कल्प वेद का एक अङ्ग

 वेद का अङ्ग कल्प (हाथ)

ब्राह्मणकाल में याग - अनुष्ठानों का ऐसा प्रचार हुआ , की जिससे इनका यथाविधि ज्ञान पाने और पूर्ण परिचय प्रदान करे ऐसे ग्रन्थों की आवश्यकता की अनुभूति हुई, उसी आवश्यकताओ को कम से कम शब्दों में पूर्ण करने हेतु " कल्पसूत्रो " का निर्माण हुआ।

वैदिक साहित्य में वेद के छह अङ्ग बताये गए हैं। वह ईस प्रकार है - शिक्षा कल्प निरुक्त छंद ज्योतिष व्याकरण 

Kalpa-parts of veda

कल्पसूत्रो के मुख्य दो (2) प्रकार है । वह इस तरह है --

1) श्रौतसूत्र

2) स्मार्त्तसुत्र

कल्प का अर्थ- जिन ग्रन्थों में यज्ञ-संबन्धी विधियों का समर्थन या प्रतिपादन किया जाता है, उन्हें 'कल्प' कहते हैं । ऋग्वेद प्रातिशाख्य की टीका में विष्णुमित्र ने कहा है कि जिन ग्रन्थों में वैदिक कर्मों ( यज्ञ आदि ) का सांगोपांग विवेचन किया जाता है, उन्हें 'कल्प' कहते है । 'कल्प्यते समर्थ्यते यागप्रयोगोऽत्र इति व्युत्पत्ते:'- (सायण)

कल्पसूत्रों के भेद

कल्पसूत्रों के प्रमुख चार भेद है

1. श्रौतसूत्र- श्रोत का अर्थ है श्रुति प्रतिपादित या वेदों में वर्णित । श्रुति से श्रौत शब्द बना है। श्रौतसूत्रों में वेदों में वर्णित बड़े यज्ञयाग-इष्टियों का विस्तृत विवेचन विवरण दिया गया है । इन विशिष्ट यागों में मुख्य हैं दर्शपौर्णमास, सोमयाग, वाजपेय, राजसूय, अश्वमेध, सौत्रामणी आदि ।

2. गृह्यसूत्र - इनमें गृहस्थ से सम्बद्ध 16 संस्कारों, 5 महायज्ञ, 7 पाकयज्ञ, गृहनिर्माण गृह प्रवेश पशुपालन और कृषिकर्म आदि से सम्वद्ध यज्ञों की विधियाँ दी गई हैं ।

3. धर्मसूत्र - ये आचारसंहिता से सम्बद्ध ग्रंथ हैं । ये स्मृतियों के पूर्वरूप हैं । इनमें वर्णाश्रम के कर्तव्यों, आचार-विचार, मान्यताओं और सामाजिक जीवन के कर्तव्य अकर्तव्यों का विशद वर्णन है

4. शुल्बसूत्र - ये शुद्ध रूप से गणितशास्त्रीय वैज्ञानिक ग्रन्थ हैं । इनमें गणितशास्त्र के अंग ज्यामितिशास्त्र (Geometry) से सम्बद्ध अनेक प्रमेय दिये गये है। इनमें छोटी-बड़ी सभी प्रकार की वेदियों के निर्माण की पूरी विधि दी गई है । सभी पाश्चात्त्य विद्वान् इन ग्रन्थों में वर्णित ज्यामिति से सम्बद्ध प्रमेयों आदि के वर्णन पर मंत्र मुग्ध हैं । पैथागोरस आदि के प्रमेयों का इनमें स्पष्ट उल्लेख है ।

(1) श्रौतसूत्र :-

यहा पर ' श्रौतसूत्र ' मे वेदों में उक्त याग- अनुष्ठान आदि के बोधक सूत्र होते है ।

यहा अग्नित्रयाधान, अग्निहोत्र, दर्शपौर्ण मास, पशुयाग, विविध प्रकार के सोमयाग जैसे विषयों का प्रतिपादन मिलता है।

" शुल्बसूत्र " भी कल्पसूत्र ही है , यह श्रौतसूत्र के अंतर्गत आते हैं। ' शुल्ब ' का अर्थ मापनक्रिया होता है। यह शुल्बसूत्र ही भारतीय ज्यामिति शास्त्र का प्रवर्तक हैं। पाश्चात्य "पाइथागोरसजी" ने  इस ज्यामिति शास्त्र की रचना की ऐसा जो मानते है , वे शुल्बसूत्र देखकर जानलेवे की यह ज्यामिति शास्त्र भारतीय विद्वानों ने पाश्चात्य ज्यामिति शास्त्र से बहोत वर्ष पूर्व प्रकट किया है ।

(2) स्मार्त्तसूत्र :- 

यह स्मार्त्तसूत्र भी दो विभागों में बटा है -

1) गृह्यसूत्र , 2) धर्मसूत्र ।

यह (1) गुह्यसूत्रों में वेसे अनुष्ठानों एवं यागोंका वर्णन मिलता हैं जिनका संपादन त्रैवर्णीक् को अवश्य करना चाहिए। और सोलह संस्कारों का विशिष्ट वर्णन भी गृह्यसूत्रों मैं होता है ।

ओर (2) धर्मसूत्रों मैं धार्मिक नियम, प्रजा तथा राजा के कर्तव्य, चारो वर्ण तथा चारो आश्रमों के धर्म, नियम पूर्णरूप से वर्णित होता है । इन्ही धर्मसूत्रों से स्मृतिओ का भी उद्भव हुआ है ।

वेदोंके आधार पे कल्पसूत्रो में भिन्नता :-

कल्प सूत्रों में ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद प्रत्येक वेद के साथ साथ भेद प्राप्त होते है जैसे --

ऋग्वेद का कल्पसूत्र :-

1) आश्वालायन, 2) शांखायन । इन दोनों कल्पसूत्रो मैं श्रौतसूत्र ओर गृह्यसूत्र का मिश्रण है । 

शुक्ल यजुर्वेद का कल्पसूत्र :-

1) कात्यायन श्रौतसूत्र, 2) पारस्कर गृह्यसूत्र, 3) कात्यायन शुल्बसूत्र। 

कृष्ण यजुर्वेद का कल्पसूत्र :- 

1) बोधायन सूत्र , 2) आपस्तम्ब सूत्र।  इन सूत्रों मैं श्रौत-गुह्य-धर्म-शुल्बसूत्रों सभी सूत्रों से यह ग्रंथ पूर्ण है 

सामवेद के कल्पसूत्र :-

(1) लाट्यायन श्रौतसूत्र , (2) द्राह्यायण ।

जैमिनिय शाखा अनुसार (1) जैमिनि गुह्यसूत्र (2) गोभिल गुह्यसूत्र (3) खादिर गुह्यसूत्र ।

सामवेद मैं ही आर्षेय कल्प कि भी गणना होती हैं। यही कल्प 'मशक कल्पसूत्र' के नाम से प्रख्यात है। यह सूत्र 'लाट्यायन श्रौतसूत्र' से भी प्राचीन माना है ।

अथर्ववेद के कल्पसूत्र :-

(1) वैतान श्रौतसूत्र, (2) कौशिक सूत्र । वैतान सूत्र बहुत प्राचीन नहीं हैं, कौशिक सूत्र मै अभिचार क्रियाओ का वर्णन मीलता है।

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संस्कृत भाषायां कल्पशास्त्र

ब्राह्मणकाले यागस्य तावान् प्रचारो जातो यत्तेषां यथावज्ज्ञानाय पूर्णपरिचय प्रदायकग्रन्थानामावश्यकताऽनुभूयते स्म , तामेवावश्यकता स्वल्पैः शब्दः पूरयितुं कल्पसूत्राणि विरचितानि ।
    कल्पसूत्राणि द्विविधानि श्रौतसूत्राणि स्मार्तसूत्राणि च श्रुत्युक्तयागविधिप्र काशकानि श्रौतसूत्राणि । स्मार्तसूत्राप्यपि द्विधा - गृह्यसूत्राणि धर्मसूत्राणि च । श्रौतसूत्रेषु अग्नित्रयाधानम् , अग्निहोत्रम् , दर्शपूर्णमासी , पशुयागः , नाना विधाः सोमयागाश्चेति विषयाः समुपपादिताः । 
     गृह्यसूत्रेषु तेषामनुष्ठानाचारयागानां वर्णनं विद्यते येषां सम्पादनं त्रैवणिकैर वश्यं कर्त्तव्यम् । षोडशसंस्काराणां विशिष्टं वर्णनमपि गृह्यसूत्रेषु कृतं बोध्यम् ।
     धर्मसूत्रेषु धार्मिकनियमाः , प्रजानां राज्ञां च कर्तव्यचयाः , चत्वारो वर्णाः , चत्वार आधमाः , तेषां धर्माः पूर्णतया निरूपिताः । एतानि धर्मसूत्राण्येव स्मृतीनां जन्मनेऽकल्पन्त ।
    शुल्बसूत्रमपि कल्पसूत्रमेव , तत् श्रौतसूत्रान्तर्गतम् । शुल्ब मापक्रिया । इदं सूत्रमेव भारतीयज्यामितिशास्त्रस्य प्रवत्तकम् । पाश्चात्त्यैः ' पिथागोरस' ' -प्रभृति भिरिदं ज्यामितिशास्त्र प्रणीतमिति ये कल्पयन्ति , ते शुल्बसूत्रं दृष्ट्वा दृढीकुर्वन्तु यदिदं ज्यामितिशास्त्र भारतीयैः पाश्चात्त्यज्यामितिशास्त्रोत्पत्तेर्बहुदिवसपूर्वमेव प्रकटीकृतमिति ।

    कल्पसूत्राणि 

तत्तद्वेदसम्बन्धनिबन्धनभेदयुतानि । तत्र--

ऋग्वेदस्य कल्पसूत्रम् - आश्वालायनं शाह्वायनब । अनयोरुभयोरपि कल्प सूत्रयोः श्रौतसूत्रं गृह्यसूत्रं च सम्मिलितं विद्यते । 
   शुक्लयजुर्वेदस्य कल्पसूत्रम् , कात्यायनश्रौतसूत्रम् , पारस्करगृह्यसूत्रम् , कात्यायनशुल्बसूत्रञ्च ।
     कृष्णयजुर्वेदस्य कल्पसूत्रम् –बौधायनसूत्रम् आपस्तम्बसूत्रञ्च । अनयोः कल्पसूत्रयोः श्रौतगृह्यधर्मशुल्बसूत्राणिसर्वाण्यपि सन्तोति ग्रन्थाविमौ पूर्णरूपौ ।
      सामवेदस्य कल्पसूत्रम् - लाटघायनश्रौतसूत्रम् द्रारायणञ्च । जैमिनीय शाखायाः श्रौतसूत्रं जैमिनिगृह्यसूत्रम् गोभिलगृह्यसूत्रम् खादिरगृह्यसूत्रञ्च । 
      सामवेदे एव आर्षेयकल्पस्यापि गणना भवति , अयमेव कल्पो मशककल्प सूत्रनाम्नाऽपि प्रथते । सूत्रमिदं लाटयायनश्रौतसूत्रात्प्राचीन मन्यते । 
     अथर्ववेदस्य कल्पसूत्रम् - वतानश्रौतसूत्रम् , कौशिकसूत्रञ्च । वैतानसूत्र नातिप्राचीनम् , कौशिकसूत्रञ्चाभिचारक्रियावर्णनपरम् ।