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भ्वादिगण (प्रथम गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

भ्वादिगण (प्रथम गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

 संस्कृत धातुरूप – भ्वादिगण

संस्कृत भाषा में धातुरूप का विशेष महत्व है। यह धातु (मूल क्रिया) किसी भी शब्द और वाक्य का आधार होती है। पाणिनि के अष्टाध्यायी में कुल 10 गणों में विभाजित धातुओं का वर्णन है, जिनमें पहला और सबसे प्राचीन गण है भ्वादिगण। यह गण संस्कृत व्याकरण का मूल स्तंभ है, क्योंकि अधिकांश सामान्य धातुएं इसी गण में आती हैं।


भ्वादिगण का परिचय

"भ्वादिगण" नाम की उत्पत्ति इसकी पहली धातु भू (अर्थ: होना या अस्तित्व में आना) से हुई है। इस गण में कुल 219 धातुएं शामिल हैं, जिनसे असंख्य शब्द और भाव व्यक्त किए जा सकते हैं। भ्वादिगण की धातुएं मुख्यतः परस्मैपदी होती हैं, लेकिन कुछ आत्मनेपदी या उभयपदी भी होती हैं।


भ्वादिगण का महत्व

भ्वादिगण धातुओं से संस्कृत के मौलिक शब्द और वाक्य बनते हैं। इन धातुओं का उपयोग करके वर्तमान काल, भूतकाल, और भविष्यकाल के क्रियापद बनाए जाते हैं। साथ ही, भ्वादिगण की धातुएं संज्ञा और विशेषण के रूप में भी परिवर्तित होती हैं।

उदाहरण:

  • भू (होना) से "भविष्यति" (वह होगा), "भूत" (जो हो चुका है)।
  • गम् (जाना) से "गच्छति" (वह जाता है), "गमन" (जाना)।

भ्वादिगण की धातु सूची

भ्वादिगण की प्रमुख धातुओं की सूची और उनके अर्थ नीचे दी गई है:

भ्वादिगण (प्रथम गण) में वे धातुएं आती हैं जो सामान्यतः अकर्तरि कारके में प्रयोग होती हैं। ये धातुएँ तीनों लकारों में साधारण रूप से प्रयुक्त होती हैं। भ्वादिगण की धातुओं को समझने के लिए हमने उनकी हिंदी में व्याख्या और उदाहरण दिए हैं।

संस्कृत धातुहिंदी अर्थउदाहरण
भुहोनासः भवति (वह होता है)।
खन्खोदनासः खनति (वह खोदता है)।
गम्जानासः गच्छति (वह जाता है)।
स्थाखड़ा होनासः तिष्ठति (वह खड़ा होता है)।
पत्गिरनापर्णं पतति (पत्ता गिरता है)।
जल्जलनादीपः ज्वलति (दीप जलता है)।
सृबहनानदी स्रवति (नदी बहती है)।
हस्हँसनाबालः हसति (बालक हँसता है)।
द्रुदौड़नाअश्वः धावति (घोड़ा दौड़ता है)।
वद्बोलनासः वदति (वह बोलता है)।
कृकरनासः करोति (वह करता है)।
पच्पकानासः पचति (वह पकाता है)।
लिख्लिखनाछात्रः लिखति (छात्र लिखता है)।
स्मृस्मरण करनासः स्मरति (वह स्मरण करता है)।
धृधारण करनासः धारयति (वह धारण करता है)।
हृलेनासः हरति (वह लेता है)।
दह्जलानाअग्निः दहति (अग्नि जलाती है)।
विश्प्रवेश करनासः विशति (वह प्रवेश करता है)।
पिब्पीनासः पिबति (वह पीता है)।
मृमरनासः म्रियते (वह मरता है)।

भ्वादिगण धातुओं के लकार

भ्वादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन लकारों में प्रयोग होती हैं। उदाहरण के लिए:

  1. लट् (वर्तमान काल)

    • पठति (वह पढ़ता है)
    • गच्छति (वह जाता है)
  2. लङ् (भूतकाल)

    • अपठत् (उसने पढ़ा)
    • अगच्छत् (वह गया)
  3. लृट् (भविष्यकाल)

    • पठिष्यति (वह पढ़ेगा)
    • गमिष्यति (वह जाएगा)

भ्वादिगण का व्यावहारिक उपयोग

भ्वादिगण की धातुएं न केवल संस्कृत साहित्य बल्कि आधुनिक भाषा विज्ञान में भी महत्वपूर्ण हैं। संस्कृत के ये धातुरूप भाषा की वैज्ञानिकता को दर्शाते हैं।
उदाहरण:

  • नी धातु से बने "नायक" और "नायिका"।
  • भू धातु से बने "भविष्य" और "भूतकाल"।

निष्कर्ष

भ्वादिगण संस्कृत भाषा का मूल आधार है। इस गण की धातुओं का अध्ययन करने से भाषा की जटिलता और सौंदर्य को समझा जा सकता है। साथ ही, ये धातुएं विचारों को स्पष्टता और संरचना प्रदान करती हैं। संस्कृत सीखने के लिए भ्वादिगण का ज्ञान अनिवार्य है, क्योंकि यह भाषा के सभी पहलुओं को समझने की कुंजी है।

मम विषये! About the author

ASHISH JOSHI
नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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