ऋग्वैदिक अग्नि सूक्त

 ऋग्वैदिक अग्नि सूक्त 

ऋग्वैदिक अग्नि सूक्त 

UGC - net सम्पुर्ण संस्कृत सामग्री कोड - २५ पुरा सिलेबस

अग्नि सूक्त 

ऋषि- मधुच्छन्दा,

सूक्त- 200

ॐ अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य दे॒वमृ॒त्विज॑म् ।

होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥ 1 ॥ 

अग्निः पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत । 

स देवाँ एह वक्षति ॥2॥ 

अग्निना रयिमश्रवत् पोषमेव दिवेदिवे । 

यशसं वीरवत्तमम् ॥3॥ 

अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । 

स इद्देवेषु गच्छति ॥4॥ 

अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । 

देवो देवेभिरा गमत् ॥5॥ 

यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । 

तवेत् तत् सत्यमङ्गिरः ॥6॥ 

उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । 

नमो भरन्त एमसि ॥ 7 ॥ 

राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । 

वर्धमानं स्वे दमे ॥8॥ 

स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । 

सचस्वा नः स्वस्तये ॥9॥

अग्नि सूक्त शब्दार्थ

ईळे- स्तुति करना, (मैकडानल महत्व गान करना, 

यास्क -प्रार्थना करना), 

होता - आह्वाहन करने वाला (मैक्डालन) 

रयि- धन, 

दिवेदिवे - प्रतिदिन, 

अध्वरम्- हिंसा से रहित यज्ञ, 

कविऋतु:- अतीत अनादि कर्मों को जानने वाला। (मैक्डॉलन के अनुसार बुद्धि से युक्त बुद्धिमान।) 

गोपाम - रक्षक, 

चित्रश्रवस्तमः- विविध प्रकार की कीर्ति से युक्त,

ऋतस्य - प्राकृतिक विधान, 

सूपायन - सरल / सुगम, 

सचस्वा - लगना, मिलना, 

दाशुष- हवि प्रदान करने वाला, 

अङ्गिर- अङ्गार रूपी, अङ्गिरा मुनि को जन्म देने वाले पदार्थ, 

दोषावस्तः- रातदिन, 

नमोभरन्तः- नमस्कार करते हुए, 

दीदिवम् - पुनःपुनः प्रकाशित करने वाले, 

दमे (वर्धमानं स्वे दमे) - घर, यज्ञशाला में।

अग्नि सूक्त प्रमुख सन्दर्भ

  • "कर्माण्यपसो मनीषिणः”। इसमे 'अपसः' का अर्थ है - कर्मनिष्ठ।
  • "मधुवाता ऋतायते"। (ऋत - यज्ञ )
  • वेदों में तीन अग्नि = गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि । 
  • अग्नि = वृत्रहा, धृतपृष्ठ, घृतमुख, घृतकश, हरितकेश, घृतप्रतीक, ज्वाललोम।
  • अग्नि के लिए धूमकेतु विशेषण प्रयुक्त हुआ है, तथा अमुर उपाधि का प्रयोग हुआ है । इसे प्रत्येक गृह में वास होने के कारण = गृहपति, विश्वपति ( दमूनस) कहा जाता है।
  • अग्नि के पिता = द्यौस, त्वष्टा, द्यावा ।
  • अग्नि को- वृषभ, अश्व, वत्स, दिव्य, (पक्षि) आदि रूप में भी प्रस्तुत किया गया है।
  • अग्नि का नेत्र = घृत (घृतं मे चक्षुः) तीक्ष्णद्रष्ट्र

विशेषण- ऋत्विक्, होता, पुरोहितः, रत्नधातमं, कविऋतु, चित्रश्रवस्तम, कवि, हव्यवाह, धूमकेतु, अंगिरस, दूत, विश्वेदेवा, त्रिमूर्द्धा, सप्तरश्मि, घृतपृष्ठ, घृतलोम, घृतप्रतीक, शोचिषकेश, मन्द्रजिह्म, ऊर्जोनपात्, अपानपात, असुर, विश्वपति, सहस्त्रपुत्र, यविष्ठयः, मध्यः नाराशंस, हरितकेश, ब्राह्मणदेवता, सहस्त्राक्ष ।


ऋग्वेदः