वैदिक साहित्य में वेद के छह अङ्ग बताये गए हैं। वह ईस प्रकार है - शिक्षा , कल्प , निरुक्त , छंद , ज्योतिष , व्याकरण ।
यहा " शिक्षा " नामक वेद के अङ्ग को हम जानेंगे -
UGC - net सम्पुर्ण संस्कृत सामग्री कोड - २५ पुरा सिलेबस
"शिक्षा" वह शास्त्र है जिससे वेद मंत्रोंका उच्चारण शुद्ध हो सके। वेदमैं स्वर की प्रधानता है यह सभी जानते है, उस स्वर का ज्ञान इस शिक्षा शास्त्र के द्वारा प्राप्त होता है इसीलिए यह शास्त्र वेदका अङ्ग है।
शिक्षा शास्त्र प्रयोजन मुक्त है इस विषय में तैतरीय उपनिषदमैं कहा है यथा --
" अथ शिक्षांं व्याख्यास्यामः - वर्णः , स्वरः , मात्रा , बलम् , साम , सन्तान इत्युक्तः शिक्षाऽध्यायः। "
अर्थात यहा शिक्षा की व्याख्या करते हुए कहते है कि - वर्ण, स्वर, मात्रा, बल, साम, संतान यह शिक्षा के अध्याय है ।
वर्ण :- अ, आ, क् ,ख, ज्ञ आदि वर्ण कहे गए है ।
स्वर :- उदात्त, अनुदात्त , स्वरित आदि स्वर होते है ।
मात्रा :- ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत आदि मात्रा है।
बल :- स्थान(कंठादि) , प्रयत्न आदि बल है।
साम :- निषादादि साम है ।
संतान :- विकर्षण वगैरह है।
इन सब विषयो का ज्ञान कराना ही शिक्षा है । अभि के समय अनुसार 30 तीस जितने शिक्षा शास्त्र के ग्रंथ उपलब्ध है । उनमे जैसे ---
यज्ञावल्क्य शिक्षा ।,
वाशिष्ठी शिक्षा ।,
कात्यायनी शिक्षा ।,
पाराशरी शिक्षा ।,
अमोघानन्दिनी शिक्षा ।,
नारदी शिक्षा ।,
शौनकीय शिक्षा ।,
गौतमी शिक्षा ।,
माण्डुकी शिक्षा।,
पाणिनिया शिक्षा । मुख्य है । इनमें पाणिनिया शिक्षा सबसे अधिक प्रसिद्ध है
वेद भेदसे शिक्षा शास्त्र में भी विभिन्नता मिलती है । जैसे --
शुक्ल यजुर्वेद की - यज्ञावल्क्य शिक्षा है तो वही सामवेद की नारदी शिक्षा है ।
UGC - net सम्पुर्ण संस्कृत सामग्री कोड - २५ पुरा सिलेबस
शिक्षा का उद्देश्य है वर्णांच्चारण की शिक्षा देना, किस वर्ण का किस स्थान में उच्चारण किया जाता है, कितने स्थान और प्रयत्न हैं, शरीर वायु किस प्रकार वर्ण के रूप में परिवर्तित होती है, कितने स्वर हैं, इत्यादि । तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षा के 6 अंगों का उल्लेख हैवर्ण, स्वर, मात्रा, बल, साम और संतान । 'वर्णः, स्वरः, मात्रा, बलम् , साम, सन्तानः, इत्युक्तः शिक्षाध्यायः' । (तैत्ति. उ. 1.2)
1. वर्ण - वेदों में 52 वर्ण (ध्वनियाँ) प्राप्त होते हैं। स्वर (13), स्पर्श (क सेम तथा ल और ल्ह) (27), य र ल व, शष मह - 8 विसर्ग, अनुस्वार, जिह्वामूलीय और उपध्मानीय (कप से पहले आधे विसर्ग के चिह्न) 4 = (52) “त्रिषष्टिश्चतुःषष्टिर्वा वर्णाः शंभुमते मता:” ।। शिक्षा 3) 4= (पाणिनीय -
2. स्वर - स्वर तीन हैं उदात्त, अनुदात्त और स्वरित । :
3. मात्रा - स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं ये तीन है- हस्व, दीर्घ और प्लत । ह्रस्व की 1 मात्रा, दीर्घ की 2 मात्रा और प्लुत की 3 मात्रा होती है।
4. बल - वर्णों के उच्चारण में होने वाले प्रयत्न और उनके उच्चारण स्थान को वल कहते हैं । प्रयत्न 2 हैं आभ्यन्तर और बाह्य ।
5. साम - समविधि से सुस्पष्ट एवं सुस्वर उच्चारण।
6. संतान - संहिता अर्थात् पदपाठ में प्रयुक्त शब्दों में संधि नियमों को लगाना ।
उपलब्ध शिक्षाग्रन्थ 35 हैं। इनमें मंत्रों के उच्चारण आदि का विस्तृत वर्णन है । 32 शिक्षा ग्रन्थों का एक संकलन 'शिक्षा-संग्रह' नाम से प्रकाशित हुआ है। पाणिनीय शिक्षा के 11 खण्ड बताए जाते हैं।
ऋग्वेद | 1. शिशिरीय शिक्षा 2. शौनक शिक्षा 3. पाणिनीय शिक्षा 4. स्वराङ्ग शिक्षा 5. स्वरव्यञ्जन शिक्षा |
शुक्लयजुर्वेद | 1. याज्ञवल्क्य शिक्षा 2. वर्णरत्न प्रदीपिका 3. प्रातिशाख्य प्रदीप 4. सम्प्रदाय प्रबोधिनी 5. माण्डव्य 6. अवसाननिर्णय |
कृष्ण यजुर्वेद | 1. चारायणीय शिक्षा 2. भारद्वाज शिक्षा 3. व्यास शिक्षा 4. सर्वसम्मत शिक्षा 5. पारिशिक्षा 6. कौण्डिन्य शिक्षा |
सामवेद | 1. नारदीय शिक्षा 2. लोमशीय शिक्षा 3. गौतमीय शिक्षा |
अथर्ववेद | 1. माण्डूकीय शिक्षा 2. वर्णपटल शिक्षा 3. दन्त्योष्ट विधि शिक्षा |