केन उपनिषद्

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केन उपनिषद्

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केनोपनिषद सामवेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। इसमें 4 खंड हैं । प्रथम दो खंड पद्यात्मक हैं और शेष दो गद्यात्मक हैं। इसका संबन्ध सामवेद से है । केनोपनिषद् को "तलबकार" और "ब्राह्मणोपनिषद" भी कहते है। तलवकार का "जैमिनीय उपनिषद्” भी कहते है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है परन्तु मुख्यत: वेदव्यास जी को कई उपनिषदा का लेखक माना जाता है। सामवेदीय 'तलवकार ब्राह्मण' के नौवें अध्याय में इस उपनिषद का उल्लेख है। यह एक महत्त्वपूर्ण उपनिषद है। इसमें 'केन' (किसके द्वारा) का विवेचन होने से इसे 'केनोपनिषद' कहा गया है। 

केन उपनिषद्

इसके चार खण्ड है। प्रथम और द्वितीय खण्ड में गुरु-शिष्य की संवाद-परम्परा द्वारा उस (केन) प्रेरक सत्ता की विशेषताओं, उसकी गूढ़ अनुभूतियों आदि पर प्रकाश डाला गया है। तीसरे और चौथे खण्ड में देवताओं में अभिमान तथा उसके मान-मर्दन के लिए 'यज्ञरूप में ब्राह्मी चेतना के प्रकट होने का उपाख्यान है। अन्त में उमा देवी द्वारा प्रकट होकर देवों के लिए 'ब्रह्मतत्त्व' का उल्लेख किया गया है तथा ब्रह्म की उपासना का ढंग समझाया गया है। मनुष्य को 'श्रेय' मार्ग की ओर प्रेरित करना, इस उपनिषद का लक्ष्य हैं। प्रथम खण्ड वह कौन है? इस खण्ड में 'ब्रह्म चेतना' के प्रति शिष्य अपने गुरु के सम्मुख अपनी जिज्ञासा प्रकट करता है। वह अपने मुख से प्रश्न करता है कि वह कौन है, जो हमें परमात्मा के विविध रहस्यों को जानने के लिए प्रेरित करता है? ज्ञान-विज्ञान तथा हमारी आत्मा का संचालन करने वाला वह कौन है?

'केनेषितं पतति प्रेषितं मनः केन प्राणः प्रथमं प्रैति युक्तः।
केनेषितां वाचमिमां वदन्ति चक्षुः श्रोत्रं कः उ देवो युनक्ति’ ॥1॥ 

वह कौन है, जो हमारी वाणी में, कानों में और नेत्रों में निवास करता है और हमें बोलने, सुनने तथा देखने की शक्ति प्रदान करता है? 

‘तस्माद्वा एते देवा अतितरामिवान्यान्देवान्यदग्निर्वायुरिन्द्रस्तेन ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पृशुस्ते ह्येनत्प्रथमो विदांचकार ब्रह्मेति ॥

 शिष्य के प्रश्नों का उत्तर देते हुए गुरु बताता है कि जो साधक मन, प्राण, वाणी, आंख, कान आदि में चेतना शक्ति भरने वाले 'ब्रह्म' को जान लेता है, वह जीवन्मुक्त होकर अमर हो जाता है तथा आवागमन के चक्र से छूट जाता है। वह महान् चेतनतत्त्व ( ब्रह्म) वाक् का भी वाक् है, प्राण-शक्ति का भी प्राण है, वह हमारे जीवन का आधार है, वह चक्षु का भी चक्षु है, वह सर्वशक्तिमान है और श्रवण शक्ति का भी मूल आधार है। हमारा मन उसी की महत्ता से मनन कर पाता है। उसे ही 'ब्रह्म' समझना चाहिए। उसे आंखों से और कानों से न तो देखा जा सकता है, न सुना जा सकता है।

केन उपनिषद् सामान्य परिचय

खण्ड = 4, सम्पूर्ण मत्र = 34,

प्रथमखण्ड 8 मंत्र, द्वितीय 13, तृतीय 12, चतुर्थ- 9

  • शान्तिपाठ- आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक प्राणचक्षु श्रोत्रमया बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि ।
  • इसमें 'हैमवती उमा' उपाख्यान वर्णित है।
  • यक्ष के अन्तर्धान होने पर इन्द्र 'हैमवती उमा' के पास जाते है।

केनोपनिषद् की प्रमुख सूक्तियाँ

  • केनेषितं पतितं प्रेषितं मनः ।
  • श्रात्रस्य श्रीत्र मनसो..।
  • यदि मन्यसे सुवेदेति दभ्रमेवापि ।
  • यदस्य त्वं वेत्थ ब्रह्मणारूपम्।
  • न तत्र चक्षुर्गच्छति।
  • प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति ।

ब्रह्मतत्व का आधिदैविक द्वारा संकेत

“तस्यैष आदेशो (यदेतद् विद्युतो व्यद्युतदा) इतीन्यमीमिषदा इत्यधिदैवतम्”।

ब्रह्मतत्व का आध्यात्मिक द्वारा संकेत

"अथाध्यात्मं(यदेतद्गच्छतीव च) मनोऽनेनचैतदुपस्मरत्यभीक्ष्णं सकल्पः ।

ब्रह्म प्राप्ति के लिए प्रधान-साधन

  • “तस्यै तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा वेदाः सर्वाङ्गानि सत्यमायतनम्”।
  • प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वं हि विन्दते ।आत्मना विन्दते वीर्यं विद्यया विन्दतेऽमृतम् ।।
  • ब्रह्म ह देवेभ्यो विजिज्ञे।
  • सर्वाणि भूतानि संवाञ्छन्ति ।


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उपनिषद् साहित्य :-

11 श्वेरश्वेतर


मम विषये! About the author

ASHISH JOSHI
नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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