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रूधादिगण (अष्टं गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

रूधादिगण (अष्टं गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग
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संस्कृत धातुरूप – रूधादिगण

संस्कृत व्याकरण में धातु शब्दों के माध्यम से वाक्य और विचारों का निर्माण होता है। पाणिनि के अष्टाध्यायी में धातुओं को दस गणों में विभाजित किया गया है, जिनमें एक महत्वपूर्ण गण है रूधादिगण। इस गण की धातुएं मुख्यतः रुक् (अर्थ: रोकना, रोकने का कार्य) से उत्पन्न होती हैं और इनका उपयोग विभिन्न क्रियाओं, विशेष रूप से रोकने और नियंत्रण से संबंधित कार्यों को व्यक्त करने में किया जाता है।


रूधादिगण का परिचय

रूधादिगण की धातुएं विशेष रूप से क्रियाओं को व्यक्त करती हैं जो किसी प्रक्रिया या कार्य को रोकने, नियंत्रित करने, या सीमित करने से संबंधित होती हैं। इस गण की धातुएं न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक या भावनात्मक रूप से भी रोकने और थामने के संदर्भ में उपयोगी होती हैं।

रूधादिगण की विशेषताएं:

  1. रोकने और थामने से संबंधित: इस गण की धातुएं मुख्यतः अवरोध या रोकने की क्रियाओं को व्यक्त करती हैं।
  2. कठिनाई और बाधा: इन धातुओं का प्रयोग कठिनाइयों, अवरोधों और बंधनों के संदर्भ में होता है।
  3. परस्मैपदी: अधिकतर धातुएं परस्मैपदी होती हैं, अर्थात इन क्रियाओं का फल किसी अन्य को प्राप्त होता है।

रूधादिगण की धातु सूची

रूधादिगण (अष्टम गण) में वे धातुएँ सम्मिलित हैं जो सामान्यतः आत्मनेपदी होती हैं। इन धातुओं का प्रयोग रोकने, छिपाने, घेरने, बाँधने जैसे कार्यों के लिए किया जाता है। नीचे रूधादिगण की धातुओं की सूची हिंदी अर्थ और उदाहरण सहित प्रस्तुत की गई है:


संस्कृत धातुहिंदी अर्थउदाहरण (लट् लकार)
रूध्रोकना, बाधित करनासः रुध्यते (वह रोकता है)।
लुभ्लुभानासः लुभ्यते (वह लुभाता है)।
विद् (लुप्)छिपानासः विध्यते (वह छिपता है)।
गुह्छिपानासः गुह्यते (वह छिपाता है)।
स्तम्भ्रोकना, स्थिर करनासः स्तम्भ्यते (वह स्थिर करता है)।
मुह्मूर्छित होनासः मुह्यते (वह मूर्छित होता है)।
द्रुह्हानि पहुँचानासः द्रुह्यते (वह हानि पहुँचाता है)।

विशेषताएँ:

  1. रूधादिगण की धातुएँ मुख्यतः आत्मनेपदी होती हैं।
  2. इन धातुओं का प्रयोग रोकने, बाधा देने, छिपाने, स्थिर करने जैसे कार्यों के लिए होता है।
  3. रूधादिगण की धातुओं से लट् लकार (वर्तमान काल), लङ्ग् लकार (भूतकाल) और लोट् लकार (आज्ञा) के रूप बनाए जाते हैं।

धातु "रूध्" (रोकना) के रूप (लट् लकार)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमरुध्यतेरुध्येतेरुध्यन्ते
मध्यमरुध्यसेरुध्येथेरुध्यध्वे
उत्तमरुध्येरुध्यावहेरुध्यामहे

रूधादिगण के लकार रूप

रूधादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन्न लकारों में रूपांतरित होती हैं। उदाहरण:

  1. लट् लकार (वर्तमान काल):

    • रुदति (वह रोता है)
    • रुणद्धि (वह रोकता है)
  2. लङ् लकार (भूतकाल):

    • अरुदत् (उसने रोया)
    • अरुणद्धि (उसने रोका)
  3. लृट् लकार (भविष्यकाल):

    • रुदिष्यति (वह रोएगा)
    • रुणद्धि (वह रोकेगा)

रूधादिगण का व्यावहारिक उपयोग

रूधादिगण की धातुएं जीवन के उन पहलुओं को व्यक्त करती हैं जो किसी क्रिया को रोकने, थामने, या बाधित करने से संबंधित होते हैं। इन धातुओं का उपयोग प्रायः शारीरिक या मानसिक अवरोध, रोक, और बंधन के संदर्भ में किया जाता है।

  • रुद्: किसी की भावना को व्यक्त करने के लिए जैसे रोना।
  • रुध्: किसी क्रिया को रोकने, बाधित करने या नियंत्रित करने के लिए।
  • बन्ध्: बंधन, जैसे किसी व्यक्ति या वस्तु को बांधना।

उदाहरण:

  1. "बालकः रुदति," जिसका अर्थ है, "बालक रोता है।"
  2. "पिता बन्धति," अर्थात "पिता बांधता है।"

निष्कर्ष

रूधादिगण संस्कृत के ऐसे गणों में से एक है जो शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक अवरोध और नियंत्रण को व्यक्त करता है। यह गण संस्कृत व्याकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह किसी कार्य को रोकने, थामने, या सीमित करने के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करता है।

रूधादिगण की धातुओं का अध्ययन न केवल संस्कृत के शास्त्रीय ज्ञान को समझने में सहायक होता है, बल्कि यह हमें जीवन में अवरोधों और कठिनाइयों का सामना करने की गहरी समझ भी प्रदान करता है।

About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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