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ऋग्वैदिक हिरण्यगर्भ सूक्त

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ऋग्वैदिक हिरण्यगर्भ सूक्त

 हिरण्यगर्भ सूक्त (10.121)

UGC - net सम्पुर्ण संस्कृत सामग्री कोड - २५ पुरा सिलेबस 

ऋषि- हिरण्यगर्भ,

हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । 

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥1॥ 

य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः । 

यस्य छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ 2 ॥ 

यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव । 

य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥3॥ 

यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्र रसया सहाहुः । 

यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ 4 ॥ 

येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येन नाकः । 

यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ 5 ॥ 

यं ऋन्दसी अवसा तस्तभाने अभ्यैक्षेतां मनसा रेजमाने । 

यत्राधि सूर उदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥6॥ 

आपो ह यद्बृहतीर्विश्वमायन्गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम् । 

ततो देवानां समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ 7 ॥ 

यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम् । 

यो देवेष्वधि देव एक आसीत्कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥8॥ 

मा नो हिसीजनिता यः पृथिव्या यो वा दिवं सत्यधर्मा जजान । 

यश्चापश्चन्द्रा बृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ 9 ॥ 

प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव ।

यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥10॥

 हिरण्यगर्भ सूक्त शब्दार्थ- 

नाकः - सूर्य, 

रजसः - जलों का, 

क्रन्दसी - द्युलोक पृथ्वी लोक, 

रेजमान - प्रकाशमान, 

असुः - प्राणभूत वायु, 

चन्द्राः - आनन्द प्राप्त करने बाले,

 ' यस्य समुद्रं रसया सहाहुः ।

 (रसया- नदियां), 

सह - नदियों के साथ।

ऋग्वेदः 

About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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