छंद वेद का अङ्ग
वेद का अङ्ग छंद(पैर)
वेदमंत्रों को ऋषियों ने छन्दों में प्रस्तुत किया है अतः छंद के ज्ञान के शिवा वेदमंत्रोको बोलना कठिन है । इसी कारण वश छंद भी वेद का अङ्ग माना गया है । वेद पढ़ने के हितेच्छुओ को छंद का ज्ञान अवश्य अर्जित करना चाहिए ।
महर्षि शौनक विरचित " ऋक्प्रातिशाख्य " में चरम भागमें छंदोका पर्याप्त विवेचन किया है ।
इस छंद शास्त्र का " पिंगलच्छन्दः सूत्र " नामक ग्रन्थ सब से अधिक प्रसिद्ध हैं। यह किसी पिंगल नामक आचार्य ने रचा हैं।
यहां वैदिक एवं लौकिक दो प्रकार से छंदोका विभाजन मिलता हैं।
वैदिक छंद जैसे :-
गायत्री (24 वर्ण),
उष्णिक् (28 वर्ण),
अनुष्टुप (32 वर्ण),
बृहती (36 वर्ण),
पंक्ति (40 वर्ण),
त्रिष्टुप (44 वर्ण),
जगती (48 वर्ण) आदि।
लौकिक छंद जैसे :-
अनुष्टुप (32 वर्ण),
लक्षण -
" पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थायोः।
गुरु षष्ठं च पादानां शेषेश्वनियमो मतः।। "
मंदाक्रांता (17 वर्ण/पंक्ति)
लक्षण -
" मंदाक्रांताम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ त्र्- युग्मम् " ।
मालिनी (15 वर्ण/ पंक्ति)
लक्षण -
" न न म य य युतेयं मालिनी भोगिलोकैः " ।
तोटकम् (12 वर्ण/पंक्ति)
लक्षण -
" वद तोटकमब्धिसकारयुतम् " ।
इन्द्रवज्रा (11 वर्ण /पंक्ति)
लक्षण -
" स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः " ।
इसी तरह ओर बहोत से जैसे
आर्या ।
शिखरिणी ।
वंशस्थ ।
वसन्ततिलका।
शार्दूल विक्रीडितम् । आदि।।