किसी भी भाषा में प्रवीणता पाने हेतु उस भाषा का व्याकरण आना जरुरी होता हे। संस्कृत भाषा को सिखना बहोत ही सरल हे। और इस भाषा में प्रवीण बनने हेतु " संस्कृत व्याकरण " का ज्ञान आवश्यक हे। संस्कृत व्याकरण में सबसे पहले हमें " शब्दरूप " आने जरुरी हे।
शब्द रूप सरल तरीके से याद करने हेतु , हमने यहाँ ( १५ ) कुछ सरल नियम बताये हे। आप इन नियोमो को जानकर शीघ्रता से शब्द रूप याद कर पायेंगे।
( 1 ) नियम : राम , हरि , गुरु , मति , धेनु , इन शब्दों के प्रथमा के एकवचन में विसर्ग लग जाता है ।
जैसे- रामः , हरिः , गुरुः , धेनु : आदि ।
( 2 ) नियम : आकारान्त और ईकारान्त शब्द के प्रथमा के एकवचन में विसर्ग नहीं लगता है ।
जैसे- रमा , नदी , जननी आदि ।
लेकिन लक्ष्मी और श्री शब्द में प्रथमा के एकवचन में विसर्ग लगता है ।
जैसे - लक्ष्मीः , श्री: ।
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( 3 ) नियम : द्वितीया विभक्ति के एकवचन में इन सभी शब्दों में ' म् ' जुड़ता है ।
जैसे- बालकम् , रमाम् , हरिम् , नदीम् , कविम् , गुरुम् , धेनुम् , जननीम् आदि ।
( 4 ) नियम : द्वितीया विभक्ति के बहुवचन का नियम :
• अ , इ , उ , ऋ इन चारों पुल्लिंग शब्दों के द्वितीया के बहुवचन में अन्तिम अक्षर को दीर्घ करके न् हलन्त जोड़ते हैं ।
जैसे- अ - आन् , इ - ईन् , उ ऊन् , ऋ = ऋ + न्
राम = रामान , हरि - हरीन् , ऋषि , ऋषीन् गुरु - गुरून् , भानु = भानून , पितृ = पितून् आदि ।
• आ , ई , इ , उ , ऋ स्त्रीलिंग शब्दों के द्वितीया के बहुवचन में दीर्घ करके विसर्ग लग जाता है ।
जैसे- रमा = रमाः , लता - लताः , मति = मती: धेनु = धेनू:, नदी = नदीः , मातृ = मातृृ : आदि ।
( 5 ) नियम : इन सभी शब्दों के तृतीया विभक्ति द्विवचन में ' भ्याम् ' जुड़ जाता है लेकिन राम शब्द में भ्याम् जुड़ने से पहले आ की मात्रा लग जाती है ।
जैसे- राम + आ + भ्याम् = रामाभ्याम् , रमा + भ्याम् = रमाभ्याम् , हरि + भ्याम् = हरिभ्याम् , पितृ + भ्याम् = पितृभ्याम् , नदी + भ्याम् = नदीभ्याम् आदि ।
( 6 ) नियम : तृतीया के बहुवचन में इन सभी शब्दों में भि: ' जुड़ता है । लेनिक राम शब्द में ' भि: ' न जुड़ करके ' ऐ: ' जुड़ता है ।
जैसे- रामैः , बालकैः , रमाभिः , हरिभिः , गुरुभिः , पितृभिः , धेनुभि : आदि ।
( 7 ) नियम : चतुर्थी विभक्ति बहुवचन में ' भ्यः जुड़ता है । लेकिन राम शब्द में ' भ्यः ' से पहले ' ए ' जुड़ता है ।
जैसे- राम + ए + भ्यः = रामेभ्यः , रमा + भ्यः = रमाभ्यः , हरिभ्यः , मतिभ्यः धेनुभ्य : आदि ।
( 8 ) नियम : षष्ठी विभक्ति बहुवचन में ' नाम् ' या ‘ णाम् ' जुड़ता है । जिस शब्द में ऋ , र् , ष् का उच्चारण हो तो षष्ठी के बहुवचन में ' णाम् ' जुड़ता है , इसके अतिरिक्त शब्दों में ' नाम् ' जुड़ता है । मूल शब्द के अन्तिम स्वर को दीर्घ कर दिया जाता है ।
जैसे - रामाणाम् , लतानाम् , रमाणाम् , बालकानाम् , हरीणाम् , पुत्रीणाम् , गुरूणाम् , भानूनाम् ।
" चुटुतुलशर व्यवायेन " : यह सूत्र णाम् में ण् का निषेध करता है ।
ऋ , र , प् + च् , ट् , त् , ल , श् = न् का ण् नहीं होगा
अर्थात् ऋ , र प के बाद च् , ट् , त् वर्ग ल् , श् वर्ण हो तो और उसके बाद में न हो तो न् के स्थान पर ण नहीं होगा ।
" अट्कुप्वाङनुम व्यवायेऽपि "- ( अखण्ड पदों में न् का ण होता है )
ऋ , र , ष + अट् ( क , प वर्ग आ ) + न् ण होता है
कृष्ण - कृष्णानाम् ( ण टवर्ग है इसलिए न ही आयेगा )
अर्चना = अर्चनानाम् ।
( 9 ) नियम : तृतीया के एकवचन में न् = ण् करने के लिए यही नियम घटेगा ।
पदान्तस्य : पद के अन्त में न हो तो उसका ण नहीं होता है ।
जैसे- रामेन में न पदान्त नहीं है क्योंकि न के अन्त में अ है जबकि रामान् में न् पदान्त है ।
वार्तिक :
" ऋवर्णान्तस्य णत्वं वाच्यम् " : ऋ वर्णान्त शब्द के बाद में यदि न् हो , तो न् के स्थान पर ण् का आदेश होता है ।
चतसृ + नाम्
यहाँ ऋ पदान्त में है और आगे न है । अत : न का ण् हो जायेगा ।
चतसृ + णाम् - चतसृणाम् ।
- निम्न धातुओं में न = ण् नहीं होता है भले ही इससे पहले ऋ , र् , प् हो ।
नृत् , नन्दु , नट , नई , नाथ् आदि।
प्र + नृत्यति यहाँ पर षत्व का आदेश नहीं होगा ।
• जब नश् ( नष्ट होना ) धातु के श् के स्थान पर ष् का आदेश होता है , तो वहाँ न् के स्थान पर ण का आदेश नहीं होता है ।
श = ष , न् = ण नहीं होगा ।
प्रनष्ट : यहाँ श् का प हुआ है और उससे पहले न है अत : इसका ण नहीं होगा ।
( 10 ) नियम : जिस शब्द के अन्त में आ की मात्रा हो तथा हलन्त लगा हुआ हो , इनके सप्तमी के बहुवचन में सु लगता है अन्य शब्दों में पु लगता है । लेकिन राम शब्द में षु से पहले ए की मात्रा लग जाती है ।
राम + ए + पु = रामेषु , बालकेषु , छात्रासु , रमासु , भवत्- भवत्सु जगत्सु , मातृषु आदि ।
" आदेश प्रत्ययो " : स- ष आदेश होता है ।
अर्थ- अ , आ को छोड़कर अन्य स्वर वर्ण क वर्ग , य , व , र , ल्, ह के बाद यदि कोई प्रत्यय सम्बन्धी स् या किसी दूसरे वर्ण के स्थान पर आदेश हुआ । स् हो तो स् के स्थान पर ष आदेश हो जाता है ।
रामे + सु = रामेषु ।
• अनुस्वार , विसर्ग , श , ष , स् इनके बीच में आने पर भी स् = ष हो जाता है ।
धनुंषि, चक्षुःषु ,आयुःषि ।
पुसु शब्द में प् का आदेश नहीं होता है ।
( 11 ) नियम : प्रथमा एवं द्वितीया का द्विवचन एक समान होते हैं ।
( 12 ) नियम : तृतीया , चतुर्थी एवं पंचमी के द्विवचन एक समान होते हैं ।
( 13 ) नियम : षष्ठी , सप्तमी के द्विवचन एक समान होते हैं ।
- : चतुर्थी एवं पंचमी का बहुवचन एक समान होते हैं ।
( 15 ) नियम : प्रथमा का द्विवचन और बहुवचन एवं सम्बोधन का द्विवचन व बहुवचन एक समान होते हैं ।