चातुर्मास्य ओर पशुबन्ध एक श्रौतयाग
चातुर्मास्य ओर पशुबन्ध एक श्रौतयाग
॥चातुर्मास्य ओर पशुबन्ध एक श्रौतयाग॥
यह याग प्रत्येक चौथे मास में पूर्णिमा को किया जाता है। चातुर्मास्य 4 महीने में सम्पन्न होने वाला एक-एक याग की समष्टि है ।
1. वैश्वदेव पर्व- फाल्गुन पूर्णिमा वसन्त ऋतु,
2. वरुण प्रघास - आषाढ़ पूर्णिमा वर्षा ऋतु,
3. साकमेध कार्त्तिक पूर्णिमा हेमन्त ऋतु,
4. शुनासीरीय - फाल्गुनशुक्ल प्रतिपदा ।
चातुर्मास्य पर्व के दो भेद (1) स्वतंत्र (2) राजसूय ।
हविद्रव्य की दृष्टि से चातुर्मास्यों के तीन प्रकार है
(1) ऐष्टिक (2) पाशुक (3) सौमिक।
चार पर्वों में (5) प्रधान देवता हैं तथा उनको दी जाने वाली हवियां
अग्नि के लिये अष्टकपाल पुरोडाश
सोम के लिये चरु
सविता के लिये - अष्टकपाल अथवा द्वादशकपाल पुरोडाश (उपांशु )
सरस्वती के लिये चरु
पूषा के लिये पिष्ट चरु
चातुर्मास्य यागों में सर्वप्रथम अनुष्ठेय "वैश्वदेव पर्व” है।
॥ पशुबन्ध ॥
यह याग वर्षा ऋतु में होता है। इसमें 'इन्द्र' और 'अग्नि' के लिये हवन होता है।