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तुदादिगण (षष्ठं गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

तुदादिगण (षष्ठं गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग
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 संस्कृत धातुरूप – तुदादिगण

संस्कृत व्याकरण में धातु शब्दों और वाक्यों की नींव है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में धातुओं को 10 गणों में विभाजित किया गया है, जिनमें तीसरा गण है तुदादिगण। इस गण का नाम इसकी पहली धातु तुद् (अर्थ: प्रहार करना, मारना) के आधार पर रखा गया है। तुदादिगण की धातुएं मुख्यतः क्रियात्मक और बलप्रयोग से संबंधित हैं। इनका उपयोग साहित्य, वैदिक ग्रंथों और संवाद में कार्यों की सजीवता और प्रभावशीलता को व्यक्त करने के लिए होता है।


तुदादिगण का परिचय

तुदादिगण की धातुएं मुख्यतः परस्मैपदी होती हैं, अर्थात् क्रिया का फल किसी अन्य को प्राप्त होता है। यह गण क्रियाओं के बल, गति, और क्रियात्मकता को व्यक्त करता है। इस गण की धातुएं जीवन के संघर्षों, बलप्रयोग, और कार्यशीलता के प्रतीक के रूप में कार्य करती हैं।

विशेषताएं:

  1. परस्मैपदी प्रकृति: अधिकांश धातुएं परस्मैपदी हैं।
  2. अर्थगत बल: इस गण की धातुएं शक्ति, गति, और क्रिया के भाव को व्यक्त करती हैं।
  3. विविध उपयोग: ये धातुएं दैनिक क्रियाओं, संघर्ष, और सक्रियता को प्रकट करती हैं।

तुदादिगण की धातु सूची

तुदादिगण (षष्ठं गण) में वे धातुएँ आती हैं जो परस्मैपदी होती हैं। इस गण में आने वाली धातुएँ सामान्यतः मारना, चुभाना, दबाना आदि अर्थों में प्रयुक्त होती हैं। तुदादिगण की धातुएँ संस्कृत में क्रियात्मक कार्यों को व्यक्त करती हैं। नीचे धातुओं की सूची हिंदी अर्थ और उदाहरण सहित प्रस्तुत की गई है:


संस्कृत धातुहिंदी अर्थउदाहरण (लट् लकार)
तुद्मारना, प्रहार करनासः तुदति (वह मारता है)।
स्पृश्स्पर्श करनासः स्पृशति (वह स्पर्श करता है)।
शृभ्तोड़नासः शृभति (वह तोड़ता है)।
द्रुह्हानि पहुँचानासः द्रुहति (वह हानि पहुँचाता है)।
रुज्कष्ट देनासः रुजति (वह कष्ट देता है)।
लुप्छिपानासः लुपति (वह छिपाता है)।
क्षुभ्उत्तेजित करनासः क्षुभति (वह उत्तेजित करता है)।
चुब्चुभानासः चुबति (वह चुभाता है)।
स्तभ्रोकनासः स्तभति (वह रोकता है)।
गुह्छिपानासः गुहति (वह छिपाता है)।
मृज्साफ करनासः मृजति (वह साफ करता है)।
रुह्उगना, बढ़नावृक्षः रोहति (वृक्ष उगता है)।
जुज्बलपूर्वक हिलानासः जुजति (वह हिलाता है)।

विशेषताएँ:

  1. तुदादिगण की धातुएँ प्रायः परस्मैपदी होती हैं, यानी इनके क्रिया रूप ति, सि, मि आदि प्रत्ययों के साथ बनते हैं।
  2. इन धातुओं का उपयोग क्रियात्मक कार्यों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जैसे मारना, दबाना, छिपाना आदि।
  3. तुदादिगण की धातुओं से लट् लकार (वर्तमान काल), लङ्ग् लकार (भूतकाल) और लोट् लकार (आज्ञा) के रूप बनाए जाते हैं।

धातु "तुद्" (मारना) के रूप (लट् लकार)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमतुदतितुदतःतुदन्ति
मध्यमतुदसितुदथःतुदथ
उत्तमतुदामितुदावःतुदामः

तुदादिगण के लकार रूप

तुदादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन्न लकारों में रूपांतरित होती हैं। उदाहरण:

  1. लट् लकार (वर्तमान काल):

    • तुदति (वह प्रहार करता है)
    • हरति (वह हरता है)
  2. लङ् लकार (भूतकाल):

    • अतुदत् (उसने प्रहार किया)
    • अहरत् (उसने हर लिया)
  3. लृट् लकार (भविष्यकाल):

    • तुदिष्यति (वह प्रहार करेगा)
    • हरिष्यति (वह हर लेगा)

तुदादिगण का व्यावहारिक उपयोग

तुदादिगण की धातुएं संस्कृत साहित्य और संवाद में क्रियात्मकता और सक्रियता को व्यक्त करने के लिए उपयोग होती हैं।

  • तुद्: संघर्ष, आक्रमण, और बलप्रयोग को व्यक्त करने के लिए।
  • स्पृध्: प्रतिस्पर्धा और युद्ध के संदर्भ में।
  • हृ: किसी वस्तु को हरण या प्राप्त करने के लिए।

उदाहरण:

  1. "सैनिकः तुदति," जिसका अर्थ है, "सैनिक प्रहार करता है।"
  2. "हरिणः हरति," अर्थात "हरिण दौड़कर हरण करता है।"

निष्कर्ष

तुदादिगण संस्कृत की क्रियात्मक धातुओं का प्रतीक है। यह गण बल, गति, और संघर्ष को व्याकरणिक रूप में व्यक्त करता है। तुदादिगण का अध्ययन न केवल संस्कृत व्याकरण की समझ को गहरा करता है, बल्कि यह जीवन की सक्रियता और ऊर्जा का प्रतीक भी है।

इस गण की धातुएं हमें यह सिखाती हैं कि शब्दों और क्रियाओं के माध्यम से किसी भाषा की शक्ति और गहराई को कैसे व्यक्त किया जा सकता है। तुदादिगण संस्कृत की समृद्धि और वैज्ञानिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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