ऋग्वैदिक उषस् सूक्त

ऋग्वैदिक उषस् सूक्त

उषस् सूक्त (3.61) 

ऋषि- वशिष्ठ, सूक्त- 20,

उषो वाजेन वाजिनि प्रचेता स्तोमं जुषस्व गृणतो मघोनि । 

पुराणी देवि युवतिः पुरंधिरनु व्रतं चरमि विश्ववारे ॥ 1 ॥ 

उपो देव्यमर्त्या वि भाहि चन्द्ररथा सूनृता ईरयन्ती । 

आ त्वा वहन्तु सुयमासो अश्वा हिरण्यवर्णां पृथुपाजसो ये ॥2॥ 

उषः प्रतीची भुवनानि विश्वोर्ध्वा तिष्ठस्यमृतस्य केतुः । 

समानमर्थं चरणीयमाना चक्रमिव नव्यस्या ववृत्स्व ॥3॥ 

अव स्यूमेव चिन्वती मघोन्युषा याति स्वसरस्य पत्नी । 

स्वर्जनन्ती सुभगा सुदंसा आन्ताद्दिवः पप्रथ आ पृथिव्याः ॥4॥ 

अच्छा वो देवीमुषसं विभातीं प्र वो भरध्वं नमसा सुवृक्तिम् । 

ऊर्ध्वं मधुधा दिवि पाजो अश्रेत्प्ररोचना रुरुचे रण्वसंदृक् ॥5॥ 

ऋतावरी दिवो अर्कैरवोध्या रेवती रोदसी चित्रमस्थात । 

आयतीमग्न उषसं विभातीं वाममेषि द्रविणं भिक्षमाणः ॥ 6 ॥

 ऋतस्य बुध्र उषसामिषण्यन्वृषा मही रोदसी आ विवेश । 

मही मित्रस्य वरुणस्य माया चन्द्रेव भानुं वि दधे पुरुत्रा ॥ 7 ॥

उषस् सूक्त शब्दार्थ

वाजः- अन्न, 

प्रचेताः- प्रकृष्ट ज्ञान वाली, 

स्तोमम् - स्तोत्र, 

जुषस्व - ग्रहण करना, 

गृणतः- स्तुति करने वाला, 

पुराणी- पुरातनी, 

पुरंधिः - बुद्धिशालिनी, 

चन्द्ररथा- सुवर्णमय रथ पर आरुढ़, 

सूनृता- प्रिय सत्य वाणी, 

ईरयन्ती- उच्चारण करती हुई, 

पृथुपाजस - अधिक बलशाली, 

मघोनी- धन सम्पत्ति-शालिनी, 

पाजः- तेज / बल, 

मधुधा - स्तुति, 

रेवतीधन - से युक्त, 

अर्क - तेजःपुञ्ज (अव स्यूमेव चिन्वती) 

स्यूम - वस्त्र,

प्रमुख सन्दर्भ उषस् सूक्त 

  • ('उच्छतीति उषस्' यास्क) । 
  • उषा अमरत्व का प्रतीक है- 'अमृतस्य केतुः ।

विशेषण- ऋतावरी, अश्ववती, गवामाता, हिरण्यवर्णा, चित्रामघा, मघोनी, प्रचेताः, विश्ववारा, सुभगा, सुजाता, अन्तिवामा, रेवती, गोमती, अह्नानेत्री, पुराणी युवतिः, दिवः दुहिता, सुदृशीकसंहक, अमृत्यकेतुः, भास्वती, अमृता अर्जुनी, अरुषा, सप्रतीका, भद्रा, मूनरी, मुनृतावती, ऋतपा, चन्द्रस्था, नवयौवन नर्तकी, प्रचेता ।


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