शास्त्रों में आरती को 'आरक्तिका' 'आरर्तिका' और 'नीराजन' भी कहते हैं। आरती का अर्थ है रात्रि / अंधकार को हटाना |
स्कंदपुराण' में कहा गया है -
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजनं हरेः । सर्वे संपूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे॥
अर्थात् - पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है ।
मंदिरों में अनेकों भगवानों की आरती की जाती है, उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपने घर में भी आरती करता है, तो वह एक से अधिक भगवानों व देवी-देवता की आरती कर सकता है, परंतु सर्वप्रथम भगवान् श्री गणेश जी की आरती करें तथा अंत में भगवान श्री हरी विष्णु जी की आरती करें (अर्थात् - ओम जय जगदीश हरे ) |
आरती करने का ही नहीं, आरती देखने का भी बड़ा पुण्य होता है | जो धूप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह समस्त पीदियों का उद्धार करता है और भगवान् विष्णु के परमपत को प्राप्त होता है |
आरती से घर व आस-पास का वातावरण भी शुद्ध होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त होती है।
यहा कुछ प्रमुख देवी-देवताओ की आरतीया