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संस्कृत-ज्ञानस्य अनुक्रमणिका

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शुनःशेप ओर वाङ्मनस आख्यान

शुनःशेप ओर वाङ्मनस आख्यान

 शुनःशेप ओर वाङ्मनस आख्यान 

॥शुनःशेप आख्यान॥

शुनः शेप ऐतरेय ब्राह्मण में स्थित एक आख्यान है। इसका सारांश यह है कि जब तक मृत्यु सामने न आये तब तक रूपान्तरण नहीं होता। यह आख्यान मानवीय लोभ, बेइमानी और उसम ऊपर उठने की क्षमता की कथा है। 

राजा हरिश्चंद्र अपनी मौ रानियों के बावजूद निम्मंतान था। उसने वरुण देवता की उपासना की कि अगर मुझ पुत्र प्राप्ति हो तो पहला पुत्र आपको समर्पित करूंगा। उसे एक पुत्र की प्राप्ति हो गई, जिसका नाम रोहित रखा गया। लेकिन राजा ने जैसे ही पुत्र को संदेह देखा, उसकी नीयत में खोट आ गया। वह किसी न किसी बहाने रोहित को वरुण देवता को सौंपने की बात टालता रहा। पिता कहीं उसे सचमुच वरुण देव को नहीं अर्पित कर दे, इस डर से रोहित जंगल में भाग गया और हरिश्चन्द्र ने अपना प्रण पूरा नहीं किया, इसलिए वरुण ने उसे शाप दे दिया और वह बीमार हो गया। भाग्यवश जंगल में इधर-उधर घूमते रोहित को एक स्त्री एक गरीब ब्राह्मण अजीगर्त के पास ले आयी। उससे रोहित ने अपनी कहानी कही। 

अजीगर्त के तीन बेटे थे शुन: पुच्छ, शुन: लांगूल और शुन: शेप। शुन: शेप मंझला पुत्र था और बचपन से ही बहुत समझदार और विवेकवान था। अजीगर्त ने लालच में आकर रोहित से कहा कि सौ गायों के बदले वह अपने एक पुत्र को बेचने को तैयार है। उस पुत्र को वह अपने बदले वरुण देवता को सौंप कर अपनी जान बचा सकता है। दूसरी ओर शुन: शेप ने सोचा, छोटा भाई मां का लाड़ला है, बड़ा भाई पिता का लाड़ला है, यदि मैं चला जाऊं तो दोनों में से किसी को कोई अफसोस नहीं होगा। इसलिए वह खुद ही रोहित के साथ जाने को तैयार हो गया। वरुण देव भी कोई कम लोभी नहीं थे। वे यह सोच कर प्रसन्न हो गए कि मुझे अपने अनुष्ठान के लिए क्षत्रिय बालक के बदले ब्राह्मण बालक मिल रहा है जो श्रेष्ठतर है। 

यज्ञ में नर बलि की तैयारी शुरू हुई, चार पुरोहितों को बुलाया गया। अब शुन: शेप को बलि स्तंभ से बांधना था। लेकिन इसके लिए उन चारों में से कोई तैयार नहीं हुआ, क्योंकि शुनःशेप ब्राह्मण था। तब अजीगर्त और सौ गायों के बदले खुद ही अपने बच्चे को यज्ञ स्तंभ से बांधने को तैयार हो गया। इसके बाद शुन: शेप को बलि देने की बारी आई। लेकिन पुरोहितों ने फिर मना कर दिया। ब्राह्मण की हत्या कौन करे? तब अजीगर्त और एक सौ गायों के बदले अपने बेटे को काटने के लिए भी तैयार हो गया। 

जब शुन: शेप ने देखा कि अब मुझे बचाने वाला कोई नहीं है, तो उसने ऊषा देवता का स्तवन शुरू किया। प्रत्येक ऋचा के साथ शुन: शेप का एक-एक बंधन टूटता गया और अंतिम ऋचा के साथ न केवल शुन:शेप मुक्त हो गया, बल्कि राजा हरिश्चंद भी श्राप मुक्त हो गए। इसी के साथ बालक शुन: शेप, ऋषि शुन: शेप बन गया, क्योंकि वह उसके लिए रूपांतरण की घड़ी थी। कुछ और विद्वानों के अनुसार शुन: शेप कौशिकों के कुल में उत्पन्न महान् तपस्वी विश्वामित्र (विश्वरथ) व विश्वमित्र के शत्रु शाम्बर की पुत्री उग्र की खोई हुयी सन्तान था जिसे भरतों (कौशिकों) के डर से लोपामुद्रा ने अजीगर्त के पास छिपा दिया था। भरतो ने उग्र को मार दिया।

शुनःशेप ओर वाङ्मनस आख्यान

शुनःशेप ओर वाङ्मनस आख्यान प्रमुख सन्दर्भ

  • आख्यान के दो प्रकार (1) स्वल्पकाय (2) दीर्घकाय
  • ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय = ( 33 ) वाँ शुनः शेप आख्यान,
  • हरिश्चन्द्र - वेधस के पुत्र, वंश - इक्ष्वाकु
  • हरिश्चन्द्र के घर 'पर्वत' और 'नारद' नामक ऋषि रहते थे।
  • नारद ने हरिश्चन्द्र के प्रश्न का (10) गाथाओं के द्वारा उत्तर दिया।
  • हरिश्चन्द्र का पुत्र- "रोहित”।
  • हरिश्चन्द्र ने पुत्र प्राप्ति हेतु उपासना की वरुण की। 
  • रोहित ने जंगल में 6 वर्ष बिताए ।
  • रोहित 'यवस' के पुत्र 'अजीगर्त' ऋषि से मिला 'षष्ठ सम्वत्सर' में।
  • अजीगर्त के तीन पुत्र थे
  • (1) शुनः पृच्छ (2) शुनः शेप (3) शुनोलाङ्गूल,
  • अजीगर्त ने रोहित को अपने मध्यम पुत्र 'शुनः शेप' का दान किया।
  • वरुण' ने 'हरिश्चन्द्र' से "राजसूय यज्ञ" करने को कहा तथा उसमें "अभिषेचनीय" नामक याग में शुनः शेप को पशु के रूप में आलम्भन करने का निश्चय किया, इसके बदले उसने 100 गाएं ली ।

  • उस राजसूय याग के ऋत्विज थे
  • होता- विश्वामित्र
  • अध्वर्यु - जमदग्नि
  • उद्गाता - अश्वास्य
  • ब्रह्मा - वसिष्ठ

  • शुनः शेप स्वयं की रक्षा के लिए क्रमश: प्रजापति अग्निसविता-वरुण-अग्नि-विश्वदेव-इन्द्र- अश्विनौ-उषस् के पास - दौड़ा।
  • ‘इन्द्र' ने प्रसन्न होकर शुनः शेप को 'हिरण्यरथ' प्रदान किया।
  • " शुनः शेप ने राजसूय "पशुसोमयाग" को "अञ्ज: सव” सोम याग के रूप में देखा।
  • शुनः शेप विश्वामित्र की गोदी में आकर बैठे गये। उन्होनें उसे अपना दत्तक पुत्र बनाया।
  • विश्वामित्र ने शुनः शेप का नामकरण किया- देवरात । 
  • शुनः शेप को 'अङ्गीरस' भी कहा गया है ।
  • विश्वामित्र के 101 पुत्र थे मधुच्छन्द से 50 बड़े तथा मधुच्छन्द में 50 छोटे।
  • विश्वामित्र के 50 बड़े पुत्रों ने विश्वामित्र के आदेश को स्वीकार नहीं किया।
  • विश्वामित्र के पिता- गाथी, पितामह - कुशिक
  • शुनः शेप आख्यान को (100) शाखाओं से युक्त कहा गया है। 'शतगाथं शौनः शेपम् आख्यानम्। यह राज्याभिषेक के समय सुनाया जाता है।

॥वाङ्मनस आख्यान ॥

शतपथ ब्राह्मण में मन एवं वाणी के संवाद को अत्यन्त ललित शैली में प्रस्तुत किया गया है जिसे वाड्मनस-आख्यान के रूप में जाना जाता है। यहाँ मन एवं वाणी के विषय में अपनी प्रधानता सिद्ध करने के लिए विवाद होता है।

मन उवाच

"अहमेव त्वच्छ्रेयोऽस्मि न वै मया त्वं कि च नानभिगतं 
वदसि सा यन्मम त्वं कृतानुकरा नुवर्त्मास्यहमेव त्वचछ्रेयोऽस्मीत" ॥ 

मन ने कहा कि मैं श्रेष्ठ हूँ क्योंकि तुम मेरे द्वारा न जाना हुआ कुछ भी नहीं बोलती हो। तुम मेरी अनुगामिनी हो। अतः मैं ही तुमसे श्रेष्ठ हूँ। इस पर वाणी ने कहा कि मै तुमसे बड़ी हूँ क्योंकि जो तुम कुछ जानते हो वह मेरे द्वारा ही व्यक्त होता है। अतः दोनों विवाद को शान्त करने लिए प्रजापति के पास गये प्रजापति ने मन के अनुकूल निर्णय लिया। उन्होंने समाधान किया कि वाणी से श्रेष्ठ मन है। वाणी मनोऽनुगामी है

 'स प्रजापतिर्मनस एवानुवाचचमन एवं त्वचछ्रेयो मनसो वै त्वं 
कृतानुकरानुवर्मासि श्रेयसो वै पापीयान्कृतानुकरोऽनुवर्त्मा भवति । 

अतः विरुद्ध निर्णय को सुनकर वाणी हतोत्साहित हो जाती है उसका गर्भ गिर जाता है। उसने प्रजापति से कहा कि अच्छा तो यही होगा कि मैं आपके लिए हवि ले जाने वाली न होऊँ, क्योंकि आपने मेरे विरुद्ध निर्णय दिया है। यही कारण है कि यज्ञ में प्रजापति के लिए जो कुछ भी किया जाता है वह निम्न स्वर से (उपांशु) किया जाता है। वाणी प्रजापति के लिए हवि का वहन नहीं करती है।



मम विषये! About the author

ASHISH JOSHI
नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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