१ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
स्वभावो नोपदेशेनशक्यते कर्तुमन्यथा ।सुतप्तमपि पानीयंपुनर्गच्छति शीतताम् ।।हिंदी भावार्थ:-जिस तरह से गर्म उबलता हुआ पानी भी थोड़े समय मे ठंडा पड़ जाता है बस उसी तरह जिसका जैसा स्वभाव है वह हमेशा के लिए कभी नही बदलता ,चाहे उसे कितना भी उपदेश दिया जाए थोड़े समय मे वह फिर अपने स्वभाव को पकड़ ही लेता है ।
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२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
मरणान्तानि वैराणिप्रसवान्तञ्च यौवनम् ।कोपिता प्रणतान्ता हियाचितान्तं च गौरवम् ।।हिंदी भावार्थ:-वैर (शत्रुता) मृत्यु के बाद खत्म होती है वैसे ही युवानी प्रसव के बाद खत्म होती है , क्रोध सिर ज़ुकनेसे खत्म होता हैं, गौरव भिक्षा माँगने से ख़त्म होता है ।
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३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
चिन्तनीया हि विपदामादावेव प्रतिक्रिया ।न कूपखननं युक्तंप्रदीप्ते वह्निना गृहे ।।हिंदी भावार्थ:-विपत्ति के आने से पूर्व ही उसका अनुमान लगाकर बचने का प्रबंध कर लेना चाहिए । क्योंकि जिस समय आग लगे तो कुआ खोदने से कोई लाभ नही होता ।
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४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
अतिदानाद्धतः कर्णस्त्व-तिलोभात् सुयोधनः।अतिकामाद्दशग्रीवस्त्व्अति सर्वत्र वर्जयेत् ।।हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि मर्यादा से अधिक कुछ नही होना चाहिए कहते है कि अति दान करने के कारण से कर्ण का सब कुछ नष्ट हो गया वह स्वयं भी अति दान के कारण मार गया । और अति लोभ के कारण ही दुर्योधन का नाश हुआ , अति कामनाओ के कारण ही दश मुख वाले रावण का भी नाश हुआ इसीलिए हम लोगो को सर्वत्र अति होनेसे बचना है , मर्यादा मैं रहना चाहिए ।
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५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
यौवनं धनसंपत्तिप्रभुत्वमविवेकिता ।एकैकमप्यनर्थायकिमु यत्र चतुष्टयम् ॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि यौवन , विपुल संपत्ति , प्रभुत्व ( सत्ता ) , अविवेक यह चारो अनर्थ के कारण है इनमेसे यदि एक भी मनुष्य के अंदर हो तो उसका नाश समीप होता है तो यदि चारो एक साथ किसी मैं हो तो क्या होगा ।इसी लिए इन्हें मर्यादा मैं रखना चाहिए ।
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६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
अश्वस्य भूषणं वेगोमत्तं स्याद् गजभूषणं ।चातुर्यम् भूषणं नार्या -उद्योगो नरभूषणं ।।हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि वेग(झड़प) अश्व (घोड़े) का आभूषण है , वैसे ही हाथी का आभूषण मत्त चाल है , चतुरता किसी नारी का आभूषण है और परिश्रम पुरुषों का आभूषण है ।
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७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
यो भूतेष्वभयं दद्यात्भूतेभ्यस्तस्य नो भयम् ।यादृग् वितीर्यते दानंतादृगासाद्यते फलम् ॥हिंदी भावार्थ:-यहा वैसा ही अर्थ जैसे मुहावरा है कि जैसा करोगे वैसा भरोगे यहा कहते है कि जो दूसरोंको अभय देता है उसके जीवन मे भय नही रहता । क्योकि जैसा दान करेंगे वैसा फल मिलेगा ।
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८ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
खल: सर्षपमात्राणिपराच्छिद्राणि पश्यति ।आत्मनो बिल्वमात्राणिपश्यन्नपि न पश्यति ।।हिंदी भावार्थ:-जो मनुष्य खल(दुर्जन) है वह अन्य के सरसव के दाने जितने दोषो को भी देख लेते है परंतु स्वयं के बिल्वदल(बिलीपत्र) के समान दोष भी नही दिखती ।
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९ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
पदाहतं सदुत्थायमूर्धानमधिरोहति।स्वस्थादेवाबमानेपिदेहिनस्वद्वरं रज:।।हिंदी भावार्थ:-बहोत लोगो को आपमान सहने की आदत हो जाती है उनके लिए यहा कहते है कि जो राज किसीके पेर की ठोकर से ऊपर उड़ति है वह उस ठोकर न उड़ने वाले कण से महान है । इसी लिए अपमान सहन कर बैठ नही जाना चाहिए ।
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१० संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
इंद्रियाणि पराण्याहु:इंद्रियेभ्य: परं मन: ।मनसस्तु परा बुद्धि:यो बुद्धे: परतस्तु स: ।।हिंदी भावार्थ:-यहा आत्मा का स्थान कहा वह बताते है कहते कि इंद्रिया यो के परे मन है और मनसे परे बुद्धि है , ओर जो उस बुद्धि से भी परे है उसे आत्मा कहते है ।
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११ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
उभाभ्यामेव पक्षाभ्यांशथा खे पक्षिणां गति: ।तथैव ज्ञानकर्मभ्यांजजायते परमं पदम् ॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि खग(पक्षी) जैसे अपने पंखो के कारण गति पाते है आकाश ऊंची ऊंची उड़ान भरते है , बस उसी तरह जीवन मे ज्ञान और कर्म स्वरूप पंखों से परम पद ( इच्छित स्थान ) पा सकता है ।
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१२ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
यथा काष्ठं च काष्ठं चसमेयातां महोदधौ ।समेत्य च व्यपेयातांतद्वद् भूतसमागम: ।।हिंदी भावार्थ:-जिस तरह महासागर में कभी जो लकड़ी के टुकड़े जल प्रवाह से मिलते है और दूसरे ही क्षण प्रवाह के कारण अलग हो जाते है , वैसे हम मनुष्यो के बीच भी इस संसारसागर मै मिलना और बिछड़ना होता रहता है ।
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१३ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
न मांसभक्षणे दोषोन मद्ये न च मैथुने ।प्रवृत्तिरेषा भूतानांनिवृत्तिस्तु महाफला ॥हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है कि मास भक्षण करना , मद्य पठानं करना , मैथुन करना यह मनुष्य की प्रकृति में है अतः दोष नही है परंतु इनका त्याग करने से महा फल की प्राप्ति होती है ।
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१४ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
चलत्येकेन पादेनतिष्ठत्येकेन पण्डितः ।न समीक्ष्यापरं स्थानंपूर्वमायातनं त्यजेत् ॥हिंदी भावार्थ:-जो मनुष्य बुद्धिमान है चतुर है वे लोग एक पैर से चलते है और एक पैर पर खड़े रहते है अर्थात् वे लोग किसीभी स्थान का अच्छी तरह से समीक्षा किये बिना पूर्व का स्थान नही छोड़ते ।
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१५ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
कोऽतिभारः समर्थानांकिं दूरं व्यवसायिनाम् ।को विदेशस्तु विदुषांकः परः प्रियवादिनाम् ॥हिंदी भावार्थ:-जो मनुष्य सामर्थ्यवान है उसे किसी भी कार्य का केसा भार ? ओर परिश्रमी मनुष्य है उसके लिये कोई लक्ष्य दूर नही है । जो विद्वान है उसे विदेश में कहा है , ओर जो मनुष्य मीठा बोलता है उसके लिये पराया कौन है ? सब आपने है।
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१६ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
यावत् भ्रियेत जठरंतावत् सत्वं हि देहीनाम् ।अधिकं योभिमन्येत ।स स्तेनो दण्डमर्हति ।।हिंदी भावार्थ:-यहा कहते है जिससे हमारा जठर भर जाए उतने पर ही हमारा अधिकार है , उससे अधिक यदि हम लेते है तो वह दंड के योग्य है ।
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१७ संस्कृत ज्ञान सुभाषितम् :-
गुणेषु क्रियतां यत्न:किमाटोपै: प्रयोजनम् ।विक्रीयन्ते न घण्टाभि:गाव: क्षीरविवर्जिता: ।।हिंदी भावार्थ:-हमे जीवन मे आटोप(दिखावा )नही करना चाहिए क्योंकि गुण और क्रिया से मनुस्य की किम्मत होती है । जैसे केवल घंटी बांध लेने से दूध ना देनेवाली गाय , दूध देती है ऐसा समझकर कभी नही बेची जा सकती ।