वेद के कितने अंग है?
वेद के अध्ययन के बारेमे पतञ्जलिजीने कहा जाता है कि -
: " ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडंगो वेदोंध्येयोंज्ञेयश्च "
( पस्पशालिके )
अर्थात् छह ( 6 ) अंगों के साथ वेद का अध्ययन ओर ज्ञान लेना चाहिए । इससे यह तो स्पष्ट हो गया के वेद के ( 6 ) छह अंग है ।
वेद के छह अंग यथा -
1) शिक्षा ।
2) छंद ।
3) कल्प ।
4) निरुक्त ।
5) व्याकरण ।
6) ज्योतिष ।
" छन्दः पादौ तु वेदस्यहस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते ।ज्योतिषामयनं चक्षुनिरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।।शिक्षा घ्राणं तु वेदस्यमुखं व्याकरणं स्मृतम् ।तस्मात् साङ्गमधीत्यैवब्रह्मलोके महीयते ॥ "
महर्षि पाणिनि के अनुसार छंद शास्त्र वेद के पैर के स्वरूप है , कल्प शास्त्र हाथ के स्वरूप है , ज्योतिष शास्त्र नेत्र अर्थात चक्षु के रूप है , निरुक्त शास्त्र श्रोत्र अर्थात कान के स्वरूप है , शिक्षा शास्त्र नासिका (नाक) के स्वरूप है , ओर व्याकरण शास्त्र को वेद का मुख बताया गया है । जिस तरह इन अंगों के सिवा किसीका शरीर पूर्ण नही होता वेसे है इन छह अंगों के बिना वेद पूर्ण नही होता ।।
संस्कृते वेदाङ्गानि यथा
वेदस्य षड् अङ्गानि , यथोक्तं पाणिनिना स्वशिक्षायाम् --
' छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्ती कल्पोऽथ पठ्यते ।
ज्योतिषामयनं चक्षुनिरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।।
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम् ।
तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ॥ ' पा ० शि ० ४१-४२ ।
पतञ्जलिनाऽप्युक्तम् - ' ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडङ्गो वेदोऽध्येयो ज्ञेयश्च ।
( पस्पशालिके )
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