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उपनिषदों का सम्पूर्ण परिचय

Full introduction of upnishada
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 उपनिषदों का परिचय

    वेदांत ही उपनिषद के रूप मे कहे जाते है। उपनिषद का अर्थ - आध्यात्मविद्यारहस्य का प्रतिपादक वेदभाग जो है वह उपनिषद कहा जाता हैं।

उपनिषद् का अर्थ

उपनिषद् शब्द उप और नि उपसर्गपूर्वक 'सद्' धातु से 'क्विप्' प्रत्यय करने पर बनता है। इसका अर्थ है- उप = समीप, नि=निश्चय से या निष्ठापूर्वक, सद बैठना, अर्थात् तत्त्वज्ञान के लिए गुरु के पास सविनय बैठना। श्री शंकराचार्य ने उपनिषद् का अर्थ ब्रह्मविद्या माना है। उन्होंने उपनिषद् शब्द की व्याख्या 'सद' धातु (पट्टविशरणगत्यवसादनेषु) से तीन अर्थों में की है ।

1. विशरण -  नाश होना, जिसमें संसार की मूलभूत अविद्या का नाश होता है ।

2. गति - पाना या जानना, जिससे ब्रह्म कि प्राप्ति होती है या उसका ज्ञान होता हैं। 

3. अवसादन- शिथिल होना, जिससे मनुष्य के दुःख या बन्धन शिथिल होते हैं ।


Full introduction of upnishada

उपनिषदों की संख्या

उपनिषदों की संख्या 108 से लेकर 200 तक मानी जाती है। मुक्तिक उपनिषद् में उपनिषदों की संख्या 108 बताई गई है। श्रीशंकराचार्य ने 10 उपनिषदों को प्रामाणिक और प्राचीन माना है तथा इनके ऊपर भाष्य लिखा है । मुक्तिक उपनिषद् ने भी 'दशोपनिषदं पठ' (1.27 ) के द्वारा प्रामाणिक उपनिषद 10 मानें हैं तथा इनके ये नाम हैं

"ईश-केन- कठ- प्रश्न - मुण्ड-माण्डूक्य-तित्तिरिः ।
ऐतरेयं च छान्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा" | (मुक्तिक. 1.30) 
इनके अतिरिक्त श्वेताश्वतर, कौषीतकि और मैत्रायणीय भी प्राचीन माने जाते हैं। श्री शंकराचार्य ने अपने भाष्य में श्वेताश्वतर और कौषीतकि के भी उद्धरण दिए हैं। अतःइन तीनों को लेकर प्राचीन उपनिषदों की संख्या 13 मानी जाती है । 'प्रो. ह्यूम' ने उपनिषदों की संख्या 13 मानी है। उनमें पूर्वोक्त 10 उपनिषदों के अतिरिक्त श्वेताश्वतर, कौषीतकि और मैत्रायणीय उपनिषद हैं । 'दाराशिकोह ने 17 वीं शताब्दी में 50 उपनिषदों का 'फारसी' में अनुवाद करवाया था।

उपनिषदों का रचनाकाल

श्री ‘तिलक’ ने मैत्रायणीय उपनिषद् का काल (लगभग 1950 ई.पू.) माना है। तदनुसार उपनिषद् काल का प्रारम्भ 2500 ई.पू. मानना चाहिए । ‘प्रो.रानाडे' के अनुसार उपनिषद् काल की दो सीमाएँ निर्धारित की जा सकती हैं। पूर्व सीमा 12वीं शती ई.पू. और अपर सीमा छठी शताब्दी ई.पू. । उपनिषदों में बुद्ध, बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन का कहीं उल्लेख नहीं है, अतः बुद्ध के आविर्भाव से पूर्व इनकी अपर सीमा है ।

उपनिषदों के प्राचीन भाष्य एवं अनुवाद

1. शांकरभाष्य - शांकरभाष्य उपनिषदों के प्राचीन भाष्यों में श्री शंकराचार्य के भाष्य सर्वोत्तम एवं प्रामाणिक हैं । श्री शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों के भाष्य किए हैं, व है-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक

2. प्रो. ह्यूम- प्रो. ह्यूम ने 13 उपनिषदा का अंग्रेजी में अनुवाद किया है।

3. दाराशिकोह- दाराशिकोह ने 50 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद 'सिर्र-ए-अकबर' (महान् रहस्य) नाम से 1657 ई. में किया था । उसका कथन था कि कुरान में किताबिम मक्नुनिन' (छिपी हुई किताब) का उल्लेख है और यह छिपी हुई किताब उपनिषदें ही है। श्री मुंशी महेशप्रसाद' ने इन 50 उपनिषदों में से 45 उपनिषदों के मूल नाम खोज निकाले है। इनमें बाप्कल, छागलेय और आर्षेय आदि उपनिषदा के भी अनुवाद हैं। दाराशिकोह के फारसी अनुवाद से 'आंकतिल दु पेरों' (anquetil du perron) नामक 'फ्रेंच' विद्वान ने (1802) में इसका 'फ्रेंच' और 'लैटिन' में 'आउपनेखत' (oupnekhat) नाम से अनुवाद किया। 'उपनिषत्' का ही विकृत रूप 'आउपनेखत' है। इसके आधार पर ही प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक ‘शोपेनहावर’ (schopenhauer) उपनिषदों के प्रति बहुत आकृष्ट हुआ और उसने उपनिषदों को 'मानवीय वैदुष्य की सर्वोत्तम कृति' बताया था। शुक्लयजुर्वेद से सम्बन्धित उपनिषदों की संख्या 19 हैं।

मुक्तिक नामक उपनिषद मैं - उपनिषदो की संख्या 108 कही गई है।  

  • वहा 10 उपनिषद ऋग्वेद से संबंधित है, 
  • 19 शुक्ल यजुर्वेद से संबंधित है,
  •  32 कृष्णयजुर्वेद से संबंधित है, 
  • 16 सामवेद से संबंधित है, 
  • 31 अथर्ववेद से संबंधित है। 

वेदांत आचार्यो ने इन उपनिषदों में से कुछ उपनिषदो को अपने मतानुसार एक व्याख्या के द्वारा विभूषित किये है । उनमें से दस(10) उपनिषद बहु प्रसिद्ध है वह इस तरह है --

 "ईश-केन-कठ-प्रश्न-मुण्ड-माण्डूक्य-तैत्तिरीय-ऐतरेय-छान्दोग्य-बृहदारण्यक ।"

प्रसिद्ध 10 उपनिषद ।

1 ईशोपनिषद

2 केनोपनिषद

3 कठोपनिषद

4 प्रश्नोपनिषद

5 मुण्डकोपनिषद

6 माण्डूक्योपनिषद

7 तैतरीय उपनिषद

8 ऐतरेय उपनिषद

9 छान्दोग्य उपनिषद

10 बृहदारण्यक उपनिषद

ओर कही कही " श्वेरश्वेतर " ग्यारवे प्रसिद्ध उपनिषद के रूप में गिना जाता है । 

कुछ उपनिषद गद्यात्मक है, तो कुछ उपनिषद पद्यात्मक है, वही कुछ उपनिषद गद्य-पद्य का मिश्र उभयात्मक है। इन उपनिषदों का रचना काल भिन्न भिन्न है, परन्तु प्रसिद्ध कुछ उपनिषदों का रचना काल बुद्धकाल से प्राचीन है ऐसा मानते है।

उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक विद्या के प्रज्वलित रत्न के समान है। महर्षियो ने जिन आद्यात्मिक तत्वों के ज्ञान का साक्षात्कार किया उन सभी तत्वों को यहा उपनिषद के रूप में वर्णित किया है।

17 सत्तरवे शतक मैं 'दारा शिकोह' नामक यवन सम्राट 'शाहजहां' के पुत्रने (50) पचास जितने उपनिषदों को पारसी भाषामे  ब्राह्मणपंडितो की सहायता से अनुवादित कराया था ।

"शोपेन होवर" नामक प्रसिध्द विदेशी दार्शनिक उपनिषद का ज्ञान स्वगुरु से प्राप्त करता है । अभी के दौर में पाश्चात्य उपनिषदों को महान प्रभाव है, प्रायः सभी सभ्य भाषाओ मैं इन उपनिषदो का अनुवाद मिलता है ।

उपनिषद अतिसरल ओर सरस शैली में तत्व के ज्ञान को समजाते है, इसी लिए इनका महत्व और लोकप्रियता प्रतिदिन बढ़ रहा है । इनकी तत्व प्रकाशन शैली यथा ---

'आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।
 बुद्धि तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।
 'इन्द्रियाणि यानाविषयांस्तेषु गोचरान् । आत्मेन्द्रियमनोयुक्त भोक्तत्याहुमनीषिणः ॥

भगवद गीता में भी उपनिषदों का ही ज्ञान प्राप्त होता है ।


 संस्कृते उपनिषत्परिचयः ।


      वेदान्ता उपनिषद इत्याख्यायन्ते । उपनिषच्छब्दस्य रहस्यमर्थः , अध्यात्म विद्यारहस्यप्रतिपादका वेदभागा उपनिषदः कथ्यन्ते ।
    मुक्तिकोपनिषदि उपनिषदा संख्या १०८ कथिता । तत्र १० उपनिषदः ऋग्वेदसम्बद्धाः , १ ९ , उपनिषदः शुक्लयजुर्वेदसम्बद्धाः , ३२ कृष्णयजुर्वेदसम्बद्धाः , १६ सामवेदसम्बद्धाः , ३१ अथर्ववेदसम्बद्धाः । वेदान्ताचार्या एतासूपनिषत्सु कतिचनोपनिषदः स्वमतानुसारिव्याख्यया भूषितवन्तः । तासु दशोपनिषदः प्रसिद्धाः - ईश - केन - कठ - प्रश्न - मुण्ड - माण्डूक्य - तैत्तिरीय - ऐतरेय छान्दोग्य - बृहदार ण्यकोपनिषदः । श्वेताश्वतरोपनिषदेकादश्यपि प्रसिद्धा । 
      कतिचनोपनिषदो गद्यात्मिकाः , कतिचन पद्यात्मिकाः कतिचन गद्यपद्यो भयात्मिकाश्च । आसामुपनिषदां रचनाकालो भिन्नभिन्नः , परं प्रसिद्धाः कति चनोपनिषदो बुद्धकालात्प्राचीन एवेति सर्वसम्मतम् ।
      उपनिषदो भारतीयाध्यात्मविद्याया ज्वलन्ति रत्नानि । महर्षयो यानि आध्यात्मिकतत्त्वानि ज्ञानदृशा साक्षादकुर्वन् तानि सर्वाणि तत्त्वान्यत्र वर्णीतनि ।
      सप्तदशशतके दाराशिकोहनामा शाहजहाँनाम्नः यवनसम्राजः पुत्रः ५० सङ्ख्याकाः उपनिषदः पारसीभाषायां ब्राह्मणपण्डितानां साहाय्येनानुवादितवान् । 
     ' शोपेन होवेर ' ( Shopen Hower ) नामा प्रसिद्धो वैदेशिको दार्शनिक उपनिषदः स्वगुरुषु गणयति स्म । सम्प्रत्यपि पाश्चात्येषूपनिषदां महान प्रभावो विद्यते , प्रायः सर्वास्वेव सभ्यभाषास्वासामुपनिषदामनुवादो जातः । 
   उपनिषदोऽतिसरससरलोल्यां तत्त्वं ग्राहयन्ति , तेन तासां महत्वं लोकप्रियव चानुदिनमवर्धत । आसां तत्त्वप्रकाशनशैली यथा --

'आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।
 बुद्धि तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।
 ' इन्द्रियाणि यानाविषयांस्तेषु गोचरान् । 
आत्मेन्द्रियमनोयुक्त भोक्तत्याहुमनीषिणः ॥ 
' भगवद्गीताप्युपनिषदेवेति बोध्यम् ।


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उपनिषद् साहित्य :-

11 श्वेरश्वेतर


About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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