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संस्कृत-ज्ञानस्य अनुक्रमणिका

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Sanskrit natak | ईर्ष्या न करणीया | संस्कृत कथा

जलाशयस्य तीरम् । एकः बकः विहरति । बालकत्रयं निसर्ग-शोभां पश्यन्ति।

Sanskrit natak | ईर्ष्या न करणीया | संस्कृत कथा

(जलाशयस्य तीरम् । एकः बकः विहरति । बालकत्रयं निसर्ग-शोभां पश्यन्ति।)

Sanskrit natak | ईर्ष्या न करणीया | संस्कृत कथा

Sanskrit drama written script

(जलाशयस्य तीरम् । एकः बकः विहरति । बालकत्रयं निसर्ग-शोभां पश्यन्ति।)
धवलः - अरे श्याम! पश्य, पश्य नीलं जलाशयम्। परितः हरिताः वृक्षाः। तेषु पीतानि पुष्पाणि अपि शोभन्ते। जलोपरि कृष्णमेघच्छायाः। जलाशये श्वेतः बकः। मत्स्यान्वेषणे उत्सुकः।

श्यामः - विविधवर्णानां मेलनम् अत्र शोभते। मन्दः शीतलः पवनः अस्मान् आह्लादयति ।
समीरः - सर्वम् आनन्दमयम्। अत्र एव बहुसमयं यावत् तिष्ठामः इति मम मनीषा। 
धवलः - मम अपि। 
श्यामः - अहमपि तदेव इच्छामि। 
(एकः काकः तत्र आगच्छति। ) (बालकाः बककाकौ निरीक्षन्ते।) 
काकः - काव, काव, रे बक किं प्रचलति? स्नानम्? 
बकः - नहि, नहि रे, भोजनप्रबन्धः। 
काकः - अस्तु। 
समीरः - पश्यतु, पश्यतु वर्णवैविध्यम्। शुभ्रः बकः तस्य पार्श्वे कृष्णः काकः। अहो विसङ्गतिः! 
काकः - (स्वगतम्) हा धिक् मम वर्णम्! सर्वे माम् उपहसन्ति। सर्वे एनं बकं प्रशंसन्ति। अहं मम भागधेयं परिवर्तयामि। अहं वर्णपरिवर्तनं करोमि। बकः इव श्वेतः भविष्यामि।(चिन्तनं नाटयति ) हंऽऽ किं करवाणि? (छोटिकाध्वनिं कृत्वा) हम् - एतत् करोमि ।(गच्छति ) 
समीरः - कृष्णवर्णकारणात् लज्जित काकः निर्गतः। 
धवलः - पुनः न आगमिष्यति! (काकः आगच्छति) 
श्यामः - भोः पश्यतु पश्यतु प्रत्यागतः सः काकः। 
समीरः - किमपि वस्तु अस्ति तस्य मुखे। 
धवलः - हं, किञ्चित् पश्यामि अहम्।
श्यामः - किं भवेत्? 
         (काकः फेनकस्य वेष्टनं निष्कासयति।) 
समीरः - (स्मितमुखेन ) अरे, फेनकम्! 
धवलः - एषः तस्य उपयोगं जानाति किम्? 
काकः - (स्वगतम्) पश्य रे बक, पश्यन्तु रे बालकाः इदानीम् अहं बकात् अपि शुभ्रतरो भवामि। (फेनकेन अङ्गं लिम्पति। ) 
(घर्षणं करोति रक्तं वहति किन्तु शुभ्रः न भवति। ) (वेदनां नाटयति) 
बालकाः - (हसन्ति) 
समीरः - तवकृते शुभ्रवर्णः अशक्यः। 
धवलः - केनापि सह स्पर्धा ईर्ष्या वा न करणीया। 
श्यामः - ईश्वरेण यत् दत्तं तत् प्रसादरूपेण स्वीकर्त्तव्यम्। 
     
काकः कृष्णो बकः श्वेतः भेदोऽयं हि निसर्गतः।लिम्पनैर्घर्षणैः स्नानैः कथं काको बको भवेत्।। 


काकः - सत्यम् ईश्वरेच्छा बलीयसी। तत्र कः अपि परिवर्तनं कर्तुं न शक्नोति इति मया न अवगतम्। हे प्रभो, क्षमस्व माम्। (निर्गच्छति) 
धवलः - सन्ध्यासमयः सञ्जातः । गृहं गच्छावः। 
श्यामः - चलन्तु। माता प्रतीक्षां कुर्वन्ति स्यात्। 
समीरः - एहि गच्छामः। 

Hindi natak | ईर्ष्या न करें। हिंदी नाटक। हिंदी कथा


(जलाशय का तट, एक बगुला विहार कर रहा है। तीन बालक प्रकृति की शोभा देख रहे हैं।) 
धवल :- अरे श्याम! देखों देखों केसा सुंदर जलाशय है।सभी ओर हरे हरे पेड़ है, उन पर पीले फूल भी शोभा बढ़ा रहे है। जलपर भी बदलो की छाया शोभा दे रही है। जलाशय में मत्स्य खोजता सफेद बगुला भी है।
श्याम :- भिन्न भिन्न रंगों का सम्मेलन यहां शोभा दे रहा है।मंद ओर शीतल पवन हमे आनन्द दे रहा है।
समीर :- सब कुछ आनन्द दायक है। मेरी इच्छा है कि बहोत समय तक यही पर रहा जाए ।
धवल :- मेरी भी ।
श्याम :- मेरी भी वही इच्छा है।
(एक कौआ वहां आता है।) (बालक बगुले ओर कौए को देख रहे होते है)
कौआ :- काव, काव, अरे बगुले भाई क्या चल रहा है? स्नान ?
बगुला :- नही, नही रे , भोजन का प्रबंध चल रहा है।
कौआ :- अच्छा ।
समीर :- देखो , देखो , केसी रंग विविधता , सफेद बगुला ओर उसके पास काला कौआ । क्या दृश्य है ।
कौआ :- (मन में) धिक्कार है मेरे रंग पर ! सभी मेरी हसी उड़ा रहे है। सभी इस बगुले की प्रशंसा कर रहे है । में अपना भाग्य बदलूंगा , मैं अपने रंग को बदलके बगुले की तरह सफेद हो जाऊंगा । (सोचने की क्रिया करता है) हं.. क्या करूँ ?  हाँ ... यह करूँगा । (जाता है।)
समीर :- काले रंग के कारण लज्जित कौआ चला गया ।
धवल :- फिर से नही आएगा ! (कौआ आता है )
श्याम :- अरे , देखो , देखो वह कौआ वापिस आ गया ।
समीर :- उसके मुख में कुछ वस्तु है।
धवल :- हं, थोड़ा देखने दो मुजे ।
श्याम :- क्या हो सकता है ?
       (कौआ साबून का कागज हटाता है )
समीर :- (हसते हुए) अरे , साबुन!
धवल :- यह उसका उपयोग जानता है क्या ?
कौआ :- (मन मे) देख रे बगुले , देखो रे बालको अब मैं बगुले से भी सफेद हो जाऊंगा । (साबुन से अंगों को घिसता है ) (बहुत घिसता है लहू निकलने लगता है किंतु कौआ सफेद नही होता ।)(दर्द होने का नाटक करता है )
बालक :- (सभी बालक हँसते है।)
समीर :- तुम्हारे लिये सफेद रंग का होना असंभव है।
धवल:- किसीके भी साथ स्पर्धा या ईर्ष्या नही करनी चाहिए ।श्याम :- भगवान ने जो दिया है उसीको प्रसाद रूप समझ कर स्वीकार करना चाहिए ।
    
काकः कृष्णो बकः श्वेतः भेदोऽयं हि निसर्गतः।लिम्पनैर्घर्षणैः स्नानैः कथं काको बको भवेत्।। 

कौआ :- सही बात है , ईश्वर की इच्छा बलवान है । वहां कोई परिवर्तन करने में सक्षम नही है , यह मैं नही समझ पाया है । है भगवान , मुझे माफ़ कर दीजिये।(कौआ चला जाता है ।)
धवल :- सायं काल हो गया है , घर चलेंगे ।
श्याम :- चलो , माता राह देख रही होंगी ।
समीर :- चलो चलते है ।

मम विषये! About the author

ASHISH JOSHI
नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

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