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Sanskrit natak |संस्कृतं संस्कृति च |संस्कृत नाटक

Sanskrit drama in sanskrit with other lang...
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Sanskrit natak |संस्कृतं संस्कृति च |संस्कृत नाटक


Sanskrit drama in sanskrit with other lang...
Sanskrit gyan

Sanskrit drama written script

अन्ध: - (प्राविस्यति। द्वित्राणि पदानि चलती। )मया अग्रे गंतवव्यम्। परन्तु अहम् अन्धः अस्मि। मम नेत्रे न पश्यतः। कथं गच्छानि ?
पङ्गुः - (प्राविस्यति उपविशति च |) मया अग्रे गन्तव्यम् | परन्तु अहं पङ्गुः अस्मि | मम पादयो: शक्तिरेव नास्ति। कथं गच्छानि ?
अन्धः - कः...? कः  आगतः ...? कुत्र गच्छति भवान ?
पङ्गुः - अहम् अग्रे गन्तुम् इच्छुकः। परन्तु न शक्नोमि। 
अन्धः - किमर्थम् ? 
पङ्गुः - अहं पङ्गुः। भवान कः ? कुत्र गच्छति ?
अन्धः - अहमपि अग्रे गन्तुम् इच्छुकः। परन्तु अहमपि न शक्नोमि।
पङ्गुः - किमर्थम ?
अन्ध:- अहम् अंध: ।
पङ्गुः - तर्हि आवां समानौ । आवां कथम् अग्रे गच्छाव: ?
अन्ध: - एवं कुर्व: ।भवान् मम स्कन्धे उपविशतु । अहं 
भवन्तं वहामि । भवान् मार्गदर्शनं करोतु । द्वौ अपि अग्रे गच्छाव: ।
पङ्गुः - आम्, तथैव कुर्व: । परस्परसहकारेण द्वयोरपि लाभ: ।

   (अन्धस्य स्कन्धे पङ्गुः उपविशति । अन्ध: सावधानं चलति ।यदा सः नेपथ्याभिमुखखं चलति तदा तस्य पृष्ठे बृहदक्षरे: 'संस्कृतम्' इति लिखितं फलकं दृश्यते एवम् पङ्गोः पृष्ठे बृहदक्षरैः 'संस्कृति' इति लिखितं फलकं दृश्यते ।)

निरूपक: - आम्, संस्कृतेन विना संस्कृति: पङ्गुः !
                संस्कृत्या विना संस्कृतम् अन्धम् !!


हिंदी नाटक । संस्कृत और संस्कृति । hindi natak


अन्ध :- (प्रवेश करता है , दो-तीन पैर चलता है) मुझे आगे जाना है , पर मैं तो अन्ध हु । मुझे आंखोसे देख नही सकता । कैसे जाऊ ?
पङ्गु :- (प्रवेश करता है, बैठता है) मुझे आगे जाना है, पर में तो पङ्गु हु । मेरे पैरों में शक्ति ही नहीं है, में चल नही सकता हूं। कैसे जाऊ ?
अन्ध :- कौन ..? कौन आ रहा है ? कहा जा रहे हैं आप ?
पङ्गु :- मैं आगे जाना चाहता हु , पर जा नही सकता ।
अन्ध :- क्यों नहीं जा सकते ?
पङ्गु :- मैं पङ्गु हु , मैं चल नही सकता । आप कौन है और कहा जा रहे हो ?
अन्ध :-मैं भी आगे जाना चाहता हूं, पर जा नही सकता।
पङ्गु :- क्यों नही जा सकते ?
अन्ध :-क्योंकि मैं अन्ध हु , मैं देख नही सकता ।
पङ्गु :- तब तो हम समान है , हम कैसे आगे जाएंगे ?
अन्ध :- ऐसा करे कि , तुम मेरे कंधे पर बैठ कर मार्गदर्शन करो ओर में आगे चलूंगा । ऐसे हैम दोनों आगे जाएंगे ।
पङ्गु :- हा .. , वैसा ही करेंगें । परस्पर सहकारसे दोनोंका फायदा होगा।
( अंधे के कन्धे पंर पङ्गु बैठता है , अंधा सावधानी से चलता है । जब वे नेपथ्य की तरफ जाते है तब अंधे के पीठ पर 'संस्कृतं' और पङ्गु के पीठ पर 'संस्कृति' बड़े अक्षरों में लिखा होता है ।)
निरूपक :- हा.., संस्कृत के बिना संस्कृति पङ्गु !
                ओर संस्कृति के बिना संस्कृत अन्ध है !!

About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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