Sanskrit natak| बालानां कलहः । संस्कृत नाटक
sanskrit natakam | बालानां कलहः | संस्कृत नाटकम् ।
Sanskrit drama written script
भाग्यश्रीः - अंजले!! मम पुस्तकं कुत्र अस्ति ?
अंंजलिः - कस्य ? विज्ञानस्य ? भूगोलस्य ?
भाग्यश्रीः - न, कथानाम् । 'चंदामामा' इति ।
अंंजलिः - अहं कथं जानामि ? भवती अत्र तत्र क्षिपति । अस्मि वा अहं भवत्याः दासी ?
भाग्यश्रीः - भवती एव मम पुस्तकं पठनार्थं गृह्णाति, तदनन्तरम् अत्र तत्र क्षिपति । यच्छतु मम पुस्तकं अधुना एव । ( मातरम् आह्वयति ) अम्ब!! , अनया मम पुस्तकं हारितम् । मह्यं न ददाति ।
सौरभः - (भाग्यश्रींं प्रति ) भवती एव ह्यः वाचनार्थं शयनगृहे नीतवती।
भाग्यश्रीः - ए, भवान् किमर्थं मध्येमध्ये वदति ? गच्छतु, स्वकार्यं करोतु ।
सौरभः - (उच्चैः ) न गच्छामि । का भवती माम् अधिक्षेप्तुम् ?
भाग्यश्रीः - अस्मि तव श्वश्रूः । किं वक्तव्यम् ?
निनादः - (प्रविश्य, हस्ते पुस्तकं धृत्वा, हस्तम् उन्नीय चालियित्वा) पश्यतु, पश्यतु, किं प्राप्तं मया ।
सौरभ: -अरे, तदेव पुस्तकम् । कुत्र प्राप्तवान् ?
निनादः - (भाग्यश्रींं तर्जन्या तर्जयित्वा )(वदन्ति)
" तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिलबन्धनात् ।
मूर्ख हस्ते न दातव्यम् एवं वदति पुस्तकम् ।। "
Hindi natak | बालको का कलह । हिंदी नाटक ।
भाग्यश्री :- अंजलि !! मेरी पुस्तक कहा है ?
अंजलि :- कौनसी ? विज्ञानकी ? या भूगोलकी?
भाग्यश्री :- नही , कथाओकी । 'चंदामामा' वाली ।
अंजलि :- मुझे क्या पता ? तुम यहांं वहां फेंक दो तो । क्या में तुम्हारी नौकरानी हु ?
भाग्यश्री :- तुमने ही मेरी पुस्तक पढने के लिए ली थी , बादमे यहां वहां फेंक दी । अभी ही मेरी पुस्तक वापिस करो (मा को कहती है ) मा !! , इसने मेरी पुस्तक ले ली है । मुझे नही दे रही ।
सौरभ :- (भाग्यश्री को ) तुम ही कल पढने के लिए अपने कक्ष में ले गई थी ।
भाग्यश्री :- ए , तुम क्यों बीच-बीच मे बोल रहे हो ? जाओ , अपना काम करो ।
सौरभ :- (जोरसे ..) नही जाऊंगा । क्या तुम मुझे फेंक दोगी ?
भाग्यश्री :- तुम्हारी सास हु ? क्या बोल रहे हो ?
निनाद :- (हाथ उठा कर , पुस्तक पकड़ कर , प्रवेश करता है ) देखो ! देखो ! मुझे क्या मिला ।
सौरभ :- अरे ! , वही पुस्तक । कहा मिली तुम्हें ?
निनाद :- जलके घड़े के पास ।
भाग्यश्री :- ओह!! मे ही वहाँ भूल गई थी ।
सभी :- (भाग्यश्री की ओर उंगली करते हुए )(बोलते है)
" तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिलबन्धनात् ।
मूर्ख हस्ते न दातव्यम् एवं वदति पुस्तकम् ।। "
(अर्थात् :- यहां पर पुस्तक ऐसा बोलती है की तैल से , जल से , ढीला बांधने से और मूर्ख के हाथ मे जानेसे मेरी रक्षा करो । )