संस्कृत व्याकरण में धातु शब्दों और वाक्यों की नींव है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में धातुओं को 10 गणों में विभाजित किया गया है, जिनमें तीसरा गण है तुदादिगण। इस गण का नाम इसकी पहली धातु तुद् (अर्थ: प्रहार करना, मारना) के आधार पर रखा गया है। तुदादिगण की धातुएं मुख्यतः क्रियात्मक और बलप्रयोग से संबंधित हैं। इनका उपयोग साहित्य, वैदिक ग्रंथों और संवाद में कार्यों की सजीवता और प्रभावशीलता को व्यक्त करने के लिए होता है।
तुदादिगण की धातुएं मुख्यतः परस्मैपदी होती हैं, अर्थात् क्रिया का फल किसी अन्य को प्राप्त होता है। यह गण क्रियाओं के बल, गति, और क्रियात्मकता को व्यक्त करता है। इस गण की धातुएं जीवन के संघर्षों, बलप्रयोग, और कार्यशीलता के प्रतीक के रूप में कार्य करती हैं।
विशेषताएं:
तुदादिगण (षष्ठं गण) में वे धातुएँ आती हैं जो परस्मैपदी होती हैं। इस गण में आने वाली धातुएँ सामान्यतः मारना, चुभाना, दबाना आदि अर्थों में प्रयुक्त होती हैं। तुदादिगण की धातुएँ संस्कृत में क्रियात्मक कार्यों को व्यक्त करती हैं। नीचे धातुओं की सूची हिंदी अर्थ और उदाहरण सहित प्रस्तुत की गई है:
संस्कृत धातु | हिंदी अर्थ | उदाहरण (लट् लकार) |
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तुद् | मारना, प्रहार करना | सः तुदति (वह मारता है)। |
स्पृश् | स्पर्श करना | सः स्पृशति (वह स्पर्श करता है)। |
शृभ् | तोड़ना | सः शृभति (वह तोड़ता है)। |
द्रुह् | हानि पहुँचाना | सः द्रुहति (वह हानि पहुँचाता है)। |
रुज् | कष्ट देना | सः रुजति (वह कष्ट देता है)। |
लुप् | छिपाना | सः लुपति (वह छिपाता है)। |
क्षुभ् | उत्तेजित करना | सः क्षुभति (वह उत्तेजित करता है)। |
चुब् | चुभाना | सः चुबति (वह चुभाता है)। |
स्तभ् | रोकना | सः स्तभति (वह रोकता है)। |
गुह् | छिपाना | सः गुहति (वह छिपाता है)। |
मृज् | साफ करना | सः मृजति (वह साफ करता है)। |
रुह् | उगना, बढ़ना | वृक्षः रोहति (वृक्ष उगता है)। |
जुज् | बलपूर्वक हिलाना | सः जुजति (वह हिलाता है)। |
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
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प्रथम | तुदति | तुदतः | तुदन्ति |
मध्यम | तुदसि | तुदथः | तुदथ |
उत्तम | तुदामि | तुदावः | तुदामः |
तुदादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन्न लकारों में रूपांतरित होती हैं। उदाहरण:
लट् लकार (वर्तमान काल):
लङ् लकार (भूतकाल):
लृट् लकार (भविष्यकाल):
तुदादिगण की धातुएं संस्कृत साहित्य और संवाद में क्रियात्मकता और सक्रियता को व्यक्त करने के लिए उपयोग होती हैं।
उदाहरण:
तुदादिगण संस्कृत की क्रियात्मक धातुओं का प्रतीक है। यह गण बल, गति, और संघर्ष को व्याकरणिक रूप में व्यक्त करता है। तुदादिगण का अध्ययन न केवल संस्कृत व्याकरण की समझ को गहरा करता है, बल्कि यह जीवन की सक्रियता और ऊर्जा का प्रतीक भी है।
इस गण की धातुएं हमें यह सिखाती हैं कि शब्दों और क्रियाओं के माध्यम से किसी भाषा की शक्ति और गहराई को कैसे व्यक्त किया जा सकता है। तुदादिगण संस्कृत की समृद्धि और वैज्ञानिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।