अग्निष्टोम एक श्रौतयाग
अग्निष्टोम एक श्रौतयाग
॥अग्निष्टोम एक श्रौतयाग ॥
'यज्ञायज्ञा वो अग्नये' (ऋग. 6.48.1 और सामवेद मंत्र 35)
इस ऋचा पर सामगान 'अग्निष्टोम' कहलाता है । यह सामगान अन्त में होता है, अत: इसे 'आग्निष्टोम-संस्था' कहते हैं। संस्था का अर्थ है“अन्त या समापन' । मंत्र में 'अग्नये' (आग्नि) है, अतः यह अग्निष्टोम कहलाता है । स्तोम का अर्थ है- स्तुति, अत: अग्निष्टोम-अग्नि की स्तुति या अग्नि का स्तोत्र है । यह 5 दिन चलता है । यह सोमयाग का प्रकृतियाग (आधारस्वरूप याग) है, अतः सभी सोमयागों में यह अग्निष्टोम रहेगा। इसमें (12) 'मंत्रों' या 'स्तोत्रों' (शस्त्रों) का घुमाफिराकर प्रयोग होता है । ऋचा या मंत्र का पारिभाषिक नाम 'शस्त्र' है।
अग्निष्टोम अथवा 'ज्योतिष्टोम' एक प्रकार का वैदिक यज्ञ, जिसका वैदिक साहित्य के अतिरिक्त प्राचीन अभिलेखों में भी उल्लेख मिलता है। यजुष और अथर्वन् की यज्ञ पद्धति में 'अग्निष्टोम' का अग्न्याधान, वाजपेय आदि की तरह ही महत्व है। इस 'यज्ञ' को 'ज्योतिष्टोम' भी कहते हैं। यह पाँच दिनों तक मनाया जाता है। प्राय: 'राजसूय तथा 'अश्वमेध' यज्ञों के कर्ता इस यज्ञ का प्रतिपादन आवश्यक समझते थे। वैदिक साहित्य के अतिरिक्त प्राचीन 'अभिलेखों' में भी इस यज्ञ का उल्लेख मिलता है।
‘वायुपुराण' के अनुसार यह स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से किया जाने वाला एक प्रकार का यज्ञ हैं, जिसकी उत्पत्ति ब्रह्माजी के पहले मुख से हुई, जिसे प्राय: अग्निहोत्री ब्राह्मण ही कर सकते थे। इसमें ऋत्विज मोलह हैं और इसकी पूर्णाहुति पाँच दिनों में होती है। इससे पितृगण का मान बढ़ता है और वे सन्तुष्ट रहते हैं। यह यज्ञ बाली ने किया था। मत्स्य पुराण के अनुसार इस यज्ञ में पशुवलि आवश्यक है।
सामान्य परिचय
- अग्निष्टोम यज्ञ 5 दिन तक चलता है, इसमें 12 मंत्रों या स्तोत्रों (शस्त्रों) का घुमा-फिराकर प्रयोग होता है।
- अग्निष्टोम- वसन्त ऋतु में होता है।
- अग्निष्टोम याग में ऋत्विज = 16, शस्त्र = 12,
- श्रौतयागों में प्रधान ऋत्विक अध्वर्यु,
- प्रवर्ग्य विधि प्रवर्ग्य विधि सोमयाग के अंगरूप में की जाती है।