वेदमंत्रों को ऋषियों ने छन्दों में प्रस्तुत किया है अतः छंद के ज्ञान के शिवा वेदमंत्रोको बोलना कठिन है । इसी कारण वश छंद भी वेद का अङ्ग माना गया है । वेद पढ़ने के हितेच्छुओ को छंद का ज्ञान अवश्य अर्जित करना चाहिए ।
वैदिक साहित्य में वेद के छह अङ्ग बताये गए हैं। वह ईस प्रकार है - शिक्षा , कल्प , निरुक्त , छंद , ज्योतिष , व्याकरण ।
छन्दस् (छन्द) शब्द छद् (ढकना) धातु से बना है। यास्क ने निरुक्त (7.12) में छन्दस् का निर्वचन दिया है । 'छन्दांसि
छादनात्' अर्थात् छन्द भावों को आच्छादित करके उसे समष्टिरूप प्रदान करता है। इसके कारण छन्द गेय और सुपाठ्य हो जाता है। कात्यायन ने सर्वानुक्रमणी (12.6) में छन्द का लक्षण दिया है 'यदक्षरपरिमाणं तच्छन्दः' जिसमें वर्णों या अक्षरों की संख्या निर्धारित होती है, उसे छन्द कहते है । अक्षरों की संख्या के आधार पर ही छन्दों के नाम रखे गए हैं ।
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वैदिक छंद
गायत्री सबसे प्रसिद्ध छंद, आठ वर्णों (मात्राओं) के तीन पाद। गीता में भी इसको सर्वोत्तम बताया गया है ( ग्यारहवें अध्याय में ) । इसी में प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ढला है।
● त्रिष्टुप 11 वर्णों के चार पाद कुल 44 वर्ण । -
● - अनुष्टुप 8 वर्णों के चार पाद, कुल 32 वर्ण। वाल्मीकि रामायण तथा गीता जैसे ग्रंथों में इसका प्रयोग हुआ है। इसी को श्लोक भी कहते हैं।
● जगती 8 वर्णों के 6 पाद, कुल 48 वर्ण ।
बृहती- कुल 36 वर्ण
• पंक्ति- 4 या 5 पाद कुल 40 अक्षर 2 पाद के बाद विराम होता है पादों में अक्षरों की संख्याभेद से इसके कई भेद हैं
● उष्णिक- इसमें कुल 28 वर्ण होते हैं तथा कुल 3 पाद होते हैं 2 में आठ आठ वर्ण तथा तीसरे में 12 वर्ण होते हैं दो पद के बाद विराम होता है बढे हुए अक्षरों के कारण इसके कई भेद होते हैं
छन्द में अक्षर कम या अधिक होना
एक अक्षर कम-निचृत्, दो अक्षर कम-विराट्, एक अक्षर अधिक भुरिक्दो अक्षर अधिक-स्वराट्
उदाहरण
'गायत्री छन्द' = 24 अक्षर
22 अक्षर विराट गायत्री
23 अक्षर निचृत गायत्री
24 अक्षर गायत्री
25 अक्षर भुरिक गायत्री
26 अक्षर स्वराट् गायत्री
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इस छंद शास्त्र का " पिंगलच्छन्दः सूत्र " नामक ग्रन्थ सब से अधिक प्रसिद्ध हैं। यह किसी पिंगल नामक आचार्य ने रचा हैं।
यहां वैदिक एवं लौकिक दो प्रकार से छंदोका विभाजन मिलता हैं।
लक्षण -
" पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थायोः।
गुरु षष्ठं च पादानां शेषेश्वनियमो मतः।। "
लक्षण -
" मंदाक्रांताम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ त्र्- युग्मम् " ।
लक्षण -
" न न म य य युतेयं मालिनी भोगिलोकैः " ।
लक्षण -
" वद तोटकमब्धिसकारयुतम् " ।
लक्षण -
" स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः " ।
इसी तरह ओर बहोत से जैसे
आर्या ।
शिखरिणी ।
वंशस्थ ।
वसन्ततिलका।
शार्दूल विक्रीडितम् । आदि।।
छन्द | अक्षर | छन्द | अक्षर |
गायत्री | 24 | अत्यष्टि | 68 |
उष्णिक | 28 | धृति | 72 |
अनुष्टुप् | 32 | अतिधृति | 76 |
बृहती | 36 | कृति | 80 |
पंक्ति | 40 | प्रकृति | 84 |
त्रिष्टुप | 44 | आकृति | 88 |
जगती | 48 | विकृति | 92 |
अतिजगती | 52 | संस्कृति | 96 |
शक्करी | 56 | अभिकृति | 100 |
अति शक्करी | 60 | उत्कृति | 104 |
अष्टि | 64 |
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