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तनादिगण (सप्तम् गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

तनादिगण (सप्तम् गण) परिचय, महत्व, धातु सूची, उपयोग

 संस्कृत धातुरूप – तनादिगण

संस्कृत में धातु शब्दों और क्रियाओं का मूल आधार होते हैं, जो वाक्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी में धातुओं को 10 गणों में बांटा गया है, जिनमें एक महत्वपूर्ण गण है तनादिगण। यह गण अपनी विशेषत: क्रियाओं से संबंधित है, जो तनाव, संकोचन और तनाव से जुड़े होते हैं। इस गण की धातुएं विशेष रूप से संकुचन, विस्तार, और तनाव जैसे भावों को व्यक्त करने के लिए उपयोग होती हैं।


तनादिगण का परिचय

तनादिगण की धातुएं परस्मैपदी होती हैं, अर्थात् इन धातुओं का क्रिया का फल किसी अन्य को प्राप्त होता है। यह गण मुख्य रूप से संकुचन, विस्तार, और तनाव जैसी क्रियाओं को व्यक्त करता है। इस गण की धातुएं जीवन में विभिन्न प्रकार की गतिशीलता और भावनाओं के सूक्ष्म विवरण को व्यक्त करने में सहायक होती हैं।

तनादिगण की विशेषताएं:

  1. परस्मैपदी धातुएं: अधिकांश धातुएं परस्मैपदी हैं।
  2. भावनात्मक या शारीरिक तनाव: इस गण की धातुएं शारीरिक या मानसिक तनाव, संकुचन या विस्तार का भाव व्यक्त करती हैं।
  3. विविध उपयोग: ये धातुएं शरीर के विभिन्न गतिशील पहलुओं और मानसिक क्रियाओं को व्यक्त करने में सहायक होती हैं।

तनादिगण की धातु सूची

तनादिगण (सप्तम गण) में वे धातुएँ सम्मिलित हैं जिनका उपयोग तानना, फैलाना, ढँकना, छिपाना जैसे क्रियात्मक कार्यों के लिए होता है। इस गण की धातुएँ विशेष रूप से आत्मनेपदी होती हैं। नीचे तनादिगण की धातुओं की सूची हिंदी अर्थ और उदाहरण सहित प्रस्तुत की गई है:


संस्कृत धातुहिंदी अर्थउदाहरण (लट् लकार)
तनुतानना, फैलानासः तनुते (वह तानता है)।
छद्ढँकनासः छदते (वह ढँकता है)।
वृत्घेरना, घिरनावृत्तं वर्तते (वह घिरता है)।
सिच्सींचनासः सिचते (वह सींचता है)।
कृन्त्काटनासः कृन्तते (वह काटता है)।
धृधारण करनासः धृते (वह धारण करता है)।
मन्त्र्मन्त्र बोलनासः मन्त्र्यते (वह मन्त्र बोलता है)।
वेध्बेधनासः वेधते (वह बेधता है)।
स्तम्भ्स्थिर करना, रोकनासः स्तम्भ्यते (वह स्थिर करता है)।
मन्त्र्मंत्रणा करनासः मन्त्र्यते (वह मंत्रणा करता है)।

विशेषताएँ:

  1. तनादिगण की धातुएँ सामान्यतः आत्मनेपदी होती हैं।
  2. इन धातुओं का प्रयोग तानने, फैलाने, रोकने, ढँकने जैसे क्रियात्मक कार्यों के लिए किया जाता है।
  3. इस गण की धातुओं से लट् लकार (वर्तमान काल), लङ्ग् लकार (भूतकाल) और लोट् लकार (आज्ञा) के रूप बनाए जाते हैं।

धातु "तनु" (तानना) के रूप (लट् लकार)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमतनुतेतनुतेतनुते
मध्यमतनुसेतनुथेतनुध्वे
उत्तमतनोऽहम्तनावहेतनामहे

तनादिगण के लकार रूप

तनादिगण की धातुएं संस्कृत के विभिन्न लकारों में रूपांतरित होती हैं। उदाहरण:

  1. लट् लकार (वर्तमान काल):

    • तनुति (वह फैलाता है)
    • वर्धते (वह बढ़ता है)
  2. लङ् लकार (भूतकाल):

    • अतनत् (उसने फैलाया)
    • अवर्धत् (वह बढ़ा)
  3. लृट् लकार (भविष्यकाल):

    • तनिष्यति (वह फैलाएगा)
    • वर्धिष्यति (वह बढ़ाएगा)

तनादिगण का व्यावहारिक उपयोग

तनादिगण की धातुएं विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक क्रियाओं, जैसे संकुचन, विस्तार, और मानसिक तनाव को व्यक्त करने के लिए उपयोग होती हैं।

  • तन्: विस्तार और फैलाव से संबंधित क्रियाओं के लिए।
  • वर्ध्: वृद्धि, विकास और सुधार के संदर्भ में।
  • नद्: प्रवाह, गति और चलने की क्रियाओं के लिए।

उदाहरण:

  1. "वह तनुति," अर्थात "वह फैलाता है।"
  2. "पुस्तकं वर्धते," अर्थात "पुस्तक बढ़ रही है।"

निष्कर्ष

तनादिगण संस्कृत के उन गणों में से एक है जो शारीरिक, मानसिक, और भौतिक क्रियाओं के विस्तार और संकुचन को व्यक्त करता है। इस गण की धातुएं हमें यह समझने में मदद करती हैं कि किसी कार्य की गतिकी और उसका विस्तार कैसे होता है।

तनादिगण का अध्ययन संस्कृत व्याकरण में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह भाषा को जीवन और गति के वास्तविक रूप में प्रस्तुत करता है। इस गण की धातुएं न केवल शारीरिक कार्यों को व्यक्त करती हैं, बल्कि मानसिक क्रियाओं और बदलावों को भी अभिव्यक्त करती हैं।

मम विषये! About the author

ASHISH JOSHI
नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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