलिङ्गन सर्वाभिविभक्तिभिर्वेद मन्त्रा निगदिताः , ते चावश्य यज्ञगतेन पुरुषेण यथाययं विपरिणमयितव्याः , तानावे याकरणः शक्नोति यथायथं विपरिणमयितुम् । तस्मादध्येयं व्याकरणम् । एवमन्यान्यपि प्रयो जनानि व्याख्यातानि भाष्ये ।
     पाणिनेरष्टाध्यायो , कात्यायनस्य वातिक भाष्यकृतो भाष्यञ्चेति त्रिमुनि व्याकरण प्रसिद्धम् । व्याकरणान्यष्टौ
   ' प्रथमं प्रोच्यते ब्राह्म द्वितोयमैन्द्रमुच्यते ।
याम्यं प्रोकं ततो रौद्र वायव्यं वारुणं तथा ।।
सावित्रच तथा प्रोक्तमष्टमं वैष्णवं तथा ॥ 
' ( भविष्यपुराणे ब्राह्मपर्व )
 लघुत्रिमुनिकल्पतस्कृतस्तु नव - व्याकरणानि स्मरन्ति -
 ' ऐन्द्र चान्द्र काशकृत्स्नं कौमारं शाकटायनम् ।
 सारस्वतं चापिशल शाकलं पाणिनीयकम् ।। ' 
व्याकरणानामष्टविधत्वमेव प्रसिद्धम् - यथोक्त भास्करण - ' अष्टौ व्याकर णानि षट् च भिषजां व्याचष्टा ताः संहिताः ' इति भविष्यपुराणोक्तानि व्याकर णानि तु न प्रसिद्धानि । ऐन्द्रादीन्येव प्रसिद्धानि । ंंश
सर्वेष्वपि व्याकरणेषु लौकिकवैदिकोभयविधशब्दसाधकतया पाणिनीय व्याकरणस्य प्राधान्यम् । अत एव पाणिन्युपशं व्याकरणं प्रसिद्धम् । 
पाणिनेः कालादिकं जाम्बवतीजयपरिचयप्रकरणे द्रष्टव्यम् ।