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Ehi Ehi chandir sanskrit geet

इस 'एहि एही चंदिर संस्कृत गीत' में नील गगन में स्थित श्वेत एवं शीतल किरण प्रदाता चंदिर अर्थात 'चंदामामा' की बात हो रही। ..
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Ehi Ehi chandir sanskrit geet

इस 'एहि एही चंदिर संस्कृत गीत' में नील गगन में स्थित श्वेत एवं शीतल किरण प्रदाता चंदिर अर्थात 'चंदामामा' 
की बात हो रही उनके गुणो का वर्णन बाल भाषा में यहाँ बाल गीत के स्वरूप में प्रस्तुत किया गया हे | 

Ehi Ehi chandir sanskrit geet


तो आइये एक बार इस सुन्दर बाल गीत को देखते हे :-

एहि एहि चन्दिर संस्कृत गीत :-


 एहि एहि चन्दिर
श्वेतकिरण ! सुन्दर !
 नीलगगनमन्दिर !
 सकलजनमनोहर ! 
तारकेश ! गिरिगुहासु
 किरणजालमातनु 
वितर सस्य - तरु - लतासु 
किरणजालमातनु
वितर सस्य-तरु-लालसु 
रसविशेषमादरात् ॥ 
मातरः प्रदर्शनेन 
नन्दयन्ति बालकान् ।
 पक्षिणश्च तव करेण 
तोषयन्ति शावकान् ।। 
                    - गु . गणपय्यहोळळ :

मातः चन्दिर एकाकी :-

 मात : चन्दिर एकाकी कस्मात् गगने सञ्चरति ।
 मातरं पितरं गृहं विहाय रात्रौ सततं सञ्चरति ।। 
वायुः वेगेन तं नयति सूर्यः किरणैस्तापयति ।।
 मेघो जलेन आर्द्रयति न कोपि तं परिपालयति ।।
 अम्ब चन्दिरमानयतु अस्मद्गेहे स्थापयतु ।
 तेन सहाहं क्रीडामि खादामि पिबामि नन्दामि ।।

मेघो वर्षति :-

 मेघो वर्षति
 प्रवहति नीरम् ।
 तुष्यति कृषिकः 
गच्छति गोष्ठम् ॥ 
नयति च वृषभं
 हलमपि वहति । 
कर्षति क्षेत्रं
 वपति च बीजम् ।। 
रोहति सस्यं 
फलति प्रकामम् ।
 भवति समृद्धिः
 मनुकुलवृद्धिः ॥ 
                    - जि . महाबलेश्वरभट्टः

हस्ती हस्ती हस्ती :-


 हस्ती हस्ती हस्ती
 दिव्या दैवी सृष्टिः ! 
कदलीसदृशी शुण्डा 
स्तम्भसमानाः पादाः ।
 शूर्पाकारौ कर्णौ
 धवलौ दीपों दन्तौ ॥
 उदरं भाण्डाकारम् 
उन्नतबृहच्छरीरम् । 
अल्पं तुच्छं पुच्छम् 
अहो अहा विचित्रम् ॥
 पर्वतसदृशे गात्रे 
सर्षप - सन्निभ - नेत्रे ।
 कथमतिबलवान् एषः
 अकुशमात्राद् भीतः ॥ 
                 - जनार्दन हेगडे

विचरसि वायो कुत्र ? :-

सर सर सर सर्
सर सर सर सर् 
विचरसि वायो कुत्र ?
 मामपि नय भोस्तत्र ,
 मामपि नय भोस्तत्र ॥
 ग्रामे नगरे भुवि वा गगने
 अविशेषा तव गतिः । 
दीने धनिके कुजने सुजने
 भेदविरहिता मतिः ॥ १ ॥
 सुरभितकुसुमं कलुषितपङ्कं
 समभावनया स्पृशसि । 
कुमुदामोदं दूषितधूमं
 अविकलमनसा वहसि ॥ २ ॥ 
धृतभाराणां कृतकार्याणां
 तनुतापं त्वं हरसि । 
कन्दुकक्षेपण - केलिरतानां 
श्रममनुपदमपनयसि ॥ ३ ॥ 
                    -विश्वासः

चटक ! चटक ! :-


चटक , चटक , रे चटक ! 
चि , चि , कूजसि त्वं विहग ! 
नीडे निवससि सुखेन डयसे 
खादसि फलानि मधुराणि ।
 विहरसि विमले विपुले गगने 
नास्ति जनः खलु वारयिता ।। 
माता पितराविह मम न स्तः
 एकाकी खलु खिन्नोऽहम् । 
एहि समीपं चिद् चिद् मित्र 
ददामि तुभ्यं बहुधान्यम् ।। 
चणकं स्वीकुरु पिब रे नीरं
 त्वं पुनरपि रट चिव चिव्ँ चिव्ँ । 
तोषय मां कुरु मधुरालापं 
पाठय मामपि तव भाषाम् ।। 
                      -विश्वासः 

मम माता देवता :-

 मम माता देवता ।। 
मम माता देवता ।।     
 अतिसरला , मयि मृदुला     
 गृहकुशला , सा अतुला           ।।मम माता ।।
पाययति दुग्धं , भोजयति भक्तं
 लालयति नित्यं , तोषयति चित्तम्।        ।।मम माता ।।
 सायङ्काले नीराजयति 
पाठयति च मां शुभङ्करोति 
श्लो ॥
 शुभं कुरु त्वं कल्याणम् 
आरोग्यं धनसम्पदः ।
 दुष्टबुद्धिविनाशाय
 दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥ 
पाठयति च मां सुभन्गकरोति ॥    ।। मम माता ।।
रात्रौ अङ्के मां स्वापयति 
मधु मधु मधुरं गीतं गायति 
आ आ आ आ आ 55             ।। मम माता ।। 
                - श्री ल . म . चक्रदेवः

इस तरह यह मधुर गीत यहां पूर्ण होता है 

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About the Author

नाम : संस्कृत ज्ञान समूह(Ashish joshi) स्थान: थरा , बनासकांठा ,गुजरात , भारत | कार्य : अध्ययन , अध्यापन/ यजन , याजन / आदान , प्रदानं । योग्यता : शास्त्री(.B.A) , शिक्षाशास्त्री(B.ED), आचार्य(M. A) , contact on whatsapp : 9662941910

تعليق واحد

  1. इसका हिन्दी अनुवाद चाहिए
आपके महत्वपूर्ण सुझाव के लिए धन्यवाद |
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