सज्जन-दुर्जन - सुभाषित - संस्कृत सुभाषित
-: सुभाषित :-
१ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
नारिकेल समाकाराादृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।अन्ये बदरिकाकाराबहिरेव मनोहराः॥हिंदी भावार्थ:-नारियल बाहर से कठोर पर अंदर से कोमल होता है बस सज्जन मनुष्य भी इस तरह के होते है , तो वही दूसरी ओर दुर्जन व्यक्ति बदरिफल के समान होते है जो बाहर से मनोहर दिखते है ओर अंदर से कठोर होते है ।।
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२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
उदये सविता रक्तोरक्त:श्चास्तमये तथा।सम्पत्तौ च विपत्तौ चमहतामेकरूपता॥हिंदी भावार्थ:-यहा सज्जन मनुष्य की तुलना सूर्य से करते कहते है कि जिस तरह से प्रातः उदय के समय सूर्य रक्त(लाल) होता है और शायं अस्त के समय भी रक्त(लाल) होता है बस वैसे ही सज्जन व्यक्ति(महापुरुष) को सुख (अच्छे समय ) मे ओर दुःख ( विपत्ति)(बुरे समय) मे समान रहते है ।
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३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
न प्रहॄष्यति सन्मानेनापमाने च कुप्यति।न क्रुद्ध: परूषं ब्रूयात्स वै साधूत्तम: स्मॄत:॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि जो मनुष्य किसीके सम्मान या प्रशंसा करने पर अभिमान न करे अर्थात् फूल न जाये , किसीके अपमान करने पर कुपित न हो , कभी भी क्रोध में आकर कीसीको बुरे वचन न कहे , ऐसे मनुष्य को साधु अर्थात् सज्जन जानना चाहिए , सज्जन व्यक्ति इन गुणों से युक्त होना चाहिए ।।
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४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
अर्थनाशं मनस्तापम्,गृहे दुश्चरितानि च।वञ्चा नञ्चापनं च,मतिमान्न प्रकाशयेत्॥हिंदी भावार्थ:-सहिमे बुद्धिमान मनुष्य को इन बातों को बहोत ध्यान में लेनेकी जरूर है कहते है कि धन का नाश , मनकी व्यथा , घर के दुश्चरित्र , कभी जीवन मे खाया हुआ धोखा , लूंट , स्वयं का अपमान इन सभी बातों को जीवन मे मतिमान (बुद्धिशाली) मनुष्य को कभीभी किसीके सामने प्रकाशित नही करना चाहिए , गुप्त रखना चाहिए ।।
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५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
सतां हि दर्शनं पुण्यंतीर्थभूताश्च सज्जनाः।कालेन फलते तीर्थम्सद्यः सज्जनसङ्गतिः॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि सज्जन मनुष्य के दर्शन से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है , क्योकि सज्जन व्यक्ति साक्षात तीर्थ स्वरूप होते है , आगे कहते है कि तीर्थ में जाने का फल तो समय आने पर प्राप्त होते है , सज्जन की संगति से दर्शन से सद्य(त्वरित) फल की प्राप्ति होती है ।
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६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
शरदि न वर्षति गर्जति,वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ:।नीचो वदति न कुरुते,न वदति सुजन: करोत्येव॥हिंदी भावार्थ:-शरद ऋतु के बादल केवल गरजते हैं, बरसते कभी नहीं , ओर वर्षा ऋतु के मेघ चुपचाप (बिना गरजे) वर्षा करते रहते हैं। दुर्जन लोग भी एसे ही होते है, कहते हैं बहोत कुछ है पर करते कुछ नहीं, सज्जन मनुष्य कार्य करते हैं पर कहते कभी नहीं।।
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७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
नरत्वं दुर्लभं लोकेविद्या तत्र सुदुर्लभा।शीलं च दुर्लभं तत्रविनयस्तत्र सुदुर्लभः॥हिंदी भावार्थ:-यहाँ कहते है कि मनुष्य को इस जीवन और इन गुणों का महत्व समजना चाहिये कहते है कि नरत्वं (मनुष्यता ) मनुष्य जन्म मिलना इस संसार मे दुर्लभ है आसानी से नही प्राप्त होता , ओर इससे दुर्लभ है विद्या (ज्ञान ) प्राप्ति होना उसमे भी अच्छा चारीत्र्य प्राप्त होना दुर्लभ है , ओर अन्तमे विनय की प्राप्ति होना सबसे दुर्लभ है ।
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८ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
काव्यशास्त्रविनोदेनकालो गच्छति धीमताम्।व्यसनेन तु मूर्खाणांनिद्रया कलहेन वा॥हिंदी भावार्थ:-यह बहोत ही उत्तम ओर प्रचलित सुभाषित है यहां कहते है कि जो बुद्धिमान(ज्ञानी) मनुष्य होते है उनका ज्यादातर समय काव्य , शास्त्र के ज्ञान को पाने उसके आनंद को प्राप्त करने में व्यतीत होता है वही जो मूर्ख व्यक्ति है उनका ज्यादातर समय व्यसन , निद्रा ओर कलह(झगड़े) करने में नस्ट हो जाता है ।।
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९ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तुलक्ष्मीः स्थिरा भवतु गच्छतु वा यथेष्टम्।अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वान्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥हिंदी भावार्थ:-धैर्यवान मनुष्य किस हद तक धिराजता को धारण करता है इस बारे मे यहा कहते कि नीतिवान लोग यदि उसकी निंदा करे या प्रशंसा (स्तवन) , लक्ष्मी उसके पास स्थिर रहे या यथेष्ट चली जाए , उनकी मृत्य आज हो जाये या समय के बाद इनमे से कोई भी परिस्थिति क्यो न हो परंतु धैर्यवान व्यक्ति न्यायपथ को कभी नही छोड़ते । इस पथ पर कभी विचलित नही होते ।।
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१० संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
विवेक: सह संपत्याविनयो विद्यया सह।प्रभुत्वं प्रश्रयोपेतंचिन्हमेतन्महात्मनाम्॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि जिस मनुष्य के पास संपत्ति हो और उसका उपयोग कहा करना है ऐसा विवेक हो , दूसरा विद्या (ज्ञान ) हो पर साथ मे विनय भी हो अभिमान न हो, तीसरा जिसके पास ताकत (शक्ति ) हो जो बलवान हो पर उसका प्रयोग कहा करना है जानता हो निर्बलों की सुरक्षा करता हो वह मनुष्य महापुरुष होता है ।
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११ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
सासूयोऽसत्यवाक् चैवकृतघ्नो दीर्घवैरवान् ।चत्वारः कर्मचण्डालाजातिचण्डालशूद्रवत् ।।हिंदी भावार्थ:-यहा चार प्रकार के कर्म करने वाले को चांडाल (शुद्र ) समान गिनाया गया है ,पहला कहते है कि जो मनुष्य ईर्ष्या से भरा हो दुसरो की इर्ष्या करता हो वह , दूसरा जो मनुष्य बात बात पर असत्यं (जुठ) बोलता हो , तीसरा जो अपने कर्तव्य का पालन नही करता , चौथा जो सभीसे छोटी छोटी बातों पर लंबा वैर (शत्रुता) बांध लेता हो ऐसा व्यक्ति शुद्र (चांडाल ) समान है ।।
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१२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
मुखं पद्मदलाकारंवचश्र्चन्दनशीतलम् ।ह्रदयं वन्हिसन्तप्तंत्रिविधं दुष्टलक्षणम् ।।हिंदी भावार्थ:-यहा पंर दुर्जन(दुष्ट मनुष्य) के तीन प्रकार के लक्षण बताये है इन लक्षणों से दुर्जन व्यक्ति को पहचाना जा सकता है पहला जिसका मुख कमल के आकार जैसा हो , दूसरा जिसकी वाचा(वाणी) चंदन की तरह शीतल हो , ओर तीसरा जिसका अंतःकरण (हृदय) अग्नि समान संतप्त (जल रहा) हो वैसा मनुष्य दुर्जन हो सकता है।।
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१३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
सर्पः दुर्जन मध्येवरम् सर्पो न दुर्जनः ।सर्पो दशती कालेनदुर्जनस्तु पदे पदे ।।हिंदी भावार्थ:-यहा सर्प ओर दुर्जन में अधिक हानिकारक कोन है यह बताते है कहते कि सर्प एवम् दुर्जन के मध्य (बीचमे) सर्प अच्छा है दुर्जन से क्योकि सर्प कभी कभी समय आने पर काटता है परंतु दुर्जन (दुष्टव्यक्ति ) पद पद हर समय काटता है ।
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१४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
उपकारोऽपि नीचानाम्अपकारो ही जायते ।पयः पानं भुजङ्गानाम्केवलं विषवर्धनम् ।।हिंदी भावार्थ:-यहा उपकार भी सोच समझ कर करने को बता रहे है कहते है कि नीच व्यक्तिओ के ऊपर किया गया उपकार नुकशान कारक ओर अपकार ही होता है, जैसे यदि सर्प को दूध पिलायेंगे तो उससे क्या होगा केवल साप का जहर बढ़ता जाएगा और वह कीसीको डंख मारेगा , उसी तरह जैसे बिच्छू को कीचड़ में से निकालोगे तो वह उल्टा आपको ही काटेगा , इसी लिए उपकार भी विचार करके करना चाहिए ।
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१५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
गुणवत् जन संसर्गात्याति निचोपि गौरवम् ।पुष्प माला प्रसङ्गेनसूत्रं शिरसि धार्यते ॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि हमे हमेशा गुणवान एवम् सज्जन व्यक्तिओ के साथ रहना चाहिए , क्योकि गुणवान व्यक्ति के साथ नीच व्यक्ति भी गौरव पाता है , कैसे वह इस तरह जैसे सुगंध युक्त पुष्पमाला के साथ साथ रहकर वह सूत्र (धागा) भी किसीके सिर पर पहुच जाता है और गौरव पाता है।।
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१६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
प्रथमवयसि अल्पं तोयं दत्तं स्मरन्तः,नारिकेलाः शिरसि निहितभारा ।अमृतकल्पं सलिलं आजीवनान्तं नराणां दद्युः ।साधवः कृतं उपकारं न हि विस्मरन्ति ।।हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि नारियल का वृक्ष जब छोटा होता है तब हम उसमे जल सींचते है और वह वृक्ष उसे बड़ा होकर उस जल को अमृत बनाकर अपने मस्तक पर धारण कर लेता है ओर आजीवन उस अमृत समान जल को दूसरों को देते है , बस वैसे ही जो सज्जन मनुष्य है वह उनके ऊपर किये गए उपकार कभी नही भूलते ओर हमेशा ओरो का भला करते है ।
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१७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
संपूर्णकुंभो न करोति शब्दंअर्धोघटो घोषमुपैति नूनम् ।विद्वान्कुलीनो न करोति गर्वंजल्पन्ति मूढास्तु गुणैर्विहीनाः ॥हिंदी भावार्थ:-यहा एक जल के घड़े का उदाहरण देते हुए गुणवान व्यक्ति के लक्षण दिया है , कहते है कि कोई घडा पानी से पूरा भरा हुआ है तो वह छलकने कि आवाज नही करता वही जो आधा जल से भरा हुआ है बहोत आवाज करता बस वैसे ही विद्वान और कुलवान मनुष्य कभी अधिक नही बोलता ओर गर्व(अभिमान ) नही करता जबकि जो मनुष्य मूर्ख(मूढ़) ओर गुणविहीन वह बहोत बोलता है इसी लिए ज्ञानी को अधिक बोलना नही चाहिए ।।
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१८ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
असंशयं क्षत्रपरिग्रहक्षमायदार्यमस्यामभिलाषि मे मनः।सतां हि सन्देहपदेषु वस्तुषुप्रमाणमन्तःकरणप्रवृत्तयः॥हिंदी भावार्थ:-- १.२२, अभिज्ञान शाकुन्तलम्. यहा कहते है कि जो सज्जन मनुष्य है , उन्हें यदि कभी अपने आचरण (पद) में या वस्तु मैं संदेह हो तो उस समय हमारे अंतःकरण कि प्रवृत्तियों को प्रमाण समजना चाहिए ।