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क्रयादिगण (नवम् गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

क्रयादिगण (नवम् गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग
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 संस्कृत धातुरूप – क्रयादिगण

संस्कृत व्याकरण में धातु शब्दों और क्रियाओं का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है, जो वाक्य की संरचना और अर्थ को आकार देते हैं। पाणिनि के अष्टाध्यायी में धातुओं को 10 गणों में विभाजित किया गया है, जिनमें एक महत्वपूर्ण गण है क्रयादिगण। यह गण विशेष रूप से क्रय (अर्थ: खरीदना, प्राप्त करना) से उत्पन्न हुआ है और इसकी धातुएं मुख्य रूप से क्रय, विक्रय, और लेन-देन से संबंधित कार्यों को व्यक्त करती हैं।


क्रयादिगण का परिचय

क्रयादिगण की धातुएं मुख्यतः क्रय (खरीदना, प्राप्त करना) से संबंधित होती हैं, और इनका उपयोग किसी वस्तु को प्राप्त करने, खरीदने, या किसी अन्य व्यक्ति से लेना देने के संदर्भ में होता है। इस गण की धातुएं जीवन के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को दर्शाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

क्रयादिगण की विशेषताएँ:

  1. लेन-देन से संबंधित क्रियाएँ: यह गण क्रय, विक्रय और व्यापार से संबंधित क्रियाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
  2. सामाजिक और व्यापारिक जीवन: इस गण की धातुएं समाज में वस्तु या सेवा के आदान-प्रदान और लेन-देन की प्रक्रियाओं को व्यक्त करती हैं।
  3. परस्मैपदी: अधिकांश धातुएं परस्मैपदी होती हैं, अर्थात क्रिया का फल किसी अन्य को प्राप्त होता है।

क्रयादिगण की धातु सूची

क्रयादिगण (नवम गण) की धातुएँ सामान्यतः परस्मैपदी होती हैं और इनका उपयोग क्रियात्मक कार्यों जैसे खरीदना, करना, झुकना आदि के लिए किया जाता है। इस गण की धातुओं से बनने वाले क्रिया रूप साधारणतः णिजन्त (सहितकारी रूप) होते हैं। नीचे क्रयादिगण की धातुओं की सूची हिंदी अर्थ और उदाहरण सहित दी गई है:


संस्कृत धातुहिंदी अर्थउदाहरण (लट् लकार)
क्रय्खरीदनासः क्रिणाति (वह खरीदता है)।
ग्रह्पकड़ना, ग्रहण करनासः गृह्णाति (वह ग्रहण करता है)।
व्रज्जानासः व्रजति (वह जाता है)।
भ्रज्चमकनासः भ्राजति (वह चमकता है)।
यज्यज्ञ करनासः यजति (वह यज्ञ करता है)।
रञ्ज्रंगना, प्रसन्न होनासः रञ्जति (वह रंगता है)।
स्पृह्इच्छा करनासः स्पृहति (वह इच्छा करता है)।
क्षिप्फेंकनासः क्षिपति (वह फेंकता है)।
तर्ज्डाँटना, धमकानासः तर्जति (वह डाँटता है)।

विशेषताएँ:

  1. क्रयादिगण की धातुएँ सामान्यतः परस्मैपदी होती हैं।
  2. इन धातुओं का प्रयोग क्रियात्मक कार्यों जैसे खरीदने, ग्रहण करने, फेंकने आदि के लिए होता है।
  3. क्रयादिगण की धातुओं से लट् लकार (वर्तमान काल), लङ्ग् लकार (भूतकाल), लोट् लकार (आज्ञा) आदि रूप बनाए जाते हैं।

धातु "ग्रह्" (पकड़ना) के रूप (लट् लकार)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमगृह्णातिगृह्णीतःगृह्णन्ति
मध्यमगृह्णासिगृह्णीतःगृह्णीथ
उत्तमगृह्णामिगृह्णीवःगृह्णीमः

क्रयादिगण के लकार रूप

क्रयादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन्न लकारों में रूपांतरित होती हैं। उदाहरण:

  1. लट् लकार (वर्तमान काल):

    • क्रिनोति (वह खरीदता है)
    • विक्रिनोति (वह बेचता है)
  2. लङ् लकार (भूतकाल):

    • अक्रयत् (उसने खरीदी)
    • अविक्रयत् (उसने बेची)
  3. लृट् लकार (भविष्यकाल):

    • क्रिनिष्यति (वह खरीदेगा)
    • विक्रिष्यति (वह बेचेगा)

क्रयादिगण का व्यावहारिक उपयोग

क्रयादिगण की धातुएं समाज और व्यापार के संदर्भ में महत्वपूर्ण होती हैं। ये धातुएं वस्तु या सेवा के आदान-प्रदान, लेन-देन और व्यापार की क्रियाओं को व्यक्त करती हैं। इस गण का उपयोग मुख्यतः व्यापारिक संदर्भों में होता है, जहां किसी वस्तु की खरीद, बिक्री, और व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं।

  • क्रय्: वस्तु खरीदने या प्राप्त करने की क्रिया।
  • विक्रय्: वस्तु बेचने की क्रिया।
  • लभ्: किसी चीज को प्राप्त करना, लाभ प्राप्त करना।

उदाहरण:

  1. "वह क्रिनोति," अर्थात "वह खरीदता है।"
  2. "वह विक्रिनोति," अर्थात "वह बेचता है।"

निष्कर्ष

क्रयादिगण संस्कृत के एक महत्वपूर्ण गण के रूप में व्यापार, लेन-देन और आदान-प्रदान की क्रियाओं को व्यक्त करता है। यह गण न केवल भाषा की व्यावहारिकता को दर्शाता है, बल्कि हमारे समाज और अर्थव्यवस्था के सामाजिक पहलुओं को भी उजागर करता है।

क्रयादिगण की धातुओं का अध्ययन न केवल संस्कृत के व्याकरण को समझने में सहायक होता है, बल्कि यह हमें व्यापार, वाणिज्य और अर्थव्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने में भी मदद करता है।

About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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